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जानिए क्यों खास है आज की कालाष्टमी, संकट-कष्टों से रक्षा के लिए जरूर करें ये काम

kalashtami : भगवान शिव के अवतार कालभैरव की पूजा के लिए कालाष्टमी का दिन सबसे सबसे ज्यादा अनुकूल माना जाता है. कालाष्टमी के दिन काले कुत्ते की सेवा का भी विशेष महत्व है. विशेषता जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

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कालाष्टमी
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Published : Aug 8, 2023, 7:11 AM IST

Updated : Aug 8, 2023, 2:47 PM IST

कालाष्टमी : भगवान कालभैरव की पूजा के लिए कालाष्टमी का दिन सबसे सबसे ज्यादा अनुकूल माना जाता है. भगवान शिव के भक्त इस दिन काल भैरव की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि और संकट-कष्टों से रक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव के अवतार कालभैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ था तब से हर महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी को कालाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है

हिंदू कैलेंडर के अनुसार 12 महीने होते हैं जिसमें प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी को कालाष्टमी के दिन भगवान कालभैरव की विशेष पूजा-अर्चना अवश्य ही की जाती है. कालाष्टमी के दिन भक्त विभिन्न प्रकार से पूजा-अर्चना कर भगवान कालभैरव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं जिसमें व्रत रखना, मंत्र जाप और विशेष पदार्थों का भगवान को भोग लगाना आदि शामिल है. कालाष्टमी का त्यौहार मंगलवार और शनिवार को पड़े तो यह विशेष शुभ हो जाता है क्योंकि ये दोनों दिन भगवान कालभैरव को समर्पित है.

विशेष है ये कालाष्टमी: इस बार की कालाष्टमी विशेष है क्योंकि 3 सालों के बाद अधिक मास में पड़ रही है इसलिए यह अधिक मास की कालाष्टमी होने की वजह से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है. सावन का महीना होने के कारण इसकी शुभता में और भी वृद्धि हो जाती है, क्योंकि सावन के महीने में अधिक मास पड़ रहा है और सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है तो इस प्रकार सावन अधिक मास में भगवान कालभैरव की पूजा अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण हो जाती है.

कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि: कालाष्टमी के व्रत में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि जिस दिन अष्टमी तिथि रात में हो उसी दिन व्रत रखना चाहिए क्योंकि इसमें रात्रि की प्रधानता होती है. इसके अनुष्ठान रात में ही होते हैं क्योंकि कालभैरव रात्रि के प्रतीक हैं. द्रिक पंचांग के अनुसार इस बार सावन अधिक मास की अष्टमी तिथि 8 अगस्त को सुबह 4:14 से शुरू होकर 9 अगस्त को सुबह 3:55 तक रहेगी.

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जरूर करें ये काम: कालाष्टमी के दिन सुबह उठकर नित्य कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. उसके बाद किसी कालभैरव मंदिर अथवा शिव मंदिर में जाकर भगवान कालभैरव व भगवान शिव की पूजा आदि करें. दिनभर निराहार व्रत रहें. भगवान कालभैरव की कथा, कालभैरवाष्टक, कालभैरवाष्टक स्तोत्र का पाठ करें. शिव मंत्रों का यथाशक्ति जाप करें उसके बाद शाम को भगवान काल भैरव और भगवान शिव की पूजा के बाद व्रत खोलें. ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र आदि का दान करें. इस दिन काले कुत्ते की सेवा जरूर करें, इसका भी विशेष महत्व है, क्योंकि काले कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना जाता है. इस दिन संभव हो तो काले कुत्ते को अथवा किसी अन्य कुत्ते को दूध दही मिठाई आदि जरूर खाने को दें.

कालाष्टमी : भगवान कालभैरव की पूजा के लिए कालाष्टमी का दिन सबसे सबसे ज्यादा अनुकूल माना जाता है. भगवान शिव के भक्त इस दिन काल भैरव की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि और संकट-कष्टों से रक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव के अवतार कालभैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन हुआ था तब से हर महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी को कालाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है

हिंदू कैलेंडर के अनुसार 12 महीने होते हैं जिसमें प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी को कालाष्टमी के दिन भगवान कालभैरव की विशेष पूजा-अर्चना अवश्य ही की जाती है. कालाष्टमी के दिन भक्त विभिन्न प्रकार से पूजा-अर्चना कर भगवान कालभैरव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं जिसमें व्रत रखना, मंत्र जाप और विशेष पदार्थों का भगवान को भोग लगाना आदि शामिल है. कालाष्टमी का त्यौहार मंगलवार और शनिवार को पड़े तो यह विशेष शुभ हो जाता है क्योंकि ये दोनों दिन भगवान कालभैरव को समर्पित है.

विशेष है ये कालाष्टमी: इस बार की कालाष्टमी विशेष है क्योंकि 3 सालों के बाद अधिक मास में पड़ रही है इसलिए यह अधिक मास की कालाष्टमी होने की वजह से यह अत्यंत महत्वपूर्ण है. सावन का महीना होने के कारण इसकी शुभता में और भी वृद्धि हो जाती है, क्योंकि सावन के महीने में अधिक मास पड़ रहा है और सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है तो इस प्रकार सावन अधिक मास में भगवान कालभैरव की पूजा अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण हो जाती है.

कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि: कालाष्टमी के व्रत में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि जिस दिन अष्टमी तिथि रात में हो उसी दिन व्रत रखना चाहिए क्योंकि इसमें रात्रि की प्रधानता होती है. इसके अनुष्ठान रात में ही होते हैं क्योंकि कालभैरव रात्रि के प्रतीक हैं. द्रिक पंचांग के अनुसार इस बार सावन अधिक मास की अष्टमी तिथि 8 अगस्त को सुबह 4:14 से शुरू होकर 9 अगस्त को सुबह 3:55 तक रहेगी.

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जरूर करें ये काम: कालाष्टमी के दिन सुबह उठकर नित्य कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. उसके बाद किसी कालभैरव मंदिर अथवा शिव मंदिर में जाकर भगवान कालभैरव व भगवान शिव की पूजा आदि करें. दिनभर निराहार व्रत रहें. भगवान कालभैरव की कथा, कालभैरवाष्टक, कालभैरवाष्टक स्तोत्र का पाठ करें. शिव मंत्रों का यथाशक्ति जाप करें उसके बाद शाम को भगवान काल भैरव और भगवान शिव की पूजा के बाद व्रत खोलें. ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र आदि का दान करें. इस दिन काले कुत्ते की सेवा जरूर करें, इसका भी विशेष महत्व है, क्योंकि काले कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन माना जाता है. इस दिन संभव हो तो काले कुत्ते को अथवा किसी अन्य कुत्ते को दूध दही मिठाई आदि जरूर खाने को दें.

Last Updated : Aug 8, 2023, 2:47 PM IST
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