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क्या ग्लासगो में सोलर ग्रिड का आइडिया बनाएगा भारत को ग्लोबल लीडर?

ग्लासगो के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में अगर ग्लोबल सोलर ग्रिड का प्रस्ताव आगे बढ़ जाता है तो सोलर एनर्जी के लिए भारत के प्लान को नई दिशा मिलेगी. साथ ही वह ग्लोबल लीडर की भूमिका में आ सकता है. अभी भारत कई संधियों का हिस्सा है, मगर नेतृत्व का मौका उसे कभी नहीं मिला.

glasgow climate summit
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Published : Oct 20, 2021, 5:09 PM IST

हैदराबाद : 31 अक्टूबर से ग्लासगो में होने वाला जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 26) भारत के लिए खास है. इस सम्मेलन में ग्लोबल सोलर ग्रिड की योजना को अपनाया जा सकता है. इस योजना को लागू करने वाली संस्था इंटरनेशनल सोलर अलायंस ( ISA ) को उम्मीद है कि वैश्विक सहमति के बाद Global Solar Grid या वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड प्रोजेक्ट ' (OSOWOG) पर काम शुरू हो जाएगा. ग्लोबल सोलर ग्रिड का कॉन्सेप्ट भारत का है यानी इसका नेतृत्व भारत करेगा. अक्टूबर 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे इंटरनेशनल सोलर एलायंस की मीटिंग में पेश किया था. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, अगर यह सफल रहा तो यह चीन के इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रॉजेक्‍ट् वन रोड, वन बेल्ट का जवाब भी बन सकता है.

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इंटरनेशनल सोलर अलायंस का फाइल फोटो

ग्लोबल सोलर ग्रिड (Global Solar Grid) क्या है ?

दुनिया के कई देशों ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का संकल्प लिया है. कार्बन युक्त ईंधन के उपयोग को कम करने से ही यह लक्ष्य हासिल हो सकता है. भारत ने वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा से बिजली बनाने और एक कॉमन ग्रिड से दुनिया के 140 देशों को जोड़ने का खाका पेश किया था. प्लान के साथ यह बताया गया कि सूर्य कभी अस्त नहीं होता. क्योंकि यह दुनिया के एक हिस्से में डूबता है तो दूसरे में उगता है. यानी सारे देश मिलजुल कर 24 घंटे बिजली बना सकते हैं.

पहले इस प्रोजेक्ट में कर्क रेखा के ईर्द-गिर्द के देश शामिल किए गए. बाद में नियमों में बदलाव हुआ और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को मौका दिया गया. अब इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन या ISA 124 देशों में सहमति बना रहा है. रोजाना नए देश इस प्रोजेक्ट से जुड़ रहे हैं. हालांकि अमेरिका, चीन और पाकिस्तान इस गठबंधन में शामिल नहीं हुआ है.

सिंगल ग्रिड बनाने के लिए क्या है तैयारी : इस प्रोजेक्ट को तीन फेज में लागू करने की तैयारी है. फर्स्ट फेज में एशिया के देशों को आपस में ग्रिड से जोड़ा जाएगा. दूसरे फेज में एशियन कॉमन ग्रिड को अफ्रीका और मिडिल ईस्ट से जुड़ेंगे. तीसरे चरण ग्लोबल कनेक्टिविटी हासिल की जाएगी. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सिंगल पावर ग्रिड बनाने के लिए अधिक से अधिक देशों को शामिल करना है. इस ग्रिड का उपयोग दुनिया भर के देश कर सकेंगे. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, ऑस्‍ट्रेलिया की एक कंपनी पहले सिंगापुर में और बाद में इंडोनेशिया में सोलर एनर्जी सप्‍लाई करने की योजना बना रही है. कंपनी दुनिया के सबसे बड़ा सोलर फार्म (4,500 किलोमीटर) में सबसे बड़ी बैटरी बना रही है.

