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गंगा को बताया 'शव वाहिनी', मोदी को 'नग्न राजा', बढ़ा विवाद - vishnu pandya gujarat sahitya academy

गुजरात साहित्य अकादमी ने पारुल खाखर की उस कविता की आलोचना की है, जिसमें उन्होंने एक कविता के जरिए गंगा और पीएम मोदी पर निशाना साधा है. इस कविता में गंगा को 'शव वाहिनी' बताया गया है, जबकि पीएम मोदी को 'नग्न राजा' कहकर तंज कसा गया है. क्या है पूरा विवाद, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

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पारुल खाखर
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Published : Jun 18, 2021, 5:29 PM IST

Updated : Jun 18, 2021, 6:06 PM IST

अहमदाबाद : गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पंड्या ने गंगा नदी में तैरते शवों पर गुजराती कवयित्री पारुल खाखर की एक कविता की आलोचना की है. इस कविता के जरिए कोविड-19 महामारी से निपटने को लेकर केन्द्र सरकार की निंदा की गई है.

पंड्या ने कहा कि देश में 'अराजकता' फैलाने के लिए 'उदारवादियों, कम्युनिस्टों और साहित्यिक नक्सलियों' द्वारा इस काम का दुरुपयोग किया जा रहा है.

हालांकि, कई लेखकों ने खाखर को अपना समर्थन दिया और उनके रुख के लिए पंड्या की आलोचना की है.

अकादमी के प्रमुख अपने इन विचारों पर दृढ़ हैं कि इस कविता के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया है और यह भारतीय लोगों, लोकतंत्र और समाज को 'बदनाम' करती है. खाखर द्वारा लिखी गई कविता 'शव-वाहिनी गंगा' उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी में तैरते कोविड-19 पीड़ितों के शवों के बारे में एक संदर्भ देकर महामारी की दूसरी लहर से निपटने के लिए केन्द्र सरकार की आलोचना करती है.

कविता का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया और सोशल मीडिया मंच पर व्यापक रूप से इसे साझा किया गया.

अकादमी के आधिकारिक प्रकाशन 'शब्दश्रुति' के जून संस्करण में एक संपादकीय में, पंड्या ने विशेष रूप से इसका नाम लिए बिना कविता की आलोचना की गई है.

पंड्या ने लिखा, 'कई लोगों ने इस कविता की तारीफ की है. लेकिन इस कृति को कतई कविता नहीं माना जा सकता. यह सिर्फ व्यर्थ का गुस्सा, शब्दों की जुगलबंदी थी और यह भारतीय लोगों, लोकतंत्र और समाज को बदनाम करती है. आप इसे कविता कैसे कह सकते हैं.'

उन्होंने कहा है कि कविता का दुरुपयोग उन लोगों द्वारा किया गया है जो केंद्र विरोधी हैं और इसकी राष्ट्रवादी विचारधाराओं के खिलाफ हैं.

उन्होंने कहा कि वामपंथी और तथाकथित उदारवादी देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं. वे सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं और दुर्भावनापूर्ण इरादे से साहित्य में भी कूद पड़े हैं. ये साहित्यिक नक्सली उन लोगों के एक वर्ग को प्रभावित करना चाहते हैं, जो इस कविता के साथ अपने व्यक्तिगत दुख को जोड़ेंगे.

इस बीच, खाखर से इस संबंध में प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है. गुजराती लेखक मंडल की मनीषी जानी के नेतृत्व में 100 से अधिक गुजराती लेखक कवयित्री के समर्थन में सामने आए हैं, जिन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से भी निशाना बनाया जा रहा है.

मनीषी ने एक बयान में कहा कि गुजराती लेखक 'एक लेखक की आवाज को दबाने की कोशिशों की निंदा करते हैं और पारुल खाखर के समर्थन में मजबूती से खड़े हैं.'

वहीं, दूसरी ओर पंड्या ने कहा कि वह कभी भी खाखर के खिलाफ नहीं थे और अकादमी ने अतीत में उनके साहित्यिक कार्यों के लिए उन्हें आर्थिक रूप से भी समर्थन दिया था.

उन्होंने कहा, 'पारुल एक अच्छी कवयित्री हैं. लेकिन यह कविता साहित्यिक मानकों के हिसाब से उपयुक्त नहीं है. उनकी रचना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाती है. किसी को एक कविता में 'नग्न राजा' जैसे अपमानजनक शब्दों का उपयोग करने से बचना चाहिए.'

