नई दिल्ली : फिरोज़ गांधी स्वतंत्रता संग्राम में आंदोलनकारी के साथ साथ मुखर पत्रकार व भारत के एक राजनेता रुप में जाना जाता है. वह 1952 और 1957 में रायबरेली लोकसभा के सदस्य के रुप में काम किया. लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण इंदिरा व फिरोज़ में दूरी बढ़ी और दोनों अलग अलग रहने लगे. लेकिन आखिरी समय में इंदिरा गांधी ने उनकी सेवा की. लेकिन अब नेहरु-गांधी परिवार के लोग इनको भूलते जा रहे हैं. तभी तो उनकी समाधि पर परिवार के लोग जाना पसंद नहीं करते. लेकिन इंदिरा गांधी फिरोज़ गांधी की मौत के बाद बहुत दुखी हुयी थीं. इसका असर पूरी जिंदगी में दिखा.
फिरोज़ जहांगीर गांधी का जन्म 12 सितंबर 1912 को मुम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम जहांगीर एवं माता का नाम रतिमाई था, और वे बम्बई के खेतवाड़ी मोहल्ले के नौरोजी नाटकवाला भवन में रहा करते थे. फ़िरोज़ के पिता जहांगीर किलिक निक्सन में एक इंजीनियर थे. फिरोज़ अपने 5 भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनके दो भाई दोराब और फरीदुन जहांगीर और दो बहनें, तेहमिना करशश और आलू दस्तुर थीं. फिरोज़ का परिवार मूल रूप से दक्षिण गुजरात के भरूच का निवासी बताया जाता है. जहां उनका पैतृक गृह अभी भी कोटपारीवाड़ में मौजूद है.
1920 के दशक की शुरुआत में अपने पिता की मृत्यु के बाद फिरोज़ अपनी मां के साथ इलाहाबाद में अपनी अविवाहित मौसी शिरिन कमिसारीट के पास रहने चले आये. उनकी मौसी इलाहाबाद के लेडी डफरीन अस्पताल में एक सर्जन के रुप में काम करती थीं. इलाहबाद में ही फ़िरोज़ ने विद्या मंदिर हाई स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर ईविंग क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल की.
राजनीतिक गलियारों की चर्चा के अनुसार इंदिरा गांधी और फिरोज़ की मुलाकात 1930 में हुई थी. आजादी की लड़ाई में इंदिरा की मां कमला नेहरू एक कॉलेज के सामने धरना देने के दौरान बेहोश हो गई थीं. उस समय फिरोज गांधी ने उनकी बहुत देखभाल की थी. कमला नेहरू का हालचाल जानने के लिए फिरोज अक्सर उनके घर जाते थे. इसी दौरान उनके और इंदिरा गांधी के बीच नजदीकियां बढ़ीं. फिरोज जब इलाहाबाद में रहते थे तो उनका आनंद भवन में आना जाना लगा रहता था.
गांधी जी ने फिरोज़ को गोद लेकर करायी शादी (Indira Feroze Gandhi Marriage)
फिरोज से इंदिरा की शादी 26 मार्च 1942 को हुई. लेकिन जवाहर लाल नेहरू इस शादी के खिलाफ थे. हालांकि महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद दोनों की शादी इलाहाबाद में रस्मो रिवाज से करायी गयी. इस दौरान पारसी मुसलमान फिरोज़ को अपना सरनेम गांधी देकर उनको फिरोज़ जहांगीर से फिरोज़ जहांगीर गांधी बना दिया. अपना सरनेम देने के तमाम किस्से हैं, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि अपना सरनेम देकर गांधीजी ने फिरोज़ को गोद ले लिया था. वह इंदिरा की बचपन में राजनीति सक्रियता देख जान गए थे कि यह राजनीति में एक बड़े मकाम तक जाएगी. विवाह के बाद काफी दिनों तक दोनों ने साथ साथ राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना जारी रखा. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इंदिरा और फिरोज साथ में जेल भी गए थे.
