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गृह मंत्रालय ने साइबर धोखाधड़ी की शिकायत करने के लिए बनाया मंच, राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत - साइबर धोखाधड़ी की शिकायत के लिए मंच

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साइबर धोखाधड़ी के कारण वित्तीय नुकसान को रोकने और उनकी शिकायत करने के लिए एक मंच और राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर 155260 की शुरुआत की है. इससे जुड़ी पूरी जानकारी के लिए पढ़िए ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी की रिपोर्ट...

गृह मंत्रालय
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Published : Jun 17, 2021, 10:53 PM IST

नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साइबर धोखाधड़ी के कारण वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए शिकायत करने के एक मंच और राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 की शुरुआत की है.

मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रीय हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म साइबर धोखाधड़ी के शिकार हुए लोगों को उनकी गाढ़ी कमाई के नुकसान को रोकने के लिए ऐसे मामलों की शिकायत करने का एक तंत्र प्रदान करता है.

MHA ने राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म शुरू किया

सुरक्षित डिजिटल भुगतान इको-सिस्टम प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय (MHA) ने वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म को शुरू किया है.

हेल्पलाइन की सीमित स्तर पर एक अप्रैल, 2021 को शुरुआत की गयी थी. हेल्पलाइन 155260 और इसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), सभी प्रमुख बैंक, भुगतान बैंक, वॉलेट और ऑनलाइन मर्चेंट के सहयोग और समर्थन से गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) द्वारा चालू किया गया है.

पढ़ें - इंडियन हैकर का बड़ा कमाल, फेसबुक ने दिया 22 लाख का इनाम, ये है पूरा मामला

नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली, आई4सी द्वारा कानून लागू करने वाली एजेंसियों और बैंकों तथा वित्तीय मध्यवर्ती कंपनियों को एकीकृत करने के लिए आंतरिक रूप से विकसित की गई है.

वर्तमान में इसका उपयोग 155260 के साथ सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) द्वारा किया जा रहा है, जो देश की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी को कवर करता है. जालसाजों द्वारा ठगे गए धन के प्रवाह को रोकने के लिए अन्य राज्यों में इसे शुरू किया जा रहा है.

साइबर धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाएं
साइबर धोखाधड़ी का डेटा एकत्र करने के लिए, केंद्र ने अगस्त 2019 में एक राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल www.cybercrime.gov.in लॉन्च किया था. वहीं इस साल मार्च में लोकसभा में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी द्वारा दी गई नवीनतम जानकारी के अनुसार, अगस्त 2019 में पोर्टल के लॉन्च होने के बाद से अब तक 3,28,000 से अधिक साइबर अपराध दर्ज किए गए हैं.

अप्रैल से अब तक 1.85 करोड़ रुपये की बचत

अधिकारियों के अनुसार आरंभ में सीमित स्तर पर शुरुआत के बाद दो महीने की छोटी अवधि में ही हेल्पलाइन 155260 से फर्जीवाड़े की 1.85 करोड़ रुपये की रकम जालसाजों के हाथों में जाने से रोकने में मदद मिली है. इसमें दिल्ली और राजस्थान ने क्रमशः 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये की बचत की है.

साइबर धोखाधड़ी से संबंधित जानकारी साझा करने और लगभग वास्तविक समय में कार्रवाई करने के लिए नए जमाने की तकनीकों का लाभ उठाकर यह सुविधा बैंकों और पुलिस दोनों को सशक्त बनाती है.

हेल्पलाइन कैसे काम करती है
साइबर धोखाधड़ी के शिकार हेल्पलाइन नंबर 155260 पर कॉल कर सकते हैं, जो संबंधित राज्य पुलिस द्वारा संचालित है.

शिकायत प्राप्त होने पर, पुलिस ऑपरेटर धोखाधड़ी लेनदेन विवरण और कॉलर की बुनियादी व्यक्तिगत जानकारी रिकॉर्ड करता है और उन्हें नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर टिकट के रूप में जमा करता है. फिर धोखाधड़ी के पैसे का पता लगाने के लिए टिकट को संबंधित बैंक (बैंकों), वॉलेट और व्यापारियों, अन्य संस्थाओं के बीच भेजा जाता है.

