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ज़ोमैटो, स्विगी, ओला, उबर से सामाजिक सुरक्षा लाभ की मांग लेकर SC पहुंचे 'गिग वर्कर्स' - सुप्रीम कोर्ट

ओला, उबर, जोमैटो और स्विगी पर 'मौलिक सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों' के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए 'गिग वर्कर्स' के ट्रेड यूनियन आईएफएटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 22, 2021, 10:24 PM IST

नई दिल्ली : इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफएटी) ने 'गिग वर्कर्स' के सामाजिक सुरक्षा लाभ की मांग को लेकर ओला, उबर, ज़ोमैटो और स्विगी के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है.

इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स जिसमें पूरे भारत में मोबाइलएप-आधारित परिवहन कर्मचारी और डिलीवरी कर्मचारी शामिल हैं. ओला, उबर, जोमैटो और स्विगी पर 'मौलिक सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों' के उल्लंघन का आरोप लगाया है. उनका आरोप है कि साझेदारी समझौतों के नाम पर उनका शोषण किया जाता है.

उनका आरोप है कि इन प्लेटफार्मों द्वारा जो भी शब्द और शब्दावली का उपयोग किया जाता है, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन ड्राइवरों, गिग श्रमिकों और प्लेटफार्मों के बीच एक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध है और इसे मान्यता की आवश्यकता है.

आईएफएटी (IFAT) ने कहा कि अनुबंध एक तरह से गिग वर्कर्स और इन एप्स के बीच संबंधों की प्रकृति को छिपाने के लिए किए गए थे. उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि उबर ड्राइवर वास्तव में कंपनी में कर्मचारी हैं और कुछ लाभों के हकदार हैं.

वर्कर्स एसोसिएशन ने कहा कि इस महामारी में भारत में ट्रांसपोर्ट गिग वर्कर्स घटती आय, ईंधन की बढ़ती कीमतों, कर्ज वसूली एजेंटों के साथ-साथ राज्य के अधिकारियों के भारी दबाव से जूझ रहे हैं.

पढ़ें- स्विगी और जोमैटो जीएसटी तो वसूलेगी मगर आपकी जेब पर नहीं बढ़ेगा बोझ

संघ का कहना है कि इन गिग श्रमिकों को असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम के तहत श्रमिकों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, जिससे उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

गौरतलब है कि काम के बदले अस्थाई तौर पर रखे गए कर्मचारियों को गिग वर्कर कहा जाता है. हालांकि ये लंबे समय तक कंपनी के साथ जुड़े रहते हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़े कर्मचारी, मोबाइल एप आधारित कर्मचारी और डिलीवरी कर्मचारी इसमें शामिल हैं.

नई दिल्ली : इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफएटी) ने 'गिग वर्कर्स' के सामाजिक सुरक्षा लाभ की मांग को लेकर ओला, उबर, ज़ोमैटो और स्विगी के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है.

इंडियन फेडरेशन ऑफ एप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स जिसमें पूरे भारत में मोबाइलएप-आधारित परिवहन कर्मचारी और डिलीवरी कर्मचारी शामिल हैं. ओला, उबर, जोमैटो और स्विगी पर 'मौलिक सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों' के उल्लंघन का आरोप लगाया है. उनका आरोप है कि साझेदारी समझौतों के नाम पर उनका शोषण किया जाता है.

उनका आरोप है कि इन प्लेटफार्मों द्वारा जो भी शब्द और शब्दावली का उपयोग किया जाता है, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन ड्राइवरों, गिग श्रमिकों और प्लेटफार्मों के बीच एक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध है और इसे मान्यता की आवश्यकता है.

आईएफएटी (IFAT) ने कहा कि अनुबंध एक तरह से गिग वर्कर्स और इन एप्स के बीच संबंधों की प्रकृति को छिपाने के लिए किए गए थे. उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि उबर ड्राइवर वास्तव में कंपनी में कर्मचारी हैं और कुछ लाभों के हकदार हैं.

वर्कर्स एसोसिएशन ने कहा कि इस महामारी में भारत में ट्रांसपोर्ट गिग वर्कर्स घटती आय, ईंधन की बढ़ती कीमतों, कर्ज वसूली एजेंटों के साथ-साथ राज्य के अधिकारियों के भारी दबाव से जूझ रहे हैं.

पढ़ें- स्विगी और जोमैटो जीएसटी तो वसूलेगी मगर आपकी जेब पर नहीं बढ़ेगा बोझ

संघ का कहना है कि इन गिग श्रमिकों को असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम के तहत श्रमिकों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, जिससे उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

गौरतलब है कि काम के बदले अस्थाई तौर पर रखे गए कर्मचारियों को गिग वर्कर कहा जाता है. हालांकि ये लंबे समय तक कंपनी के साथ जुड़े रहते हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़े कर्मचारी, मोबाइल एप आधारित कर्मचारी और डिलीवरी कर्मचारी इसमें शामिल हैं.

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