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Special Interview: पूर्व आरबीआई चीफ का दावा, नजदीक है वित्तीय आपातकाल का संकट - पूर्व आरबीआई चीफ का दावा

बढ़ते कर्ज वाले पांच राज्यों में से आंध्र प्रदेश भी एक है. जीएसडीपी की तुलना में यह वृद्धि पिछले वर्ष से अधिक है. सिर्फ बकाया कर्ज ही नहीं बल्कि सरकार की गारंटी वाले कर्ज की अदायगी भी सरकार की ही जिम्मेदारी है. भारतीय राज्यों में कर्ज की सीमा को समझने के लिए बजट में अघोषित अतिरिक्त ऋणों को जोड़ना आवश्यक है. ईटीवी भारत ने इन्हीं मुद्दों पर भारतीय अर्थशास्त्री, सेंट्रल बैंकर और आरबीआई के पूर्व गवर्नर दुव्वुरी सुब्बाराव से विशेष बातचीत की है. पढ़ें यह रिपोर्ट.

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Published : Apr 27, 2022, 3:55 PM IST

हैदराबाद: ईटीवी भारत के साथ विशेष साक्षात्कार के दौरान आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने आसन्न ऋण संकट और वित्तीय आपात स्थिति के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि राज्य, निवेश खर्च के लिए उधार ले सकते हैं. लेकिन चिंताजनक स्थिति ये है कि वे दिन-प्रतिदिन के खर्च, वेतन, सब्सिडी और यहां तक ​​कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी उधार ले रहे हैं. यदि यही हालात बने रहे तो हमारी स्थिति भी श्रीलंका की तरह हो सकती है.

पूर्व आरबीआई चीफ ने कहा कि केंद्र ने राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम बनाया है. लेकिन राज्य, ऑफ-बजट उधार ले रहे हैं. केंद्र को इस मामले में दखल देना चाहिए और कर्ज कम करने के उपाय सुझाने चाहिए. इस पर शर्तों को लागू करने का भी विचार करना चाहिए. साथ ही उन राज्यों पर वित्तीय आपातकाल लगाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए जो अभी भी गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम कर रहे हैं.

सवाल: ऐसा क्यों है कि हमारी राज्य सरकारें अधिक कर्ज ले रही हैं? वे आय के स्वयं के स्रोत बनाने पर ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर रहे हैं?

जवाब: वित्तीय प्रबंधन के एक भाग के रूप में ऋण की आवश्यकता होती है. यह समस्या असीमित उधार की वजह से है. अगर सरकार किसी चीज पर निवेश करने के लिए कर्ज की राशि खर्च करती है, तो इससे आय होगी. तब वे कर्ज भी चुका सकते हैं. लेकिन अगर करों में कटौती की जाए, सब्सिडी और लोकलुभावन योजनाओं के लिए ऋण खर्च किया जाए तो मुश्किल होगी. इससे हम श्रीलंका जैसे गंभीर आर्थिक संकट से घिर सकते हैं. हमारे देश में कुछ राज्य इस तरह से कर रहे हैं. आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा कर्ज वाले लेने वाले शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है.

सवाल: क्या हमें चिंतित होना चाहिए? ऐसे राज्य हैं जो जीएसडीपी पर 50 प्रतिशत या उससे अधिक का कर्ज लेते हैं. यह उधार लेने की सीमा से अधिक है तो आरबीआई दखल क्यों नहीं दे रहा?

जवाब: किसी भी राज्य के बारे में विशेष रूप से टिप्पणी नहीं की जा सकती. आरबीआई की रिपोर्ट सभी राज्यों के लिए होती है. रिपोर्ट के अनुसार राज्यों के कर्ज और परिणामस्वरूप ब्याज दरें बढ़ रही हैं. विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं है. आप ऑफ-बजट ऋणों के बारे में सही हैं. हम आमतौर पर किसी भी रिपोर्ट को बजट में पेश किए गए नंबरों के आधार पर देखते हैं. वित्तीय प्रबंधन और भुगतान परेशानी मुक्त दिखाई दे रहे हैं लेकिन हमें नहीं पता कि पर्दे के पीछे क्या चल रहा है. गारंटी के साथ निगमों से उधार भी बजट में शामिल किया जाना चाहिए.

सवाल: श्रीलंका के वित्तीय संकट का कारण क्या है?