पढ़ें - उत्तराखंड : एसटीएफ ने किया 250 करोड़ की साइबर ठगी का पर्दाफाश

इसीक्रम में शिकायत की पावती संख्या के साथ पीड़ित को एक एसएमएस भी भेजा जाता है, जिसमें पावती संख्या का उपयोग करके 24 घंटे के भीतर धोखाधड़ी का पूरा विवरण राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) पर जमा करने का निर्देश दिया जाता है .

तत्पश्चात संबंधित बैंक, जो अब रिपोर्टिंग पोर्टल पर अपने डैशबोर्ड पर टिकट देख सकता है, अपने आंतरिक सिस्टम में विवरण की जांच करता है. यदि धोखाधड़ी का पैसा अभी भी उपलब्ध है, तो संबंधित बैंक उस पर रोक लगा देता है जिससे जालसाज पैसे को वापस न ले सके.

हालांकि, अगर धोखाधड़ी का पैसा पहले ही दूसरे बैंक में चला गया है, तो टिकट अगले बैंक में स्थानांतरित हो जाता है जिसमें पैसा स्थानांतरित किया गया है. अधिकारियों के मुताबिक यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है जब तक कि पैसा जालसाजों के हाथों में पहुंचने से नहीं बच जाता.

हेल्पलाइन में सभी प्रमुख बैंक शामिल हैं

अधिकारियों के अनुसार, हेल्पलाइन और उसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म में सभी प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक शामिल हैं. इसमें सभी प्रमुख पेमेंट वॉलेट और मर्चेंट जैसे पेटीएम, फोनपे, मोबिक्विक, फ्लिपकार्ट और एमेजॉन प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं.

अधिकारियों ने कहा कि हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई मौकों पर धोखेबाजों द्वारा पैसे को पांच अलग-अलग बैंकों में ले जाने के बाद भी धोखाधड़ी के पैसे को धोखेबाजों तक पहुंचने से रोका गया है.

नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साइबर धोखाधड़ी के कारण वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए शिकायत करने के एक मंच और राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 की शुरुआत की है.

मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि राष्ट्रीय हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म साइबर धोखाधड़ी के शिकार हुए लोगों को उनकी गाढ़ी कमाई के नुकसान को रोकने के लिए ऐसे मामलों की शिकायत करने का एक तंत्र प्रदान करता है.

MHA ने राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म शुरू किया

सुरक्षित डिजिटल भुगतान इको-सिस्टम प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय (MHA) ने वित्तीय नुकसान को रोकने के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म को शुरू किया है.

हेल्पलाइन की सीमित स्तर पर एक अप्रैल, 2021 को शुरुआत की गयी थी. हेल्पलाइन 155260 और इसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), सभी प्रमुख बैंक, भुगतान बैंक, वॉलेट और ऑनलाइन मर्चेंट के सहयोग और समर्थन से गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) द्वारा चालू किया गया है.

पढ़ें - इंडियन हैकर का बड़ा कमाल, फेसबुक ने दिया 22 लाख का इनाम, ये है पूरा मामला

नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली, आई4सी द्वारा कानून लागू करने वाली एजेंसियों और बैंकों तथा वित्तीय मध्यवर्ती कंपनियों को एकीकृत करने के लिए आंतरिक रूप से विकसित की गई है.

वर्तमान में इसका उपयोग 155260 के साथ सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (छत्तीसगढ़, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश) द्वारा किया जा रहा है, जो देश की 35 प्रतिशत से अधिक आबादी को कवर करता है. जालसाजों द्वारा ठगे गए धन के प्रवाह को रोकने के लिए अन्य राज्यों में इसे शुरू किया जा रहा है.