राजनीतिक महत्वाकांक्षा से बढ़ा मतभेद (Indira Feroze Gandhi Disputes)
कहा जाता है कि आजाद भारत में दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उसके पीछे दोनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जिम्मेदार ठहराया जाता है. दोनों के बीच वैचारिक मतभेद दिखायी देने लगे. इससे दोनों के बीच काफी लड़ाइयां होती रहीं. इसके बाद 1949 में इंदिरा गांधी अपने दोनों बच्चों (राजीव और संजय गांधी) को लेकर अपने पिता के घर चली आयीं. इसके बाद फिरोज़ लखनऊ में रहा करते थे. कुछ दिनों बाद संजय अपने पिता के साथ लखनऊ में रहना शुरू किया. जब फिरोज गांधी की तबीयत खराब होने लगी तो संजय पिता की अच्छे तरीके से देखभाल करते थे. उस दौरान उनकी देखभाल के लिए इंदिरा गांधी भी घर आया करतीं थीं.
आखिरी समय में साथ थीं इंदिरा
एकबार इंदिरा गांधी किसी दौरे पर बाहर गयीं थी. 7 सितंबर 1960 को जब इंदिरा गांधी दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर पहुंचीं, तब उनको पता चला कि फिरोज़ गांधी को एक और दिल का दौरा पड़ा है. वो हवाई अड्डे से सीधे वेलिंगटन अस्पताल पहुंची, जहां फिरोज़ गांधी का इलाज चल रहा था. वहां उनकी सहायक ऊषा भगत पहले से ही मौजूद थीं. ऊषा ने इंदिरा गांधी को बताया कि पूरी रात फ़िरोज़ कभी होश में आते थे तो कभी बेहोशी में चले जाते थे. जब उन्हें होश आता था तो वो यही पूछते थे, 'इंदु कहाँ है ?' इसीलिए अंतिम समय इंदिरा फिरोज़ की बग़ल में मौजूद रहना चाहती थीं. 8 सितंबर की सुबह उन्होंने कुछ देर के लिए अपनी आंख खोली तो देखा कि इंदिरा उनके बगल में बैठी हुई थीं. वो पूरी रात न तो सोयीं भी नहीं थीं और न ही उन्होंने कुछ खाना खाया था. जब इस बात का फिरोज़ को एहसास हुआ तो उन्होंने कहा था कि थोड़ा नाश्ता तो कर लो, लेकिन इंदिरा गांधी ने मना कर दिया. इसके फिरोज़ फिर बेहोश हो गए. सुबह 7 बज कर 45 मिनट पर उन्होंने आख़िरी सांस ली.
कहा जाता है फिरोज़ गांधी का अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार हिन्दू रीति रिवाज से दिल्ली में किया गया. इसके बाद उनका अस्थिकलश इलाहाबाद लाया गया और उसका कुछ अंश पारसी कब्रगाह में दफनाकर उनकी कब्र बनायी गयी. साथ ही गुजरात की पुस्तैनी कब्रगाह में भी उसे ले जाकर रस्मो रिवाज के साथ दफनाया गया.
सफेद साड़ी से फिरोज का कनेक्शन (Indira Reaction After Feroze Gandhi Death)
अपने सफेद रंग की साड़ी पहनने के बारे में इंदिरा गांधी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि फिरोज़ की मौत के साथ ही जिंदगी के सारे रंग चले गए. फिरो मैंने अपनी जिंदगी में दादा, पिता और मां को मरते देखा था, लेकिन फिरोज की मौत ने सबसे अधिक झकझोर दिया था. इतना ही नहीं एक बार उन्होंने यह भी कहा था कि वह फिरोज़ को कुछ कारणों से पसंद नहीं करती थी, लेकिन मैं उनको प्यार करती थी. इसीलिए फिरोज़ की मौत के बाद उन्हें ज्यादातर सफेद साड़ी में ही देखा जाता था.
20 सालों से उपेक्षित है समाधि
प्रयागराज के कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस के बड़े नेता फिरोज़ गांधी की कब्र तक नहीं जाते हैं. 8 सितम्बर को स्वतंत्रता सेनानी फिरोज़ गांधी की पुण्यतिथि और 12 सितंबर को जन्मदिन भी मनाया जाता है. इस दिन कांग्रेस के छोटे नेता भले आ जाएं, लेकिन कोई भी बड़ा नेता और न ही गांधी परिवार का कोई भी सदस्य पुष्पांजलि अर्पित के लिए नहीं आता है. मम्फोर्डगंज स्थित कब्रिस्तान में उनकी समाधि बनी है. उनकी कब्र को भी ठीक ठाक हालत में करने के लिए गांधी परिवार ने अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया. लोगों का कहना है कि बड़े दुख की बात है कि गांधी परिवार ने अपने ही घर के सदस्य से किनारा कर लिया है.
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