हमीरपुर: देश में अब बाढ़ की भविष्यवाणी संभव होगी. इस खोज से देश में बरसात के दिनों में मचने वाले जलप्रलय से समय रहते बचाव संभव हो सकेगा. एनआईटी हमीरपुर, एनआईटी उत्तराखंड और इसरो के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट रिमोट सेसिंग (आईआईआरएस) के विशेषज्ञों की मेहनत रंग लाई तो बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी होगी. बाढ़ से मचने वाले जलप्रलय से बचाव के लिए इस प्रोजेक्ट पर एनआईटी हमीरपुर और आईआईआरएस के विशेषज्ञ जुटे हैं. मुख्यत: जियोग्राफिकल सिस्टम (जीआईएस) तकनीक पर आधारित इस शोध कार्य में रेन गेज (बारिश मापने का यंत्र) और कंक्रीट वेयर को इस्तेमाल किया जाएगा.
हिमाचल प्रदेश की ब्यास और उत्तराखंड की भागीरथी नदी की सहायक नदियों पर इस शोध को शुरू कर दिया गया है. इस शोध में इन नदियों पर चल रहे हाइड्रो प्रोजेक्ट प्रबंधन की मदद ली जाएगी और प्रोजेक्ट से स्थापना के वक्त किए गए सर्वे के आंकड़े भी जुटाए जाएंगे. इन आंकड़ों से वर्तमान शोध में निकले आंकड़ों की तुलनात्मक स्टडी संभव होगी. तीन वर्ष तक चलने वाले इस शोध कार्य पर इसरो 30 लाख रुपये खर्च कर रहा है. इस शोध में जुटे विशेषज्ञों की मानें तो यदि इस प्रोजेक्ट में उम्मीदों के मुताबिक सार्थक नतीजे निकल कर आते हैं तो बाढ़ की भविष्यवाणी का सिस्टम आगामी 30 वर्षों तक कारगर साबित होगा.
इसरो के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट रिमोट सेसिंग के वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण ठाकुर एवं एनआईटी हमीरपुर के प्रोफेसर विजय शंकर ने कुछ समय पहले इसरो को यह आइडिया शोध के लिए सबमिट किया था. तमाम विचार विमर्शों के बाद इसरो ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की. दरअसल, इस स्टडी के तहत ब्यास नदी और सहायक नदियों पर हिमाचल के तीन जिलों कुल्लू, मंडी और हमीरपुर में जीआईएस तकनीक विभिन्न कैचमेंट की मॉडलिंग की जाएगी. इस तकनीक के तहत की सहायक नदियों पर बारिश मापने के यंत्र रेन गेज और नदियों के बहाव को मापने के कंक्रीट वेयर स्थापित किए गए हैं.
इस प्रोजेक्ट में प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर आईआईआरएस के वैज्ञानिक डॉ. प्रवीन ठाकुर, एनआईटी हमीरपुर के सिविल विभाग के प्रोफेसर विजय शंकर और एनआईटी उत्तराखंड के विशेषज्ञ शोध में जुटे हैं. प्रोफेसर विजय शंकर के मुताबिक हिमाचल में ब्यास नदी पर यह शोध चलाया रहा है. ब्यास नदी और इसकी 12 सहायक नदियों पर यह शोध किया जाएगा. मंडी में ब्यास और सुकेती नदी के संगम स्थल समेत लगभग 12 स्थानों पर यह स्टडी शुरू हो गई है.
भारत में लगभग हर राज्य में बरसात के दिनों में बाढ़ कहर बरपाती है, लेकिन बाढ़ से बचाव के लिए समय रहते कोई विशेष तैयारी साइंटिफिक तरीके से नहीं की जाती है. यह भी कहा जा सकता है कि इस बचाव के लिए देश में कोई व्यवहारिक सिस्टम विकसित नहीं हो सका है. क्लाइमेंट चेंज के इस दौर में नदियों में ग्लेशियर्स के पिघलने से पानी का बहाव एकाएक बढ़ रहा है. नदियों में बदलते बढ़ाओ का बारिश के समय में बदलाव भी इसका एक मुख्य कारण है. ऐसे में बाढ़ की भविष्यवाणी के लिए समय रहते सिस्टम विकसित करना समय की मांग है.
एनआईटी हमीरपुर के प्रोफेसर विजय शंकर कहते हैं कि बेसिक आइडिया बारिश की मात्रा और नदियों में बहाव में हो रहे बदलावों को माप कर एक ऐसा सिस्टम विकसित करने का है, जिससे कि समय रहते राहत और बचाव कार्य करने वाली एंजेसियों को अलर्ट किया जा सके. हिमालय क्षेत्रों में कई बार सामने आई बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं ने ही प्रोफेसर विजय शंकर को इस शोध के लिए प्रेरित किया है.
रेन गेज बारिश की मात्रा को मापने का तरीका है. इस रिसर्च में इस तकनीक को कंक्रीट वेयर के जरिए नदियों में कैचमेंट की मॉडलिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. 3 साल तक चलने वाली इस रिसर्च में नदियों में इन पानी के बढ़ते और बदलते बहाव और बारिश की मात्रा के आंकड़े सटीकता के साथ जुटाए जाएंगे. यह आंकड़े ही इस तमाम शोध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. प्रोफेसर विजय शंकर का कहना है कि नदियों के बहाव में एकाएक बदलाव नहीं होता है. इसमें 10 को दशक लगते हैं. इस रिसर्च में जो आंकड़े जुटाए जाएंगे वह कारगर भी होंगे तथा आगामी कई दशकों तक प्रभावी भी.
छोटी मोटी बाढ़ नहीं बल्कि बादल फटने जैसे बड़े जल प्रलय से भी समय रहते हर बचाव इस शोध कार्य से संभव होगा. बारिश की अधिक संभावना होने पर और बाढ़ आने पर पहले ही यह आइडिया लगाया जा सकेगा कि किस समय में बाढ़ का वेग कहां तक पहुंचेगा. कितने समय में बाढ़ का पानी एक जिले से दूसरे जिले तक पहुंचेगा. इसका अंदाजा भी इस स्टडी में लगाया जाना संभव होगा. यहां तक की बादल फटने के बाद इसका प्रभाव नदी के किस छोर तक कब और पानी की किस गति के साथ होगा. इसकी भविष्यवाणी करना भी इस शोध से संभव होगा. इससे समय रहते राहत और बचाव कार्य में जुटी एजेसियां अलर्ट हो सकेंगी.
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