जवाब: इसके दो कारण हैं. विदेशी निर्भरता और सरकार की लोकलुभावन योजनाएं. श्रीलंका, काफी हद तक विदेशों में काम कर रहे अपने नागरिकों द्वारा भेजे गए धन और पर्यटन से होने वाली आय पर ही निर्भर है. 2019 में हुए बम विस्फोट और कोविड-19 ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है. महामारी के दौरान चाय और कपड़ा निर्यात ठप हो गया. नतीजतन यह चीन सहित अन्य देशों से उधार लिए गए उच्च-ब्याज ऋण को चुकाने में असमर्थ है. दूसरी ओर सरकार ने पहले करों में कमी की और ब्याज मुक्त ऋण दिया. रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध के कारण खाद्यान्न की कीमतों में तेजी आई. चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि हुई. खर्च बढ़ने से आमदनी भी घट गई. जिससे विकास दर डूब गया. मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण मुद्रा का अवमूल्यन हुआ. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था कर्ज में डूबती गई, वैसे-वैसे आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूती गईं.

सवाल: उधार लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है? यदि खर्च सीमित करने के नियम हों तो सत्ताधारी दल को सत्ता का दुरुपयोग करने से रोका जा सकता है?

जवाब: सत्ताधारी दल अपनी सत्ता संभावनाओं को बढ़ाने और कर्ज के जाल में फंसने के लिए लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करते हैं. अनुच्छेद 293 के अनुसार किसी भी राज्य सरकार को ऋण लेने के लिए केंद्र की अनुमति की आवश्यकता होती है. केंद्र, स्थिति पर विचार करेगा और उधारी को आगे बढ़ाने के लिए कुछ शर्तें लगा सकता है. वित्तीय आपातकाल भी लगाया जा सकता है. हालांकि भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.

सवाल: सरकारों को पूंजी निर्माण पर ध्यान केंद्रित किए बिना कॉरपोरेट्स को भारी सब्सिडी देने या मुफ्त में बांटने से कैसे रोका जाए?

जवाब: यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केंद्र पर है कि राज्य वित्तीय अनुशासन का पालन करें. आरबीआई यहां प्रबंधक की भूमिका निभाता है. यह केंद्र को रिपोर्ट करता है. यदि केंद्र सभी राज्यों के साथ समान व्यवहार करे तो कोई समस्या नहीं होगी. संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य अपने राजस्व और व्यय को संतुलित करते हैं.

सवाल: सरकारी खर्च पर कोई सोशल ऑडिट नहीं होता है. क्या सरकार अंधाधुंध कर्ज लेना जारी रख सकती है? क्या लोगों की ओर से सवाल करने का कोई तंत्र है?

जवाब: हमारे जैसे लोकतंत्र में यह विधायिका की जिम्मेदारी है. बजट को विधानमंडल द्वारा अनुमोदित किया जाता है. जब लोकलुभावन योजनाओं और सब्सिडी की बात आती है तो विपक्ष भी सवाल नहीं करता. क्योंकि सारी योजनाएं वोट बैंक से जुड़ी हैं. वास्तव में कुछ ऋणों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यह चेक और बैलेंस के लिए कोई मौका नहीं छोड़ता है.

सवाल: श्रीलंका संकट से हमें क्या सीखना चाहिए? देश के कुछ राज्य पहले से ही समय पर वेतन नहीं दे पा रहे हैं?

जवाब: हमें 1991 के अपने आर्थिक संकट से सबक सीखने की जरूरत है. वित्तीय और मौद्रिक प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है. राजकोषीय घाटा, कर्ज, देश व राज्यों को संकट में डाल देते हैं. लोगों के लिए भारी मुश्किलें पैदा करते हैं. यदि बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं पर खर्च करने के बजाय उधार को मुफ्त में बदल दिया जाता है तो राज्य सरकारें अपने राजस्व में वृद्धि नहीं कर पाएंगी और ब्याज दरें बढ़ जाएंगी. जिससे वे कर्ज के जाल में फंस जाएंगे. उच्च ब्याज दरों पर वेतन और पेंशन जैसे कुछ अनिवार्य भुगतान सरकार के लिए विकास पर ध्यान केंद्रित करना असंभव बना देंगे.