इससे दुनिया को फायदा क्या होगा : दुनिया में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी महज 7-8 फीसदी है. कार्बन न्यूट्रल होने के लिए 2030 तक 30 फीसदी तक लक्ष्य हासिल करना होगा. इसके बाद ही 2050 तक सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 70-80 फीसदी तक पहुंच सकती है. ग्लोबल सोलर ग्रिड की योजना से यह लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाएगा.

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सांकेतिक तस्वीर

प्रोजेक्ट की संभावित चुनौतियां कम नहीं है :

  • प्लान काफी बड़ा है और सोलर बिजली के उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण के लिए 1000 बिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी. इसके लिए फंड जुटाना पहली बड़ी चुनौती होगी.
  • अगर दो देशों में आपसी विवाद होता है तो प्रोजेक्ट का काम भी अधर में लटक जाएगा या सुस्त हो जाएगा और निवेशक देशों को नुकसान हो सकता है.
  • अमेरिका और चीन जैसे विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था ने इस परियोजना से अभी दूरी बना रखी है. इससे भोगौलिक और आर्थिक रूप से प्रक्रिया जटिल हो जाएगी.
  • तकनीकी दिक्कत यह है कि विश्व के अलग-अलग देशों में फ्रीक्‍वेंसी और ग्रिड की स्थिति अलग-अलग है. कई अफ्रीकी देशों में बिजली का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है. ऐसे में कॉमन ग्रिड को सप्लाई की निरंतरता में दिक्कत आएगी.
  • सोलर प्लांट लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जमीन की जरूरत होगी. विश्व के कई हिस्सों में सूरज की रोशनी भी कम देर के लिए होती है. ऐसे में बिजली स्टोर करने पर काफी खर्च करना पड़ेगा.
  • सौर बिजली की कीमत 2 रुपये प्रति यूनिट होती है. मगर भंडारण के कारण सात रुपये तक इसकी कीमत जा सकती है.

Global Solar Grid की सफलता तभी तय होगी, जब इसमें शामिल देश संधि पर विधिवत रूप से हस्ताक्षर करे. इसके अलावा बिजली भंडारण के खर्चों को कम करने के लिए ISA में शामिल देशों में भी द्विपक्षीय समझौतें हों. मसलन यूएई दिन के समय भारत को बिजली दे और भारत दिन में यूएई को.

हैदराबाद : 31 अक्टूबर से ग्लासगो में होने वाला जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 26) भारत के लिए खास है. इस सम्मेलन में ग्लोबल सोलर ग्रिड की योजना को अपनाया जा सकता है. इस योजना को लागू करने वाली संस्था इंटरनेशनल सोलर अलायंस ( ISA ) को उम्मीद है कि वैश्विक सहमति के बाद Global Solar Grid या वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड प्रोजेक्ट ' (OSOWOG) पर काम शुरू हो जाएगा. ग्लोबल सोलर ग्रिड का कॉन्सेप्ट भारत का है यानी इसका नेतृत्व भारत करेगा. अक्टूबर 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे इंटरनेशनल सोलर एलायंस की मीटिंग में पेश किया था. मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, अगर यह सफल रहा तो यह चीन के इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रॉजेक्‍ट् वन रोड, वन बेल्ट का जवाब भी बन सकता है.

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इंटरनेशनल सोलर अलायंस का फाइल फोटो

ग्लोबल सोलर ग्रिड (Global Solar Grid) क्या है ?

दुनिया के कई देशों ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का संकल्प लिया है. कार्बन युक्त ईंधन के उपयोग को कम करने से ही यह लक्ष्य हासिल हो सकता है. भारत ने वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा से बिजली बनाने और एक कॉमन ग्रिड से दुनिया के 140 देशों को जोड़ने का खाका पेश किया था. प्लान के साथ यह बताया गया कि सूर्य कभी अस्त नहीं होता. क्योंकि यह दुनिया के एक हिस्से में डूबता है तो दूसरे में उगता है. यानी सारे देश मिलजुल कर 24 घंटे बिजली बना सकते हैं.

