कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court ) ने शुक्रवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) साजिश मामले में तीन पूर्व पुलिस अधिकारियों और आईबी के एक सेवानिवृत्त अधिकारी को अग्रिम जमानत प्रदान की.
न्यायमूर्ति अशोक मेनन ने पूर्व पुलिस अधिकारियों आर बी श्रीकुमार, एस विजयन और टी एस दुर्गा दत्त और खुफिया ब्यूरो (आईबी) के पूर्व अधिकारी पी एस जयप्रकाश को अग्रिम जमानत दी. इन सभी ने साजिश के आरोप में सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में अग्रिम जमानत की गुहार लगायी थी. इससे पहले, उच्च न्यायालय ने अलग-अलग तारीखों पर इन सभी को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दी थी.
सीबीआई ने 1994 के जासूसी मामले में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन की गिरफ्तारी और हिरासत के संबंध में मामला दर्ज किया था, जिसमें इन चारों के अलावा 14 अन्य आरोपियों के खिलाफ आपराधिक साजिश, अपहरण और साक्ष्य गढ़ने समेत विभिन्न अपराधों के तहत आरोप लगाए गए हैं.
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नारायणन के अलावा मालदीव की दो महिलाओं को भी 1994 के जासूसी मामले में गिरफ्तार और हिरासत में रखा गया था. ये महिलाएं रिहा होने से पहले तीन साल से भी अधिक समय तक जेल में रही थीं.
वैज्ञानिक नंबी नारायणन और अन्य पर भारतीय रॉकेट तकनीक को लीक करने का आरोप लगाया गया था. मामले के पहले आरोपी और तिरुवनंतपुरम के पूर्व सीआई एस विजयन (S Vijayan) और वंचियूर एसआई थंपी एस दुर्गादथ (Thampi S Durgadath) पहले ही उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत दाखिल कर चुके हैं.
दो साल पहले 50 लाख रुपये का मुआवजा
नंबी नारायणन के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अलावा पुलिस महकमे के रवैये पर भी गंभीर सवाल खड़े हुए हैं. बता दें कि शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर, 2018 को केरल सरकार को नारायणन को 50 लाख रुपये बतौर मुआवजा देने का निर्देश दिया था. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट के ही न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) डीके जैन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति गठित की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने आज (15-04-2021) को सीबीआई इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की जांच करने का निर्देश दिया.
कब हुई कार्रवाई की शुरुआत
नंबी नारायणन को केरल पुलिस ने 30 नवंबर, 1994 को गिरफ्तार किया था. उनके खिलाफ जासूसी के आरोप लगे थे. नारायणन पर इंडियन ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट, 1923 की धारा 3, 4 और 5 के तहत आरोप लगाए गए थे. यह गैरकानूनी था क्योंकि इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति नहीं ली गई थी.
दबाव बनाकर बयान लेने के आरोप
नारायणन को पहले पुलिस कस्टडी में रखा गया और इसके बाद 50 दिनों की न्यायिक हिरासत में भी रखा गया. पुलिस कस्टडी में नारायणन को कथित रूप से प्रताड़ित किया गया. प्रताड़ना के आरोप केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों पर लगे. नारायणन पर कथित रूप से दबाव बनाकर बयान भी लिए गए.
पाक को जानकारी देने का आरोप, सीबीआई ने बताया निराधार
केरल पुलिस की ओर से पेश दलीलों के मुताबिक नंबी नारायणन ने रॉकेट टेक्नोलॉजी और क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी से जुड़ी जानकारी गैर कानूनी तरीके से पाकिस्तान को दी. हालांकि, सीबीआई जांच में यह आरोप निराधार निकले.
केरल सरकार का शर्मनाक रवैया
नारायणन के मामले में के चंद्रशेखर बनाम केरल राज्य के मुकदमे की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई जांच की रिपोर्ट स्वीकार की. हालांकि, इसके बाद भी केरल सरकार ने नंबी नारायणन से जुड़ी फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी और लगभग 15 साल के बाद एक सरकारी आदेश जारी हुआ.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद बनी कमेटी
29 जून, 2011 को जारी सरकारी आदेश में केरल पुलिस के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई न करने की बात कही गई. नंबी नारायणन ने सरकार के इस आदेश को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी. नारायण की याचिका पर न्यायमूर्ति रामा कृष्णा पिल्लई ने सुनवाई के बाद सरकार का आदेश निरस्त कर दिया. हाईकोर्ट ने सरकार को कानूनी तरीके से कार्रवाई करने का निर्देश दिया. हाईकोर्ट के आदेश के बाद केरल सरकार ने इस मामले में कमेटी का गठन किया.
दोषी अधिकारियों ने हाईकोर्ट में की अपील
हाईकोर्ट के आदेश के बाद एक और चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया. दोषी अधिकारियों ने केरल हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर कर जस्टिस रामा कृष्णा पिल्लई की कोर्ट द्वारा सुनाई गए फैसले को निरस्त करने की मांग की.
केरल पुलिस की जांच के बाद सीबीआई जांच
अपनी 17 दिनों की जांच के बाद केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया था. इसके बाद सीबीआई ने लगभग डेढ़ वर्ष तक इस मामले की जांच की. अपनी क्लोजर रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि नंबी नारायणन पर लगे जासूसी के आरोप निराधार हैं.
दोषियों पर कार्रवाई की सिफारिश, सरकार ने किया दिखावा
क्लोजर रिपोर्ट के साथ सीबीआई ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को दो और भी रिपोर्ट्स सौंपी थी. इनमें केंद्रीय जांच एजेंसी ने गंभीर खामियों को उजागर किया था. सीबीआई ने केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए समुचित कार्रवाई की सिफारिश की. इसके बाद केंद्र सरकार ने साल 2004 में दिखावा करते हुए एक जांच कराई. इसके बाद अधिकारियों पर लगे आरोप हटा लिए गए. इस जांच को लेकर पीड़ित पक्ष को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया.
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नंबी नारायण की याचिका
केरल हाईकोर्ट में दो जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले के खिलाफ नंबी नारायणन ने सुप्रीम कोर्ट में साल 2015 में याचिका दायर की. शीर्ष अदालत में जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने इस मामले को अप्रैल, 2017 में निष्पादित करने के लिए सूचीबद्ध किया था. नंबी नारायणन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1998 में भी केरल सरकार की जबरदस्त खिंचाई भी की थी.
देश के प्रबुद्ध लोगों ने जताई नाराजगी
बता दें कि सीबीआई द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद केरल सरकार ने सीबीआई को आगे की जांच करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. सरकार के इस रवैये पर छह प्रबुद्ध लोगों ने नाराजगी जताते हुए एक खुला पत्र लिखा था. इन लोगों में इसरो के पूर्व चेयरमैन सतीश धवन और यूआर राव के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर यशपाल, स्पेस कमीशन के पूर्व सदस्य आर नरसिम्हा और भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) बेंगलुरु के प्रोफेसर एस चंद्रशेखर शामिल थे.
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(पीटीआई भाषा)