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पूर्व सेना प्रमुख बोले- भारत के लिए मुख्य खतरा चीन, सिर्फ ऐप्स पर प्रतिबंध काफी नहीं

भारत और चीन के बीच सीमाओं पर लगातार तनातनी बनी रहती है. इसे लेकर पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज नरवणे का कहना है कि भारत के लिए मुख्य खतरा पाकिस्तान नहीं, बल्कि चीन है.

Indo-China army
भारत-चीन सेना
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Published : Jul 18, 2023, 6:57 PM IST

नई दिल्ली: पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज नरवणे ने मंगलवार को यह बात कही कि डोकलाम के बाद भी, हम यह कहने में झिझक रहे थे कि चीन हमारा मुख्य प्रतिद्वंद्वी है और 2020 की झड़प के बाद, वह दृष्टिकोण बदल गया है और विकसित हो गया है और अब हम स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि चीन हमारा मुख्य खतरा है, पाकिस्तान नहीं. पूर्व सेना प्रमुख 'महत्वपूर्ण परिवर्तन: रक्षा सुधार, सैन्य परिवर्तन, और भारत की नई रणनीतिक मुद्रा' शीर्षक वाली ओआरएफ-आरएसआईएस विशेष रिपोर्ट लॉन्च पर बोल रहे थे.

यहां उन्होंने चीन पर स्पष्ट बयान जारी करने के लिए विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री की सराहना की. नरवणे ने कहा कि चीन पर स्पष्ट बयान जारी करने के लिए विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री की प्रशंसा की जानी चाहिए कि जब तक एलएसी पर संबंध सामान्य नहीं हो जाते, हमारे संबंध सामान्य नहीं हो सकते. इकाइयों के पुनरुद्धार के बारे में बोलते हुए, पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि पहले सेना का 2/3 भाग पश्चिमी मोर्चे का सामना कर रहा था जबकि केवल 1/3 भाग उत्तरी मोर्चे का सामना कर रहा था. लेकिन गलवान झड़प के बाद अब यह बदल गया है और पुन: अभिविन्यास हुआ है.

उन्होंने कहा कि 45 प्रतिशत अब उत्तरी मोर्चे पर तैनात हैं, जबकि 55 प्रतिशत पश्चिमी मोर्चे की देखभाल कर रहे हैं. इसके पीछे प्रमुख कारण केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में चल रहा उग्रवाद है, जहां हमने बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है. वहीं, पुनर्रचना और आंतरिक सुरक्षा खतरे के बारे में बात करते हुए नरवणे ने कहा कि आंतरिक सुरक्षा गतिशीलता इकाइयों को पुनर्निर्देशित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यहां यह ध्यान रखना उचित है कि विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर इस साल जी20 और एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर अपने नए चीनी समकक्ष किन गैंग से पहले ही मुलाकात कर चुके हैं.

विदेश मंत्री लगातार कहते रहे हैं कि जब तक एलएसी पर शांति नहीं हो जाती, तब तक भारत-चीन के बीच अच्छे संबंध नहीं हो सकते, जबकि चीन पहले भी भारत से आग्रह कर चुका है कि वह सीमा विवाद को अपने रिश्ते को परिभाषित न करने दे. भारत द्वारा टिकटॉक और अन्य चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद चीन ने भी भारत से आग्रह किया है कि वह एलएसी विवाद के बदले यहां काम कर रही उसकी कंपनियों पर हमला न करे.

नरवणे ने भारत-चीन संबंधों के बारे में बोलते हुए कहा कि भारत द्वारा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना महज़ एक दिखावा है, क्योंकि गलवान झड़प के चरम पर भी, भारत-चीन व्यापार अपने चरम पर था. सीमा विवाद पर उन्होंने आगे कहा कि हमारी सेनाएं चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. सीमा वार्ता फिर से शुरू करने का यह सही समय है और वह भी मजबूत स्थिति से. चीन ने पहले कहा था कि सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों को आधा रास्ता तय करना चाहिए. नरवणे ने कहा कि चीन को आधे रास्ते तक आना है, यह सब लेने और देने पर निर्भर करता है.

नई दिल्ली: पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज नरवणे ने मंगलवार को यह बात कही कि डोकलाम के बाद भी, हम यह कहने में झिझक रहे थे कि चीन हमारा मुख्य प्रतिद्वंद्वी है और 2020 की झड़प के बाद, वह दृष्टिकोण बदल गया है और विकसित हो गया है और अब हम स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि चीन हमारा मुख्य खतरा है, पाकिस्तान नहीं. पूर्व सेना प्रमुख 'महत्वपूर्ण परिवर्तन: रक्षा सुधार, सैन्य परिवर्तन, और भारत की नई रणनीतिक मुद्रा' शीर्षक वाली ओआरएफ-आरएसआईएस विशेष रिपोर्ट लॉन्च पर बोल रहे थे.

यहां उन्होंने चीन पर स्पष्ट बयान जारी करने के लिए विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री की सराहना की. नरवणे ने कहा कि चीन पर स्पष्ट बयान जारी करने के लिए विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री की प्रशंसा की जानी चाहिए कि जब तक एलएसी पर संबंध सामान्य नहीं हो जाते, हमारे संबंध सामान्य नहीं हो सकते. इकाइयों के पुनरुद्धार के बारे में बोलते हुए, पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि पहले सेना का 2/3 भाग पश्चिमी मोर्चे का सामना कर रहा था जबकि केवल 1/3 भाग उत्तरी मोर्चे का सामना कर रहा था. लेकिन गलवान झड़प के बाद अब यह बदल गया है और पुन: अभिविन्यास हुआ है.

उन्होंने कहा कि 45 प्रतिशत अब उत्तरी मोर्चे पर तैनात हैं, जबकि 55 प्रतिशत पश्चिमी मोर्चे की देखभाल कर रहे हैं. इसके पीछे प्रमुख कारण केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में चल रहा उग्रवाद है, जहां हमने बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है. वहीं, पुनर्रचना और आंतरिक सुरक्षा खतरे के बारे में बात करते हुए नरवणे ने कहा कि आंतरिक सुरक्षा गतिशीलता इकाइयों को पुनर्निर्देशित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यहां यह ध्यान रखना उचित है कि विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर इस साल जी20 और एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर अपने नए चीनी समकक्ष किन गैंग से पहले ही मुलाकात कर चुके हैं.

विदेश मंत्री लगातार कहते रहे हैं कि जब तक एलएसी पर शांति नहीं हो जाती, तब तक भारत-चीन के बीच अच्छे संबंध नहीं हो सकते, जबकि चीन पहले भी भारत से आग्रह कर चुका है कि वह सीमा विवाद को अपने रिश्ते को परिभाषित न करने दे. भारत द्वारा टिकटॉक और अन्य चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद चीन ने भी भारत से आग्रह किया है कि वह एलएसी विवाद के बदले यहां काम कर रही उसकी कंपनियों पर हमला न करे.

नरवणे ने भारत-चीन संबंधों के बारे में बोलते हुए कहा कि भारत द्वारा चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना महज़ एक दिखावा है, क्योंकि गलवान झड़प के चरम पर भी, भारत-चीन व्यापार अपने चरम पर था. सीमा विवाद पर उन्होंने आगे कहा कि हमारी सेनाएं चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. सीमा वार्ता फिर से शुरू करने का यह सही समय है और वह भी मजबूत स्थिति से. चीन ने पहले कहा था कि सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों को आधा रास्ता तय करना चाहिए. नरवणे ने कहा कि चीन को आधे रास्ते तक आना है, यह सब लेने और देने पर निर्भर करता है.

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