पानीपत: एक तरफ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग समेत तीन कृषि कानून रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली से लगती सीमाओं पर डटे हैं. तो दूसरी तरफ कुछ किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से लाखों रुपये कमा रहे हैं. पानीपत के उग्रा खेड़ी गांव (Ugra Khedi Village Panipat) में ज्यादातर किसान सब्जी की खेती करते हैं. लिहाजा यहां कई किसानों ने बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया हुआ है. जिनको वो डायरेक्ट सब्जियां बेचकर सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं. किसान जसवीर सिंह ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में मुनाफा ज्यादा होता है. मंडी में उन्हें भाव भी एमएसपी से ज्यादा मिलता है.
मदर डेयरी, मैकेन, सफल मटर जैसी बड़ी कंपनियों के साथ उग्रा खेड़ी गांव के किसान कॉन्ट्रैक्ट (Contract Farming Of Vegetables Panipat) कर लाखों रुपये कमा रहे हैं. खास बात ये है कि यहां के क्लाइमेट से मैच ना खाने वाली सब्जियों (Contract Farming Of Vegetables Panipat) को भी किसान नई तकनीक के साथ उगा रहे हैं. जैसे ब्रोकली. बागवानी विभाग की मदद से किसानों ने इस गांव में कोल्ड स्टोर भी बना लिया है, ताकि वो अपनी सब्जियां यहां स्टोर कर सकें. इसके बाद यहीं से कंपनियां सब्जियों को खरीद सके.
उग्रा खेड़ी के किसान जसवीर सिंह (Ugra Khedi farmer Jasveer Singh) ने बताया कि वो पहले 18 एकड़ जमीन का मालिक हुआ करता था. जिसमें वो परंपरागत खेती करता था, लेकिन उसमें लागत ज्यादा और मुनाफा कम होता था. जिसके बाद उसने परंपरागत खेती को छोड़कर सब्जियों को उगाना शुरू किया. सब्जियों के बेचने के लिए उसने कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट (Contract Farming Of Vegetables Panipat) किया. जसवीर ने बताया कि अब वो एकड़ में एक साथ दो-दो सब्जियों को उगा कर मुनाफा कमा रहे हैं. आज जसवीर सिंह के पास कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बदौलत 80 एकड़ जमीन है.
एक फायदा ये भी है कि किसान एक ही वक्त में दो सब्जियां उगा सकता है. जैसे घीया और करेला किसान एक वक्त में दो फसल ले सकता है. किसानों के मुताबिक पहले वो परंपरागत खेती करते थे, लेकिन उसमें लागत ज्यादा और मुनाफा कम होता था. जिसके बाद उन्होंने परंपरागत खेती को छोड़कर सब्जियों को उगाना शुरू किया. सब्जियों के बेचने के लिए उन्होंने कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया. आज किसान सालाना लाखों रुपये कमा रहे हैं.
क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग? कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन किसी और के लिए. कॉन्ट्रेक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता. इसमें जो कंपनी किसान के साथ अनुबंध करती है. वो किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर कर एक तय दाम में खरीदती है. इसमें खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रेक्टर का होता है. कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है. फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे: किसानों को फसल का बेहतर रेट मिलता है. बाजार में होने वाले रेट के उतार-चढ़ाव का किसान पर कोई असर नहीं होता. किसानों को खेती करने के पुराने तरीकों में सुधार करने और नए तरीकों को सीखने का मौका मिलता है. खेती में इस्तेमाल होने वाले बेहतर बीज, खाद को चुनने में मदद मिलती है. इस तरह से की जाने वाली खेती में फसलों की क्वॉलिटी और मात्रा दोनों में सुधार देखने को मिलता है.
क्यों कर रहे हैं किसान विरोध? किसानों का कहना है कि इससे बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा मिल सकता है. इसके तहत किसानों को खेती की कम कीमत देकर कॉनट्रैक्टर उनका शोषण कर सकते हैं. बड़े किसानों के मुकाबले छोटे किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कम लाभ मिलेगा. इस सभी चीजों को देखते हुए किसान इस कानून का विरोध कर रहे हैं.