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गया की सुष्मिता का 'मटका कूलर' हुआ फेमस, PM मोदी के प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक जानेंगे खासियत - government principal scientific advisor

गया की शिक्षिका सुष्मिता सान्याल ने वेस्ट टू हेल्थ प्रोग्राम के तहत घड़ा का कूलर तैयार किया था. अब इस कूलर का प्रजेंटेशन 14 अगस्त को केंद्र सरकार के प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक विजय राघवन (Vijay Raghavan) को दिया जाएगा. पढ़ें पूरी खबर..

घड़े वाला कूलर
घड़े वाला कूलर
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Published : Aug 11, 2021, 10:35 PM IST

गया: बिहार के गया जिले के चंदौती प्रखण्ड स्थित चंदौती उच्च विद्यालय की शिक्षिका सुष्मिता सान्याल वेस्ट टू हेल्थ प्रोग्राम के तहत घड़े वाला कूलर तैयार किया था. अब इस कूलर का प्रजेंटेशन 14 अगस्त को केंद्र सरकार के प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक विजय राघवन (Vijay Raghavan) देखेंगे और इस पर चर्चा करेंगे. सुष्मिता सान्याल (Sushmita Sanyal) को केंद्र सरकार ने कचरे से ऊर्जा तैयार करने के लिए एक साल की फेलोशिप भी दी है.

दरअसल गया शहर के चंदौती मध्य विद्यालय की शिक्षिका सुष्मिता सान्याल कचरा प्रबंधन के लिए काम कर रही हैं. भारत सरकार के प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के 9 राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के वेस्ट टू वेल्थ मिशन के तहत अपशिष्ट प्रबंधन से ऊर्जा निर्माण करने के लिए सुष्मिता को फेलोशिप दी गई है.

मटका कूलर की खासियत
मटका कूलर की खासियत

सुष्मिता सान्याल के अब तक के कार्यों के लिए केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक के सामने वर्चुअल तरीके से प्रेजेंटेशन होगा जिसमें उनके द्वारा किया गया कार्य व शोध पर चर्चा होगी.

इस बारे में शिक्षिका सुष्मिता सान्याल ने बताया कि मैं पिछले तीन साल से कचरे के निष्पादन और रिसाइक्लिंग के लिए काम कर रही हूं. घड़ा वाला कूलर घर से निकलने वाले कचरे से बना है जिसको बनाने में मात्र 500 रुपया खर्च आता है. मुझे केंद्र सरकार द्वारा जो फेलोशिप मिली है उसमें कचरा से ऊर्जा का विकास करना है.अभी मैं कूलर को चलाने के लिए बाइक की बैटरी का उपयोग कर रही हूं लेकिन मुझे कचरे से ऊर्जा का उपयोग करना है. इसके लिए मैं बायो बैटरी बनाने के लिए काम कर रही हूं.

सुष्मिता बायो बैटरी बनाने में लगी हैं. उन्होंने बताया कि यह बैटरी गोबर से बनेगी, अभी इस पर शोध चल रहा है. केन्द्र सरकार के मुख्य सलाहकार वैज्ञानिक स्वच्छता सारथी संवाद के तहत सुष्मिता के प्रोजेक्ट को देखेंगे और चर्चा करेंगे. इस संवाद के लिए तीन से चार मिनट मिलेगा जिसमें सुष्मिता को पूरी जानकारी देनी होगी. सुष्मिता सान्याल ने कहा कि घड़े का कूलर व कचरा से ऊर्जा के निर्माण के अलावा छोटे प्लास्टिक डिब्बे और गमला में वर्मी कंपोस्ट मैं बनाती हूं उस पर भी चर्चा करेंगे.

मटका कूलर की खासियत
मटका कूलर की खासियत

सुष्मिता सान्याल के घड़ा का कूलर प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद ने देश भर के 60 प्रोजेक्ट में चयन किया था. अब इसी प्रोजेक्ट में ऊर्जा का साधन देने के लिए कूड़ा का इस्तेमाल कैसे हो इस पर शोध करने के लिए एक साल की फेलोशिप मिली है. बता दें कि यह कूलर खासकर मध्यवर्गीय परिवारों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रहा है. इस कार्य के लिए शिक्षिका सुष्मिता सान्याल को प्रधानमंत्री विज्ञान प्रोद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद ने अवार्ड लेटर और नेशनल फेलोशिप देकर सम्मानित किया जा चुका है. इस कूलर में ऊर्जा के लिए कचरों का इस्तेमाल कैसे किया जाए, इस पर सुष्मिता सान्याल नेशनल फेलोशिप से एक साल तक शोध करेंगी.

इस कूलर को बनाने में बाजार से सिर्फ एक प्लास्टिक फैन की खरीदारी की गई है. बाकी अन्य सामानों को घर से निकले कचरे का इस्तेमाल किया गया है. इन सभी सामानों को बाजार खरीदने से 400-500 रुपये का खर्च पड़ेगा. यह कूलर बिल्कुल आवाज नहीं करता है. इस कूलर में काफी ऊर्जा की जरूरत नहीं होती है. एक तरह से कह सकते है कि यह कूलर इको फ्रेंडली है. इस कूलर में बाल्टी का उपयोग सांचा के लिए किया गया है, जो कि कही भी आसानी से ले जाया जा सकता है.

यह कूलर मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए बनाया गया है. महिलाएं कम पैसों में कूलर को आसानी से बनाकर उपयोग कर सकती हैं. शिक्षिका ने बताया कि उनके इस अविष्कार को देख स्कूल के दो बच्चे भी उपयोग कर रहे हैं. बच्चे पढ़ाई करते समय कूलर का इस्तेमाल करते हैं. वहीं गोलगप्पे बेचने वालों ने भी इस कूलर को अपने ठेला पर लगवा रखा है.

