तिरुवनंतपुरम: Google ने एक विशेष Google डूडल के माध्यम से दिग्गज मलयालम कवियित्री नलप्पट बलमनी अम्मा के 113वें जन्मदिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि दी है. आमतौर पर मातृत्व की कवयित्री कहलाने वाली इस कवयित्री को अपने पुश्तैनी घर के बरामदे में बैठकर स्पेशल डूडल में लिखते हुए दिखाया गया है. बालमणि अम्मा ने अपनी पहली कविता 1930 में प्रकाशित की थी, उस वक्त उनकी उम्र 21 वर्ष थी.
बता दें कि, उन्होंने मलयालम कविता में पुरुष प्रभुत्व को तोड़ा और अपनी दमदार कविताओं के माध्यम से यह रेखांकित किया कि कविता पर महिलाओं का भी प्रभुत्व है. नलप्पट बालामणि का जन्म 19 जुलाई, 1909 को त्रिशूर जिले के पुन्नार्युरकुलम में हुआ था. वह अपने चाचा, कवि नलप्पट नारायण मेनन के मार्गदर्शन में पली-बढ़ीं और पूरी तरह से घर पर ही पढ़ाई की. उन्होंने 19 साल की उम्र में मातृभूमि के तत्कालीन प्रबंध निदेशक और प्रबंध संपादक वीएम नायर से शादी कर ली.
आगे बता दें कि उन्होंने अपनी शादी के बाद भी कविता के लिए जुनून को जारी रखा और 21 साल की उम्र में उनकी पहली कविता 'कूप्पू काई' (हाथ जोड़कर) प्रकाशित हुई. बालमणि अम्मा की कविता के तीन चरण थे. अपने लेखन के शुरुआती वर्षों के दौरान, बालमणि अम्मा ज्यादातर मातृत्व के विषयों पर काम करती थीं. दूसरे चरण में, उन्होंने मनुष्यों के आंतरिक संघर्षों, भ्रमों और नैतिक दुविधाओं के बारे में लिखा और तीसरे चरण में, उन्होंने दार्शनिक विषयों पर कविताएं लिखीं. उन्होंने अपने लेखन करियर के अंत में एक युद्ध-विरोधी कविता भी लिखी.
बालमणि अम्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार, एज़ुथाचन पुरस्कार और पद्मविभूषण से सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने सरस्वती सम्मान भी जीता था, जो देश में लेखकों के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है. 'अम्मा' (1934), मुथस्सी (1962), और 'मझुविंते कड़ा' (1966) बालमणि अम्मा की सबसे प्रसिद्ध रचनाएं हैं. 2004 में अल्जाइमर से उनकी मृत्यु हो गई. प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि और मलयालम लघु कथाकार, कमला दास उर्फ माधविकुट्टी, बालमणि अम्मा की बेटी हैं.
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