मालदा (पश्चिम बंगाल): जमाना काफी तेजी से बदल रहा है और इस बदलते जमाने के साथ-साथ परंपराएं भी बदल रही हैं. लेकिन प्रथाएं आज भी पुरानी ही हैं और उनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. विजयदशमी की ऐसी ही एक प्रथा (Tradition of Vijay Dashami) की खूबसूरत तस्वीर बुधवार को पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मालदा जिले में देखने को मिली. सौ साल की प्रथा को जिंदा रखते हुए सैफुल, रहीम, आयशा नाम के मुस्लिम युवकों ने टॉर्च और मोबाइल फोन की फ्लैश लाइट से देवी दुर्गा को विदाई (Muslim youths show goddess Durga way) दी.
यहां का मुस्लिम समुदाय कई सौ वर्षों से सांप्रदायिक सौहार्द दिखाने के लिए ऐसा करता आ रहा है. पहले देवी को रोशनी दिखाने के लिए तेल के दीयों और मोमबत्तियों का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब उनकी जगह गैजेट्स ने ले ली है. चंचल के पहाड़पुर चंडी मंदिर में देवी दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन के दौरान महानंदा के सतीघाट पर सैकड़ों वर्षों से यह प्रथा (Dussehra customs in Chanchal village of Malda) चली आ रही है. कारण जो भी हो, तथ्य यह है कि त्योहारों को धर्म से नहीं बांधा जा सकता.
यहां के लोगों का कहना है कि एक समय सतीघाट के पास के गांवों में महामारी फैली थी. उन अल्पसंख्यक बहुल गांवों के निवासियों ने बिमारी से बचने के लिए गांव छोड़ना शुरू कर दिया. उस समय सौरगाछी गांव के एक मुस्लिम व्यक्ति को चंडी का सपना आया. तब देवी ने उन्हें विजयदशमी पर विसर्जन के समय प्रकाश के साथ रास्ता दिखाने का निर्देश दिया. उस रौशनी में रास्ता देखकर देवी कैलाश के रास्ते में नदी के पानी में तैरने लगेंगी.
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देवी के निर्देश पर पूरे सौरगाछी गांव ने उन्हें विदाई के समय नदी का रास्ता दिखाया. वह शुरुआत थी और आज भी उस गांव के निवासी दुर्गा पूजा के दसवें दिन रोशनी के साथ देवी को रास्ता दिखाते हैं. बुधवार शाम को भी पारंपरिक तस्वीर देखने को मिली. गांव के निवासी सोहराब अली ने कहा कि 'सुना है, गांव में महामारी से छुटकारा पाने के लिए देवी कुछ निर्देश लेकर सपने में आई थीं. हमारे पूर्वजों ने भी विजय दशमी पर देवी को प्रकाश दिखाया था.'