यह भी पढ़ें- सीतारमण ने निवेशकों को भरोसा दिया, सरकार दूर करेगी हर बाधा

कैग रिपोर्ट में देरी: CAG वित्तीय मुद्दों पर रिपोर्ट जारी करता है. चूंकि यह रिपोर्ट देर से सामने आती है इसलिए नौकरशाही उन पर गौर करने की जहमत नहीं उठाती. उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश को ही लें. वित्त वर्ष 2019-20 के लिए CAG रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है. सरकार दो साल पहले की रिपोर्ट पर विचार करने की जहमत नहीं उठाएगी. रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में लिए गए ऋणों में से 80 प्रतिशत का उपयोग राजस्व खातों की शेष राशि के लिए किया गया. जिसने राज्य में बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्रभावित किया है. ऐसा प्रतीत होता है कि रिपोर्ट को राज्य से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिली है. सरकार पर ऑडिट का महत्व खो गया है.

हैदराबाद: ईटीवी भारत के साथ विशेष साक्षात्कार के दौरान आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने आसन्न ऋण संकट और वित्तीय आपात स्थिति के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि राज्य, निवेश खर्च के लिए उधार ले सकते हैं. लेकिन चिंताजनक स्थिति ये है कि वे दिन-प्रतिदिन के खर्च, वेतन, सब्सिडी और यहां तक ​​कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी उधार ले रहे हैं. यदि यही हालात बने रहे तो हमारी स्थिति भी श्रीलंका की तरह हो सकती है.

पूर्व आरबीआई चीफ ने कहा कि केंद्र ने राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम बनाया है. लेकिन राज्य, ऑफ-बजट उधार ले रहे हैं. केंद्र को इस मामले में दखल देना चाहिए और कर्ज कम करने के उपाय सुझाने चाहिए. इस पर शर्तों को लागू करने का भी विचार करना चाहिए. साथ ही उन राज्यों पर वित्तीय आपातकाल लगाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए जो अभी भी गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम कर रहे हैं.

सवाल: ऐसा क्यों है कि हमारी राज्य सरकारें अधिक कर्ज ले रही हैं? वे आय के स्वयं के स्रोत बनाने पर ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर रहे हैं?

जवाब: वित्तीय प्रबंधन के एक भाग के रूप में ऋण की आवश्यकता होती है. यह समस्या असीमित उधार की वजह से है. अगर सरकार किसी चीज पर निवेश करने के लिए कर्ज की राशि खर्च करती है, तो इससे आय होगी. तब वे कर्ज भी चुका सकते हैं. लेकिन अगर करों में कटौती की जाए, सब्सिडी और लोकलुभावन योजनाओं के लिए ऋण खर्च किया जाए तो मुश्किल होगी. इससे हम श्रीलंका जैसे गंभीर आर्थिक संकट से घिर सकते हैं. हमारे देश में कुछ राज्य इस तरह से कर रहे हैं. आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश सबसे ज्यादा कर्ज वाले लेने वाले शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है.

सवाल: क्या हमें चिंतित होना चाहिए? ऐसे राज्य हैं जो जीएसडीपी पर 50 प्रतिशत या उससे अधिक का कर्ज लेते हैं. यह उधार लेने की सीमा से अधिक है तो आरबीआई दखल क्यों नहीं दे रहा?

जवाब: किसी भी राज्य के बारे में विशेष रूप से टिप्पणी नहीं की जा सकती. आरबीआई की रिपोर्ट सभी राज्यों के लिए होती है. रिपोर्ट के अनुसार राज्यों के कर्ज और परिणामस्वरूप ब्याज दरें बढ़ रही हैं. विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं है. आप ऑफ-बजट ऋणों के बारे में सही हैं. हम आमतौर पर किसी भी रिपोर्ट को बजट में पेश किए गए नंबरों के आधार पर देखते हैं. वित्तीय प्रबंधन और भुगतान परेशानी मुक्त दिखाई दे रहे हैं लेकिन हमें नहीं पता कि पर्दे के पीछे क्या चल रहा है. गारंटी के साथ निगमों से उधार भी बजट में शामिल किया जाना चाहिए.

सवाल: श्रीलंका के वित्तीय संकट का कारण क्या है?

जवाब: इसके दो कारण हैं. विदेशी निर्भरता और सरकार की लोकलुभावन योजनाएं. श्रीलंका, काफी हद तक विदेशों में काम कर रहे अपने नागरिकों द्वारा भेजे गए धन और पर्यटन से होने वाली आय पर ही निर्भर है. 2019 में हुए बम विस्फोट और कोविड-19 ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है. महामारी के दौरान चाय और कपड़ा निर्यात ठप हो गया. नतीजतन यह चीन सहित अन्य देशों से उधार लिए गए उच्च-ब्याज ऋण को चुकाने में असमर्थ है. दूसरी ओर सरकार ने पहले करों में कमी की और ब्याज मुक्त ऋण दिया. रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध के कारण खाद्यान्न की कीमतों में तेजी आई. चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने ईंधन की कीमतों में वृद्धि हुई. खर्च बढ़ने से आमदनी भी घट गई. जिससे विकास दर डूब गया. मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण मुद्रा का अवमूल्यन हुआ. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था कर्ज में डूबती गई, वैसे-वैसे आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूती गईं.

