कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि कोरोना वायरस की जांच में निगेटिव पाए जाने के 30 दिन बाद भी किसी व्यक्ति की मौत को यदि कोविड मौत समझा जाता है तो उसी तर्क के आधार पर कोविड के बाद की स्वास्थ्य जटिलताओं को प्रथम दृष्टया कोरोना देखभाल का हिस्सा ही माना जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति देवेन रामचंद्रन और न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागठ की पीठ ने यह विचार व्यक्त किया और राज्य सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि क्यों उसने 16 अगस्त को एक ऐसा आदेश जारी किया जिसमें गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वालों के वास्ते कोविड के बाद की स्वास्थ्य जटिलताओं के लिए उपचार की दरें तय की गई हैं.
पीठ ने कहा सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्यों 16 अगस्त को आदेश जारी किया गया, वो भी तब जब कोविड-19 जांच में किसी व्यक्ति के निगेटिव पाये जाने के 30 दिन बाद उसकी मौत हो जाने पर उसे कोविड मौत समझा जाता है.
पीठ ने उसी तर्क के आधार पर जांच में निगेटिव पाये जाने वाले व्यक्ति का उपचार भी कोविड उपचार माना जाए. इस टिप्पणी के साथ पीठ ने सरकारी वकील एस कन्नन को इस मुद्दे पर (सरकार से)निर्देश प्राप्त करने का आदेश दिया. अदालत ने सरकार द्वारा दाखिल एक मेमो पर गौर करने के बाद यह सवाल किया.
इसे भी पढ़ें-कोरोना से प्रमाणित मौत पर 50 हजार रुपये का मुआवजा
कन्नन के मार्फत दाखिल इस मेमो में सरकार ने कहा कि कोविड संक्रमण एवं उसके कारण जटिलाएं रोग प्रबंधन के दृष्टिकोण से भिन्न चीजें हैं. सरकार ने कहा कि कोविड-19 महामारी के चलते लोगों पर आ रहे वित्तीय बोझ को घटाने तथा लोगों के वित्तीय दबावों को कम करने में सहयोग पहुंचाने के लिए कोविड के बाद की विभिन्न स्वास्थ्य शिकायतों के उपचार की दरें तय करने की जरूरत पड़ी.
मेमो में कहा कि ऐसा करने से निजी अस्पताल ऐसे मरीजों से बहुत अधिक शुल्क नहीं वसूल पायेंगे. उसने कहा कि गरीबी रेखा के ऊपर जीवन-यापन करने वाले मरीजों को अपने उपचार का खर्च खुद ही उठाना होता है और कोविड के बाद की स्वास्थ्य जटिलताओं का उपचार महंगा होने के कारण तार्किक दरें तय की गई. अदालत केरल निजी अस्पताल एसोसिएशन की समीक्षा याचिका पर सुनवाई कर रही है.
(पीटीआई-भाषा)