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भारत में पहली बार कृत्रिम स्तन बनाने के लिए मैट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल - Breast Reconstruction

देश में पहली बार पश्चिम बंगाल के एसएसकेएम अस्पताल में मैट्रिक्स तकनीक का उपयोग करके कृत्रिम स्तन बनाया गया. इस टेक्नीक को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) द्वारा भी मंजूरी दी जा चुकी है. इस तकनीक से कैंसर पीड़ित महिलाओं को काफी फायदा होगा.

Use of Matrix Technique for Breast Reconstruction
स्तन पुनर्निर्माण के लिए मैट्रिक्स टेक्नीक का इस्तेमाल
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Published : Jul 4, 2022, 8:12 AM IST

कोलकाता : राज्य के स्वामित्व वाला एसएसकेएम अस्पताल स्तन कैंसर के इलाज के लिए मैट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने वाला दक्षिण एशिया का पहला अस्पताल बन गया है. इस तकनीक के जरिये पहली बार देश में कृत्रिम स्तन बनाया गया. इस तकनीक को इंग्लैंड से भारत लाने की पहल में डॉ.दीपेंद्र सरकार ने अहम भूमिका अदा की. बता दें कि दोनों स्तनों को हटा दिए जाने के बाद कृत्रिम स्तन बनाने के लिए मैट्रिक्स तकनीक का उपयोग किया जाता है. हालांकि भारत में अभी तक उस चिकित्सा प्रक्रिया को मंजूरी नहीं मिली थी. लेकिन हाल ही में, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं को नया जीवन देने के लिए इस तकनीक को मंजूरी दे दी है.

इस बारे में डॉ. दीपेंद्र सरकार (Dr Diptendra Sarkar) ने बताया कि कोलकाता की 37 वर्षीय एक महिला के दाहिने स्तन में ट्यूमर का पता चला था. जांच से महिला के स्तन कैंसर के बारे में पता चला. इस पर महिला ने डॉक्टरों से उसके दो स्तन काटने का आग्रह किया. इस स्थिति में उसके बीआरसीए परीक्षण और कैंसर जीन परीक्षण से पता चला कि उसे आनुवंशिक कारणों से कैंसर हुआ है. फलस्वरूप डॉक्टरों ने मरीज के दो स्तनों और गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब को काटने का फैसला किया.

डॉक्टर दीपेंद्र सरकार ने कहा कि सर्जरी से कई दिन पहले ही ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के द्वारा मैट्रिक्स जिसका वैज्ञानिक नाम असेलुलर डर्मल मैट्रिक्स है, को उपयोग के लिए मंजूरी दी गई थी. इसके बाद डॉ.दीपेंद्र ने ब्रिटेन में अपने एक डॉक्टर मित्र की मदद से मैट्रिक्स टेक्नीक को पश्चिम बंगाल के एसएसकेएम अस्पताल लेकर आए.

फिलहाल महिला की जान को खतरा देखते हुए हाल ही में उसके दोनों स्तनों को हटा दिए जाने के बाद मैट्रिक्स तकनीक का उपयोग करके कृत्रिम स्तनों को बना दिया गया. हालांकि डॉक्टरों ने लैप्रोस्कोपी से गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब को भी काटकर अलग कर दिया गया. अभी तक इस तरह के इलाज की सुविधा केवल विदेशों में ही थी, लेकिन दक्षिण एशिया के एसएसकेएम अस्पताल में पहली बार इसका सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है.

ये भी पढ़ें - कैंसर संस्थानों ने भारत में व्यापक जागरूकता पर जोर दिया

कोलकाता : राज्य के स्वामित्व वाला एसएसकेएम अस्पताल स्तन कैंसर के इलाज के लिए मैट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने वाला दक्षिण एशिया का पहला अस्पताल बन गया है. इस तकनीक के जरिये पहली बार देश में कृत्रिम स्तन बनाया गया. इस तकनीक को इंग्लैंड से भारत लाने की पहल में डॉ.दीपेंद्र सरकार ने अहम भूमिका अदा की. बता दें कि दोनों स्तनों को हटा दिए जाने के बाद कृत्रिम स्तन बनाने के लिए मैट्रिक्स तकनीक का उपयोग किया जाता है. हालांकि भारत में अभी तक उस चिकित्सा प्रक्रिया को मंजूरी नहीं मिली थी. लेकिन हाल ही में, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं को नया जीवन देने के लिए इस तकनीक को मंजूरी दे दी है.

इस बारे में डॉ. दीपेंद्र सरकार (Dr Diptendra Sarkar) ने बताया कि कोलकाता की 37 वर्षीय एक महिला के दाहिने स्तन में ट्यूमर का पता चला था. जांच से महिला के स्तन कैंसर के बारे में पता चला. इस पर महिला ने डॉक्टरों से उसके दो स्तन काटने का आग्रह किया. इस स्थिति में उसके बीआरसीए परीक्षण और कैंसर जीन परीक्षण से पता चला कि उसे आनुवंशिक कारणों से कैंसर हुआ है. फलस्वरूप डॉक्टरों ने मरीज के दो स्तनों और गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब को काटने का फैसला किया.

डॉक्टर दीपेंद्र सरकार ने कहा कि सर्जरी से कई दिन पहले ही ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के द्वारा मैट्रिक्स जिसका वैज्ञानिक नाम असेलुलर डर्मल मैट्रिक्स है, को उपयोग के लिए मंजूरी दी गई थी. इसके बाद डॉ.दीपेंद्र ने ब्रिटेन में अपने एक डॉक्टर मित्र की मदद से मैट्रिक्स टेक्नीक को पश्चिम बंगाल के एसएसकेएम अस्पताल लेकर आए.

फिलहाल महिला की जान को खतरा देखते हुए हाल ही में उसके दोनों स्तनों को हटा दिए जाने के बाद मैट्रिक्स तकनीक का उपयोग करके कृत्रिम स्तनों को बना दिया गया. हालांकि डॉक्टरों ने लैप्रोस्कोपी से गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब को भी काटकर अलग कर दिया गया. अभी तक इस तरह के इलाज की सुविधा केवल विदेशों में ही थी, लेकिन दक्षिण एशिया के एसएसकेएम अस्पताल में पहली बार इसका सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है.

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