नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तकरीबन दस महीने से गतिरोध बना हुआ है. इस दौरान दोनों देशों के बीच नौ दौर की कमांडर स्तर की वार्ता हुई. साथ ही दोनों देशों की सेनाओं ने हाड़ कंपाती ठंड का सामना भी किया. हालांकि, दोनों देशों की सेना पूर्वी लद्दाख की पैगोंग त्सो उत्तर और पूर्व तट से पीछे हटना शुरू कर दिया है.
अब चीनी सैनिक अपने डटे रहने के लिए बनाए गए शेल्टर (आश्रय) को नष्ट कर रहे हैं और अन्य संरचनाओं को भी हटा रहे हैं, जो उन्होंने कब्जे के दौरान स्थापित की थी.
एक अधिकारी का कहना है कि जब पैगोंग त्सो से विघटन समाप्त हो जाएगा. इसके बाद दोनों देश गोगरा हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र और देपसांग में विघटन करने पर जोर देंगे.
मीडिया चैनलों में सैनिकों, तबूंओं को उखडनें और टैकों को वापस जाते दृश्य खूब दिखाया जा रहा है, लेकिन काराकोरम-हिमालय के विकास ने एक दिशा ले ली है, जिसकी भारत और चीन ने योजना नहीं बनाई थी.
यह भारत और चीन के बीच एलएसी के पास कई बिंदुओं पर चल रहे गतिरोध को खत्म करने के लिए सैनिकों के पीछे हटने संबंधी समझौते के अनुसार हो रहा है.
अमेरिकी चुनाव और क्वाड
भारतीय और चीनी ने अमेरिकी हितों और फेसऑफ पर दांव लगाया था. इस दांव का आधार यह था कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अपने पद पर बने रहेंगे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
ट्रंप के राष्ट्रपति न बनने के साथ ही क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया) समूह में फोकस खो दिया है और लड़खड़ाने लगा, क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन बने हैं, अब देखना होगा की बाइडेन चीन को कहां तक काउंटर करेंगे.
जैसा कि स्पष्ट है कि अब बाइडेन रूस के साथ संबंध अच्छे करने के लिए अधिक जोर देंगे और वह एंटी चाइना इंडो पैसफिक नीति का अनुसरण करने के बजाय यूरोप-केंद्रित नाटो को पुनर्जीवित करने में अधिक दिलचस्पी दिखाएंगे.
ट्रंप की हार ने भारतीय आक्रामकता को भी कम कर दिया, क्योंकि अब इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि चीन मुकाबला करने में अमेरिका भारत की प्रत्यक्ष सहायता करेगा.
यह भारत और चीन के बीच एलएसी के पास कई बिंदुओं पर चल रहे गतिरोध को खत्म करने के लिए सैनिकों के पीछे हटने संबंधी समझौते के अनुसार हो रहा है.
भारतीय परिपेक्ष्य
भारत के सख्त रवैये की वजह से चीन पीछे हटने को राजी हुआ, क्योंकि भारतीय सेना हाड़ कंपाती ठंड में टिकी रही और चीन को हर कदम पर मात दी.
भारतीय सैनिकों ने अपने सीमा का बचाव किया और पीएलए की आक्रामकता को खत्म कर दिया. विशेषकर भारतीय सेना ने पैंगोंग त्सो में 28-30 अगस्त को चीन के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया. यह भारतीय सेना के रवैये से एक बदलाव था, जिससे चीन विघटन करने पर राजी हुआ.
रूस
रूस भारत और चीन का करीबी माना जाता है. रूस के संबंध दोनों देशों से अच्छे हैं. एलएसी पर गतिरोध खत्म करने में रूस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, रूस ने दोनों देशों को एक मेज पर लाने का काम किया है. रूस ने एक वार्ताकार के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रूस की नीति दोनों देशों के प्रति तटस्थ थी. इससे दोनों देशों को एहसास हुआ है कि रूस से समर्थन नहीं मिल सकता है.
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नई विशेषताएं
भारत-चीन सीमा विवाद में कुछ नई विशेषताएं भी जोड़ी गई हैं. चीन ने 1959 के सीमांकन के आधार पर सीमा रेखा के समाधान की मांग करके एक नई स्थिति बनाई है. पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट ने विवाद में एक नया आयाम जोड़ा है. अब से इस क्षेत्र का हिस्सा भविष्य की सभी सीमा वार्ताओं में भी शामिल होगा.
सीमा पर हुए घटनाक्रमों ने दोनों देशों की सेना और उपकरण की तैनाती में अंतिम रूप दिया है. भारतीय परिप्रेक्ष्य से इस गतिरोध ने पश्चिमी मोर्चे से उत्तरी मोर्चे पर दो-फ्रंट युद्ध स्थिति में बदलाव की आवश्यकताओं पर जोर दिया है. या कहें तो सैन्य शक्ति और उपकरणों की मजबूती पर जोर दिया है.
पैंगोंग झील के दक्षिण में जहां दोनों देशों की सेनाएं बिल्कुल आमने-सामने थीं, वहां से भी सेनाएं पीछे हटने लगी हैं. यहां कुछ स्थानों पर, तो दोनों देशों के टैंक मात्र 100 मीटर के फासले पर थे.
उल्लेखनीय है एलएसी पर दोनों देशों के बीच करीब दस महीने से सैन्य गतिरोध बना हुआ है. पैंगोंग झील के उत्तरी तट पर टकराव तब शुरू हुआ, जब चीनी सैनिकों ने पिछले साल मई में झील के अंदर और तट पर घुसपैठ करते हुए यथास्थिति बदलने का प्रयास किया था. धीरे-धीरे यह टकराव और क्षेत्रों में फैल गया. झील के दक्षिणी तट पर भारत ने चीन के मुकाबले पहाड़ियों पर अपनी सामरिक स्थिति काफी मजबूत कर ली थी.
हालांकि, अब दोनों देशों की ओर से गतिरोध वाले स्थानों से सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू हुई है, जिससे गतिरोध खत्म होता नजर आ रहा है.
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