कानपुर : जिले के GSVM मेडिकल कॉलेज में विश्व का पांचवां कैंसर का बड़ा ऑपरेशन किया गया. बताया जा रहा है इस तरह का केस इससे पहले अभी तक विश्व में चार बार ही सामने आ चुके हैं. अब पांचवां केस सामने आया था. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय काला का दावा है कि करीब पांच घंटे से ज्यादा समय ऑपरेशन में लगा. कैंसर का नाम फाइब्रोमेक्सॉइड सार्कोमा है. इस कैंसर का ऑपरेशन काफी जटिल माना जाता है.
सात माह से कैंसर से पीड़ित था बुजुर्ग : फर्रुखाबाद निवासी 65 साल का बुजुर्ग मिठाई का कारोबार करता है. वह करीब सात माह से मुंह के कैंसर से पीड़ित था. मुंह के अंदर दांत के नीचे के हिस्से में गांठ थी. उन्होंने फार्रुखाबाद में एक अस्पताल में इलाज शुरू कराया, जहां ऑपरेशन के दौरान उनकी गांठ निकाल दी गई, लेकिन ऑपरेशन के एक माह बाद फिर से मुंह के अंदर उसी जगह पर गांठ पड़ गई. इसके बाद उन्होंने कानपुर के उर्सला (UHM) अस्पताल में इलाज शुरू कराया. यहां पर बायोप्सी में कैंसर के लक्षण नजर आए. उर्सला अस्पताल में डॉक्टरों ने सर्जरी कर गांठ निकाली, जिससे कुछ दिन उनको आराम तो मिला, लेकिन फिर से गांठ उभर आई.
जांच में गाल व जबड़े में कैंसर मिला : दोनों अस्पतालों में ऑपरेशन कराने के बाद भी जब बुजुर्ग को आराम नहीं मिला तो वह अंत में कानपुर मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल पहुंचे. यहां पर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने बुजुर्ग का इलाज शुरू किया और बायोप्सी कराई. जांच में गाल व जबड़े में कैंसर मिला और साथ ही मुंह खुलना भी कम हो गया था. प्राचार्य प्रो. संजय काला ने डॉ.आशीष कुमार, डॉ.पारुल, प्लास्टिक सर्जन डॉ.प्रेम शंकर व एनस्थिसिया डॉ. यामिनी के साथ मिलकर बुजुर्ग के मुंह के अंदर जटिल प्रकार के कैंसर का ऑपरेशन किया.
मरीज पूरी तरह स्वस्थ : मेडिकल कालेज के डीन प्रो. संजय काला ने बताया, टीम के साथ पांच घंटे तक बुजुर्ग के मुंह का ऑपरेशन किया गया है, जिसके बाद वह अब पूरी तरह से स्वस्थ है. यह कैंसर विश्व में अभी तक विदेश में तीन लोगों को हुआ था. भारत में यह दूसरा और विश्व में पांचवां केस है. प्रो. संजय काला का कहना है यह ऑपरेशन काफी जटिल था. इसमें कामांडो सर्जरी कर मुंह के नीचे का हिस्सा काटा गया है. यह कैंसर सीटी के माध्यम से निकालना मुश्किल था. कैंसर की वजह से बुजुर्ग के दांत सड़कर गिर चुके थे.
शरीर में फैल रही थी सड़न : प्रो. संजय काला ने बताया कि सड़न मुंह के रास्ते से अंदर की ओर जा रही थी. इसलिए जल्द से जल्द ऑपरेशन करना ही उचित था. ताकि मुंह के पूरे हिस्से को प्रभावित होने से बचाया जा सके. इसके बाद उनकी छाती के मांस का हिस्से की प्लास्टिक सर्जरी कर डॉ. प्रेम शंकर ने जबड़ा बनाया. डॉ. संजय काला ने बताया, मरीज ने दो बार जांच कराई थी, लेकिन प्राइवेट पैथोलॉजी की जांचों में सटीक बीमारी का पता नहीं चल रहा था. हैलट में आने पर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में पैथोलॉजी विभाग की डॉ. चयनिका काला ने जांच की, यहां पर मौजूद आधुनिक मशीन में एक दुर्लभ ट्यूमर (फाइब्रोमेक्सॉइड सार्कोमा) की जानकारी हुई, जिसके केवल चार ही केस अभी तक रिपोर्ट हुए है.
बार-बार बीमारी फैलने का रहता है खतरा : प्रो. ने बताया कि यह ट्यूमर न निकाला जाए तो बार-बार होने का खतरा रहता है. इसलिए मरीज का ऑपरेशन कर गांठ के साथ मरीज का जबड़ा भी निकालना पड़ा. प्रो. संजय काला ने बताया कि इस कैंसर की खास बात है कि यह तंबाकू से नहीं होता है. इस पर अभी अध्ययन चल रहा है कि आखिर यह कैंसर होता कैसे है. यदि एक बार गांठ को निकाल भी दिया जाता है तो फिर दोबारा कैसे वहां गांठ पड़ जाती है. इन सब सवालों के जवाब पर अभी शोध किया जा रहा है. Gsvm के डॉक्टरों के मुताबिक सरकोमा विभिन्न जटिल ट्यूमर का समूह होता है जो शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं. इनको डायग्नो करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. सारकोमा आपके शरीर के अन्य भागों में आसानी से फैल सकता है और इसके साथ यह आपके शरीर में उपस्थित ऊतकों या हड्डियों को आक्रामक रूप से नष्ट कर सकते हैं.
सारकोमा कैंसर का एक प्रकार : डॉक्टरों के मुताबिक सॉफ्ट टिश्यू, मांसपेशियों, टेंडन, लिगामेंट, वसा, रक्त वाहिकाएं और अन्य ऊतकों से निर्मित होता है. यह हमारे शरीर की अन्य संरचनाओं को सहारा देते हुए अंगों को जोड़ते और घेरते हैं. इन सॉफ्ट टिश्यू में बने ट्यूमर बिनाइन (नोन-कैंसर) या मैलीग्नेंट (कैन्सर) हो सकते हैं. सारकोमा कैंसर का एक प्रकार है जो ऊतकों को प्रभावित करता है और शरीर में कहीं भी बन सकता है. हालांकि आमतौर पर यह सिर, हाथ, गर्दन, पेट और पैरों में शुरू होते हैं. सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा के सबसे आम पहचाने जाने वाले प्रकार में अनडिफरेंटशिएटेड प्लेमॉर्फिक सारकोमा (यूपीएस), गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्ट्रोमल ट्यूमर (जीआईएसटी), लिपोसारकोमा, लेयोमायोसारकोमा, इविंग्स सारकोमा और सिनोवियल सारकोमा शामिल हैं.
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