गुवाहाटी: हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति देवाशीष बरुआ की अदालत ने महाधिवक्ता की सुनवाई के बाद कहा कि विद्वान जिला न्यायाधीश ने धारा 439 सीआरपीसी के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया. जो कि मुख्य रूप से जमानत देने या इनकार करने के उद्देश्य से था. उन्होंने असम के पूरे पुलिस बल के संबंध में कुछ टिप्पणियां की हैं, जो न केवल पुलिस बल का मनोबल गिराती हैं बल्कि पुलिस बल पर आरोप भी लगाती हैं.
उल्लेखनीय है कि बारपेटा जिला अदालत के न्यायमूर्ति अपरेश चक्रवर्ती ने जिग्नेश मेवाणी को जमानत देते हुए कहा था कि उपरोक्त के मद्देनजर और वर्तमान की तरह झूठी प्राथमिकी दर्ज होने से रोकने, पुलिस के बयान को विश्वसनीयता देने के लिए आधी रात को पुलिस हिरासत से भागने का प्रयास करने वाले आरोपी व्यक्तियों की गिरफ्तारी जैसी घटनाएं होती हैं. पुलिस अक्सर ऐसे आरोपी को गोली मार देती है या घायल कर दिया जाता है. यह नियमित कार्य हो गया है.
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राज्य की घटना को देखते हुए गुवाहाटी उच्च न्यायालय शायद असम पुलिस को कुछ उपाय करके खुद को सुधारने का निर्देश देने पर विचार कर सकता है. जैसे कानून व्यवस्था में लगे प्रत्येक पुलिस कर्मियों को बॉडी कैमरा पहनने का निर्देश देना, वाहनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की बात कहना आदि.