ये भी पढ़ें : गुजरात : विधायक ने खोला राज, 'भाजपा दफ्तर से बांटे गए थे रेमडेसिविर दवा'

उन्होंने कहा, 'देश में अराजकता पैदा करने के लिए एक कविता का दुरुपयोग करने के विचार से मैं कभी सहमत नहीं हो सकता. व्यवस्था की आलोचना होनी चाहिए. हम भी सरकारों की आलोचना करते थे. लेकिन इसमें संतुलन होना चाहिए.'

(एक्स्ट्रा इनपुट- भाषा)

अहमदाबाद : गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विष्णु पंड्या ने गंगा नदी में तैरते शवों पर गुजराती कवयित्री पारुल खाखर की एक कविता की आलोचना की है. इस कविता के जरिए कोविड-19 महामारी से निपटने को लेकर केन्द्र सरकार की निंदा की गई है.

पंड्या ने कहा कि देश में 'अराजकता' फैलाने के लिए 'उदारवादियों, कम्युनिस्टों और साहित्यिक नक्सलियों' द्वारा इस काम का दुरुपयोग किया जा रहा है.

हालांकि, कई लेखकों ने खाखर को अपना समर्थन दिया और उनके रुख के लिए पंड्या की आलोचना की है.

अकादमी के प्रमुख अपने इन विचारों पर दृढ़ हैं कि इस कविता के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया है और यह भारतीय लोगों, लोकतंत्र और समाज को 'बदनाम' करती है. खाखर द्वारा लिखी गई कविता 'शव-वाहिनी गंगा' उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी में तैरते कोविड-19 पीड़ितों के शवों के बारे में एक संदर्भ देकर महामारी की दूसरी लहर से निपटने के लिए केन्द्र सरकार की आलोचना करती है.

कविता का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया और सोशल मीडिया मंच पर व्यापक रूप से इसे साझा किया गया.

अकादमी के आधिकारिक प्रकाशन 'शब्दश्रुति' के जून संस्करण में एक संपादकीय में, पंड्या ने विशेष रूप से इसका नाम लिए बिना कविता की आलोचना की गई है.

पंड्या ने लिखा, 'कई लोगों ने इस कविता की तारीफ की है. लेकिन इस कृति को कतई कविता नहीं माना जा सकता. यह सिर्फ व्यर्थ का गुस्सा, शब्दों की जुगलबंदी थी और यह भारतीय लोगों, लोकतंत्र और समाज को बदनाम करती है. आप इसे कविता कैसे कह सकते हैं.'

उन्होंने कहा है कि कविता का दुरुपयोग उन लोगों द्वारा किया गया है जो केंद्र विरोधी हैं और इसकी राष्ट्रवादी विचारधाराओं के खिलाफ हैं.

उन्होंने कहा कि वामपंथी और तथाकथित उदारवादी देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं. वे सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं और दुर्भावनापूर्ण इरादे से साहित्य में भी कूद पड़े हैं. ये साहित्यिक नक्सली उन लोगों के एक वर्ग को प्रभावित करना चाहते हैं, जो इस कविता के साथ अपने व्यक्तिगत दुख को जोड़ेंगे.

इस बीच, खाखर से इस संबंध में प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है. गुजराती लेखक मंडल की मनीषी जानी के नेतृत्व में 100 से अधिक गुजराती लेखक कवयित्री के समर्थन में सामने आए हैं, जिन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से भी निशाना बनाया जा रहा है.

मनीषी ने एक बयान में कहा कि गुजराती लेखक 'एक लेखक की आवाज को दबाने की कोशिशों की निंदा करते हैं और पारुल खाखर के समर्थन में मजबूती से खड़े हैं.'

वहीं, दूसरी ओर पंड्या ने कहा कि वह कभी भी खाखर के खिलाफ नहीं थे और अकादमी ने अतीत में उनके साहित्यिक कार्यों के लिए उन्हें आर्थिक रूप से भी समर्थन दिया था.

उन्होंने कहा, 'पारुल एक अच्छी कवयित्री हैं. लेकिन यह कविता साहित्यिक मानकों के हिसाब से उपयुक्त नहीं है. उनकी रचना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाती है. किसी को एक कविता में 'नग्न राजा' जैसे अपमानजनक शब्दों का उपयोग करने से बचना चाहिए.'

ये भी पढ़ें : गुजरात : विधायक ने खोला राज, 'भाजपा दफ्तर से बांटे गए थे रेमडेसिविर दवा'

उन्होंने कहा, 'देश में अराजकता पैदा करने के लिए एक कविता का दुरुपयोग करने के विचार से मैं कभी सहमत नहीं हो सकता. व्यवस्था की आलोचना होनी चाहिए. हम भी सरकारों की आलोचना करते थे. लेकिन इसमें संतुलन होना चाहिए.'

(एक्स्ट्रा इनपुट- भाषा)

Last Updated : Jun 18, 2021, 6:06 PM IST
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