साइबर धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाएं
साइबर धोखाधड़ी का डेटा एकत्र करने के लिए, केंद्र ने अगस्त 2019 में एक राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल www.cybercrime.gov.in लॉन्च किया था. वहीं इस साल मार्च में लोकसभा में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी द्वारा दी गई नवीनतम जानकारी के अनुसार, अगस्त 2019 में पोर्टल के लॉन्च होने के बाद से अब तक 3,28,000 से अधिक साइबर अपराध दर्ज किए गए हैं.

अप्रैल से अब तक 1.85 करोड़ रुपये की बचत

अधिकारियों के अनुसार आरंभ में सीमित स्तर पर शुरुआत के बाद दो महीने की छोटी अवधि में ही हेल्पलाइन 155260 से फर्जीवाड़े की 1.85 करोड़ रुपये की रकम जालसाजों के हाथों में जाने से रोकने में मदद मिली है. इसमें दिल्ली और राजस्थान ने क्रमशः 58 लाख रुपये और 53 लाख रुपये की बचत की है.

साइबर धोखाधड़ी से संबंधित जानकारी साझा करने और लगभग वास्तविक समय में कार्रवाई करने के लिए नए जमाने की तकनीकों का लाभ उठाकर यह सुविधा बैंकों और पुलिस दोनों को सशक्त बनाती है.

हेल्पलाइन कैसे काम करती है
साइबर धोखाधड़ी के शिकार हेल्पलाइन नंबर 155260 पर कॉल कर सकते हैं, जो संबंधित राज्य पुलिस द्वारा संचालित है.

शिकायत प्राप्त होने पर, पुलिस ऑपरेटर धोखाधड़ी लेनदेन विवरण और कॉलर की बुनियादी व्यक्तिगत जानकारी रिकॉर्ड करता है और उन्हें नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर टिकट के रूप में जमा करता है. फिर धोखाधड़ी के पैसे का पता लगाने के लिए टिकट को संबंधित बैंक (बैंकों), वॉलेट और व्यापारियों, अन्य संस्थाओं के बीच भेजा जाता है.

पढ़ें - उत्तराखंड : एसटीएफ ने किया 250 करोड़ की साइबर ठगी का पर्दाफाश

इसीक्रम में शिकायत की पावती संख्या के साथ पीड़ित को एक एसएमएस भी भेजा जाता है, जिसमें पावती संख्या का उपयोग करके 24 घंटे के भीतर धोखाधड़ी का पूरा विवरण राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) पर जमा करने का निर्देश दिया जाता है .

तत्पश्चात संबंधित बैंक, जो अब रिपोर्टिंग पोर्टल पर अपने डैशबोर्ड पर टिकट देख सकता है, अपने आंतरिक सिस्टम में विवरण की जांच करता है. यदि धोखाधड़ी का पैसा अभी भी उपलब्ध है, तो संबंधित बैंक उस पर रोक लगा देता है जिससे जालसाज पैसे को वापस न ले सके.

हालांकि, अगर धोखाधड़ी का पैसा पहले ही दूसरे बैंक में चला गया है, तो टिकट अगले बैंक में स्थानांतरित हो जाता है जिसमें पैसा स्थानांतरित किया गया है. अधिकारियों के मुताबिक यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है जब तक कि पैसा जालसाजों के हाथों में पहुंचने से नहीं बच जाता.

हेल्पलाइन में सभी प्रमुख बैंक शामिल हैं

अधिकारियों के अनुसार, हेल्पलाइन और उसके रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म में सभी प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक शामिल हैं. इसमें सभी प्रमुख पेमेंट वॉलेट और मर्चेंट जैसे पेटीएम, फोनपे, मोबिक्विक, फ्लिपकार्ट और एमेजॉन प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं.

अधिकारियों ने कहा कि हेल्पलाइन और रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई मौकों पर धोखेबाजों द्वारा पैसे को पांच अलग-अलग बैंकों में ले जाने के बाद भी धोखाधड़ी के पैसे को धोखेबाजों तक पहुंचने से रोका गया है.

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