पहले इस प्रोजेक्ट में कर्क रेखा के ईर्द-गिर्द के देश शामिल किए गए. बाद में नियमों में बदलाव हुआ और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को मौका दिया गया. अब इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन या ISA 124 देशों में सहमति बना रहा है. रोजाना नए देश इस प्रोजेक्ट से जुड़ रहे हैं. हालांकि अमेरिका, चीन और पाकिस्तान इस गठबंधन में शामिल नहीं हुआ है.

सिंगल ग्रिड बनाने के लिए क्या है तैयारी : इस प्रोजेक्ट को तीन फेज में लागू करने की तैयारी है. फर्स्ट फेज में एशिया के देशों को आपस में ग्रिड से जोड़ा जाएगा. दूसरे फेज में एशियन कॉमन ग्रिड को अफ्रीका और मिडिल ईस्ट से जुड़ेंगे. तीसरे चरण ग्लोबल कनेक्टिविटी हासिल की जाएगी. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य सिंगल पावर ग्रिड बनाने के लिए अधिक से अधिक देशों को शामिल करना है. इस ग्रिड का उपयोग दुनिया भर के देश कर सकेंगे. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, ऑस्‍ट्रेलिया की एक कंपनी पहले सिंगापुर में और बाद में इंडोनेशिया में सोलर एनर्जी सप्‍लाई करने की योजना बना रही है. कंपनी दुनिया के सबसे बड़ा सोलर फार्म (4,500 किलोमीटर) में सबसे बड़ी बैटरी बना रही है.

इससे दुनिया को फायदा क्या होगा : दुनिया में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी महज 7-8 फीसदी है. कार्बन न्यूट्रल होने के लिए 2030 तक 30 फीसदी तक लक्ष्य हासिल करना होगा. इसके बाद ही 2050 तक सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 70-80 फीसदी तक पहुंच सकती है. ग्लोबल सोलर ग्रिड की योजना से यह लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाएगा.

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सांकेतिक तस्वीर

प्रोजेक्ट की संभावित चुनौतियां कम नहीं है :

  • प्लान काफी बड़ा है और सोलर बिजली के उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण के लिए 1000 बिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी. इसके लिए फंड जुटाना पहली बड़ी चुनौती होगी.
  • अगर दो देशों में आपसी विवाद होता है तो प्रोजेक्ट का काम भी अधर में लटक जाएगा या सुस्त हो जाएगा और निवेशक देशों को नुकसान हो सकता है.
  • अमेरिका और चीन जैसे विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था ने इस परियोजना से अभी दूरी बना रखी है. इससे भोगौलिक और आर्थिक रूप से प्रक्रिया जटिल हो जाएगी.
  • तकनीकी दिक्कत यह है कि विश्व के अलग-अलग देशों में फ्रीक्‍वेंसी और ग्रिड की स्थिति अलग-अलग है. कई अफ्रीकी देशों में बिजली का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है. ऐसे में कॉमन ग्रिड को सप्लाई की निरंतरता में दिक्कत आएगी.
  • सोलर प्लांट लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जमीन की जरूरत होगी. विश्व के कई हिस्सों में सूरज की रोशनी भी कम देर के लिए होती है. ऐसे में बिजली स्टोर करने पर काफी खर्च करना पड़ेगा.
  • सौर बिजली की कीमत 2 रुपये प्रति यूनिट होती है. मगर भंडारण के कारण सात रुपये तक इसकी कीमत जा सकती है.

Global Solar Grid की सफलता तभी तय होगी, जब इसमें शामिल देश संधि पर विधिवत रूप से हस्ताक्षर करे. इसके अलावा बिजली भंडारण के खर्चों को कम करने के लिए ISA में शामिल देशों में भी द्विपक्षीय समझौतें हों. मसलन यूएई दिन के समय भारत को बिजली दे और भारत दिन में यूएई को.

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