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हिमस्खलन की पूर्व में मिल सकेगी स्टीक जानकारी, वाडिया इंस्टीट्यूट के पूर्व वैज्ञानिक और उनकी टीम ने तैयार किया मॉडल

Wadia Institute of Himalayan Geology कुछ सालों में उत्तराखंड में हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं, जो प्रकृति प्रेमियों और वैज्ञानिकों का लिए शोध का विषय बना हुआ है. वहीं वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक और उनकी टीम ने ऐसा मॉडल तैयार किया है, जो हिमस्खलन की पूर्व में सटीक जानकारी देगा. वहीं टीम द्वारा मॉडल को केंद्र और राज्य सरकार के सामने रखने की तैयारी है.

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Published : Aug 13, 2023, 10:14 AM IST

देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों में साल दर साल हिमस्खलन की घटनाओं में इजाफा हो रहा है. जिससे हर साल लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक सुशील कुमार और उनकी टीम ने एक मॉडल तैयार किया है, जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले से ही सूचना दे देगा. वैज्ञानिकों ने बताया है कि 76% यह मॉडल सटीक जानकारी देने में सफल हो चुका है. जिसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के सामने इस मॉडल को रखा जाएगा.

इस मॉडल के तैयार होने से सबसे ज्यादा फायदा भारतीय सेना को होगा. भारतीय सेना कई ऐसे पॉइंट पर आज भी तैनात रहती है, जहां पर हिमस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं. वैज्ञानिक सुशील कुमार की मानें तो हमने स्विस आल्पस (Swiss Alps) के डेटासेट की मदद से न्यूरल नेटवर्क मॉडल तैयार किया है.इसका परीक्षण जब किया गया तो स्विच आल्पस के उच्च गुणवत्ता के सब डाटा सेट का प्रयोग मौसम विश्लेषण के साथ किया गया और इसके परिणाम बेहद सुखद निकले हैं. 76% जानकारी हादसे से पहले हमें मिली हैं.
पढ़ें-उत्तराखंड में बढ़ रही एवलॉन्च की घटनाएं, आज भी कई शव पहाड़ियों में दफन, बड़े हादसों पर एक नजर

इस मॉडल को बनाने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक सुशील कुमार की टीम और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी हैदराबाद कैंपस की विपश्यना शर्मा और डीआईटी यूनिवर्सिटी की सीएससी हेड प्रोफेसर रमा द्वारा यह शोध किया गया है. खास बात ये है कि ये शोध नेशनल पत्रिका नेचुरल हजार्ड एंड अर्थ सिस्टम साइंस Natural Hazards and Earth System Sciences (NHESS) में प्रकाशित हुआ है. अब ये टीम हिमालय क्षेत्रों के वैज्ञानिकों से संपर्क साध रही है, ताकि हिमस्खलन का डाटा एकत्रित किया जा सके.
पढ़ें-केदारनाथ में अंधाधुंध निर्माण, बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट बन रहा एवलॉन्च का कारण, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

जल्द ही उत्तराखंड में भी इस मॉडल को लागू किया जा सकेगा. ये मॉडल एक डिवाइस के साथ काम करेगी.फिलहाल अगर ये मॉडल देश में लागू हुआ तो लोगों को हिमस्खलन से होने वाले जानमाल के नुकसान से बचाया जा सकेगा. साथ ही लोगों को पूर्व में हिमस्खलन की सूचना मिल जाएगी.

देहरादून (उत्तराखंड): उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों में साल दर साल हिमस्खलन की घटनाओं में इजाफा हो रहा है. जिससे हर साल लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक सुशील कुमार और उनकी टीम ने एक मॉडल तैयार किया है, जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में होने वाली घटनाओं के बारे में पहले से ही सूचना दे देगा. वैज्ञानिकों ने बताया है कि 76% यह मॉडल सटीक जानकारी देने में सफल हो चुका है. जिसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के सामने इस मॉडल को रखा जाएगा.

इस मॉडल के तैयार होने से सबसे ज्यादा फायदा भारतीय सेना को होगा. भारतीय सेना कई ऐसे पॉइंट पर आज भी तैनात रहती है, जहां पर हिमस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं. वैज्ञानिक सुशील कुमार की मानें तो हमने स्विस आल्पस (Swiss Alps) के डेटासेट की मदद से न्यूरल नेटवर्क मॉडल तैयार किया है.इसका परीक्षण जब किया गया तो स्विच आल्पस के उच्च गुणवत्ता के सब डाटा सेट का प्रयोग मौसम विश्लेषण के साथ किया गया और इसके परिणाम बेहद सुखद निकले हैं. 76% जानकारी हादसे से पहले हमें मिली हैं.
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इस मॉडल को बनाने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के पूर्व वैज्ञानिक सुशील कुमार की टीम और बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस पिलानी हैदराबाद कैंपस की विपश्यना शर्मा और डीआईटी यूनिवर्सिटी की सीएससी हेड प्रोफेसर रमा द्वारा यह शोध किया गया है. खास बात ये है कि ये शोध नेशनल पत्रिका नेचुरल हजार्ड एंड अर्थ सिस्टम साइंस Natural Hazards and Earth System Sciences (NHESS) में प्रकाशित हुआ है. अब ये टीम हिमालय क्षेत्रों के वैज्ञानिकों से संपर्क साध रही है, ताकि हिमस्खलन का डाटा एकत्रित किया जा सके.
पढ़ें-केदारनाथ में अंधाधुंध निर्माण, बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट बन रहा एवलॉन्च का कारण, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

जल्द ही उत्तराखंड में भी इस मॉडल को लागू किया जा सकेगा. ये मॉडल एक डिवाइस के साथ काम करेगी.फिलहाल अगर ये मॉडल देश में लागू हुआ तो लोगों को हिमस्खलन से होने वाले जानमाल के नुकसान से बचाया जा सकेगा. साथ ही लोगों को पूर्व में हिमस्खलन की सूचना मिल जाएगी.

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