सवाल: उधार लेने पर कोई प्रतिबंध नहीं है? यदि खर्च सीमित करने के नियम हों तो सत्ताधारी दल को सत्ता का दुरुपयोग करने से रोका जा सकता है?

जवाब: सत्ताधारी दल अपनी सत्ता संभावनाओं को बढ़ाने और कर्ज के जाल में फंसने के लिए लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा करते हैं. अनुच्छेद 293 के अनुसार किसी भी राज्य सरकार को ऋण लेने के लिए केंद्र की अनुमति की आवश्यकता होती है. केंद्र, स्थिति पर विचार करेगा और उधारी को आगे बढ़ाने के लिए कुछ शर्तें लगा सकता है. वित्तीय आपातकाल भी लगाया जा सकता है. हालांकि भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.

सवाल: सरकारों को पूंजी निर्माण पर ध्यान केंद्रित किए बिना कॉरपोरेट्स को भारी सब्सिडी देने या मुफ्त में बांटने से कैसे रोका जाए?

जवाब: यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी केंद्र पर है कि राज्य वित्तीय अनुशासन का पालन करें. आरबीआई यहां प्रबंधक की भूमिका निभाता है. यह केंद्र को रिपोर्ट करता है. यदि केंद्र सभी राज्यों के साथ समान व्यवहार करे तो कोई समस्या नहीं होगी. संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य अपने राजस्व और व्यय को संतुलित करते हैं.

सवाल: सरकारी खर्च पर कोई सोशल ऑडिट नहीं होता है. क्या सरकार अंधाधुंध कर्ज लेना जारी रख सकती है? क्या लोगों की ओर से सवाल करने का कोई तंत्र है?

जवाब: हमारे जैसे लोकतंत्र में यह विधायिका की जिम्मेदारी है. बजट को विधानमंडल द्वारा अनुमोदित किया जाता है. जब लोकलुभावन योजनाओं और सब्सिडी की बात आती है तो विपक्ष भी सवाल नहीं करता. क्योंकि सारी योजनाएं वोट बैंक से जुड़ी हैं. वास्तव में कुछ ऋणों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यह चेक और बैलेंस के लिए कोई मौका नहीं छोड़ता है.

सवाल: श्रीलंका संकट से हमें क्या सीखना चाहिए? देश के कुछ राज्य पहले से ही समय पर वेतन नहीं दे पा रहे हैं?

जवाब: हमें 1991 के अपने आर्थिक संकट से सबक सीखने की जरूरत है. वित्तीय और मौद्रिक प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है. राजकोषीय घाटा, कर्ज, देश व राज्यों को संकट में डाल देते हैं. लोगों के लिए भारी मुश्किलें पैदा करते हैं. यदि बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं पर खर्च करने के बजाय उधार को मुफ्त में बदल दिया जाता है तो राज्य सरकारें अपने राजस्व में वृद्धि नहीं कर पाएंगी और ब्याज दरें बढ़ जाएंगी. जिससे वे कर्ज के जाल में फंस जाएंगे. उच्च ब्याज दरों पर वेतन और पेंशन जैसे कुछ अनिवार्य भुगतान सरकार के लिए विकास पर ध्यान केंद्रित करना असंभव बना देंगे.

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कैग रिपोर्ट में देरी: CAG वित्तीय मुद्दों पर रिपोर्ट जारी करता है. चूंकि यह रिपोर्ट देर से सामने आती है इसलिए नौकरशाही उन पर गौर करने की जहमत नहीं उठाती. उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश को ही लें. वित्त वर्ष 2019-20 के लिए CAG रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है. सरकार दो साल पहले की रिपोर्ट पर विचार करने की जहमत नहीं उठाएगी. रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में लिए गए ऋणों में से 80 प्रतिशत का उपयोग राजस्व खातों की शेष राशि के लिए किया गया. जिसने राज्य में बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्रभावित किया है. ऐसा प्रतीत होता है कि रिपोर्ट को राज्य से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिली है. सरकार पर ऑडिट का महत्व खो गया है.

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