ये भी पढ़ें - मुंबई में यात्रा पास के लिए क्यूआर कोड जरुरी, रेलवे स्टेशनों पर पहुंचे लोग

गया: बिहार के गया जिले के चंदौती प्रखण्ड स्थित चंदौती उच्च विद्यालय की शिक्षिका सुष्मिता सान्याल वेस्ट टू हेल्थ प्रोग्राम के तहत घड़े वाला कूलर तैयार किया था. अब इस कूलर का प्रजेंटेशन 14 अगस्त को केंद्र सरकार के प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक विजय राघवन (Vijay Raghavan) देखेंगे और इस पर चर्चा करेंगे. सुष्मिता सान्याल (Sushmita Sanyal) को केंद्र सरकार ने कचरे से ऊर्जा तैयार करने के लिए एक साल की फेलोशिप भी दी है.

दरअसल गया शहर के चंदौती मध्य विद्यालय की शिक्षिका सुष्मिता सान्याल कचरा प्रबंधन के लिए काम कर रही हैं. भारत सरकार के प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के 9 राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के वेस्ट टू वेल्थ मिशन के तहत अपशिष्ट प्रबंधन से ऊर्जा निर्माण करने के लिए सुष्मिता को फेलोशिप दी गई है.

मटका कूलर की खासियत
मटका कूलर की खासियत

सुष्मिता सान्याल के अब तक के कार्यों के लिए केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों और प्रधान सलाहकार वैज्ञानिक के सामने वर्चुअल तरीके से प्रेजेंटेशन होगा जिसमें उनके द्वारा किया गया कार्य व शोध पर चर्चा होगी.

इस बारे में शिक्षिका सुष्मिता सान्याल ने बताया कि मैं पिछले तीन साल से कचरे के निष्पादन और रिसाइक्लिंग के लिए काम कर रही हूं. घड़ा वाला कूलर घर से निकलने वाले कचरे से बना है जिसको बनाने में मात्र 500 रुपया खर्च आता है. मुझे केंद्र सरकार द्वारा जो फेलोशिप मिली है उसमें कचरा से ऊर्जा का विकास करना है.अभी मैं कूलर को चलाने के लिए बाइक की बैटरी का उपयोग कर रही हूं लेकिन मुझे कचरे से ऊर्जा का उपयोग करना है. इसके लिए मैं बायो बैटरी बनाने के लिए काम कर रही हूं.

सुष्मिता बायो बैटरी बनाने में लगी हैं. उन्होंने बताया कि यह बैटरी गोबर से बनेगी, अभी इस पर शोध चल रहा है. केन्द्र सरकार के मुख्य सलाहकार वैज्ञानिक स्वच्छता सारथी संवाद के तहत सुष्मिता के प्रोजेक्ट को देखेंगे और चर्चा करेंगे. इस संवाद के लिए तीन से चार मिनट मिलेगा जिसमें सुष्मिता को पूरी जानकारी देनी होगी. सुष्मिता सान्याल ने कहा कि घड़े का कूलर व कचरा से ऊर्जा के निर्माण के अलावा छोटे प्लास्टिक डिब्बे और गमला में वर्मी कंपोस्ट मैं बनाती हूं उस पर भी चर्चा करेंगे.

मटका कूलर की खासियत
मटका कूलर की खासियत

सुष्मिता सान्याल के घड़ा का कूलर प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद ने देश भर के 60 प्रोजेक्ट में चयन किया था. अब इसी प्रोजेक्ट में ऊर्जा का साधन देने के लिए कूड़ा का इस्तेमाल कैसे हो इस पर शोध करने के लिए एक साल की फेलोशिप मिली है. बता दें कि यह कूलर खासकर मध्यवर्गीय परिवारों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हो रहा है. इस कार्य के लिए शिक्षिका सुष्मिता सान्याल को प्रधानमंत्री विज्ञान प्रोद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद ने अवार्ड लेटर और नेशनल फेलोशिप देकर सम्मानित किया जा चुका है. इस कूलर में ऊर्जा के लिए कचरों का इस्तेमाल कैसे किया जाए, इस पर सुष्मिता सान्याल नेशनल फेलोशिप से एक साल तक शोध करेंगी.

इस कूलर को बनाने में बाजार से सिर्फ एक प्लास्टिक फैन की खरीदारी की गई है. बाकी अन्य सामानों को घर से निकले कचरे का इस्तेमाल किया गया है. इन सभी सामानों को बाजार खरीदने से 400-500 रुपये का खर्च पड़ेगा. यह कूलर बिल्कुल आवाज नहीं करता है. इस कूलर में काफी ऊर्जा की जरूरत नहीं होती है. एक तरह से कह सकते है कि यह कूलर इको फ्रेंडली है. इस कूलर में बाल्टी का उपयोग सांचा के लिए किया गया है, जो कि कही भी आसानी से ले जाया जा सकता है.

यह कूलर मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए बनाया गया है. महिलाएं कम पैसों में कूलर को आसानी से बनाकर उपयोग कर सकती हैं. शिक्षिका ने बताया कि उनके इस अविष्कार को देख स्कूल के दो बच्चे भी उपयोग कर रहे हैं. बच्चे पढ़ाई करते समय कूलर का इस्तेमाल करते हैं. वहीं गोलगप्पे बेचने वालों ने भी इस कूलर को अपने ठेला पर लगवा रखा है.

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