हैदराबाद : दो मई को असम, प.बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी विधानसभा चुनाव के परिणाम आएंगे. छह उम्मीदवारों के निधन होने की वजह से अलग-अलग राज्यों की छह सीटों पर चुनाव नहीं हो सके. सभी उम्मीदवारों की मौत कोरोना की वजह से हुई. इस बार चुनाव प्रचार के दौरान खूब तल्खियां देखने को मिलीं. एक दूसरे पर खूब आरोप-प्रत्यारोप लगे.
निजी आरोप भी लगाए गए. तरकश से तीर निकला नहीं कि दूसरा पक्ष उसका जवाब देने के लिए तैयार बैठा रहता था. इन पांच राज्यों में सबसे अधिक फोकस प. बंगाल पर रहा जहां कुल 294 विधानसभा सीटें हैं. लेकिन चुनाव 292 सीटों पर ही हुए. दो सीटों पर कोरोना की वजह से उम्मीदवारों के निधन के बाद चुनाव स्थगित हो गया. चुनाव आयोग द्वारा आठ चरणों में चुनाव कराने को लेकर सबसे अधिक चर्चा रही.
पश्चिम बंगाल में दिखी सबसे अधिक तल्खी
भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान तृणमूल को सत्ता से बाहर उखाड़ फेंकने का बार-बार दंभ भरा. लेफ्ट और कांग्रेस के बीच का गठबंधन भी खूब सुर्खियों में रहा. ऑल इंडिया सेक्युलर फ्रंट से कांग्रेस और लेफ्ट का तालमेल निशाने पर रहा. पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने इस फ्रंट को खड़ा किया है. पहले वह टीएमसी के कट्टर समर्थक माने जाते थे.
खूब लड़ीं 'मर्दानी' ममता
ममता बनर्जी के सामने कई चुनौतियां थीं. 10 सालों का एंटी इनकंबेंसी फैक्टर, भाई-भतीजावाद के गंभीर आरोप और प्रलयकारी अंफान तूफान के बाद मिलने वाली मदद में घोटाले के आरोप. इसके बावजूद ममता ने उसका डटकर सामना किया. भाजपा को चुनौती देने के लिए ममता ने अपनी परंपरागत भवानीपुर सीट छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. भवानीपुर सुभाष चंद्र बोस, सत्यजीत रे और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे दिग्गजों का आवास रहा है. ममता के सबसे खास टीएमसी नेता शोभनदेब चट्टोपाध्याय भी यहीं से आते हैं.
भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत
बंगाल में वाम और कांग्रेस के कमजोर होने के बाद भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी. बंगाल में भाजपा कभी भी मजबूत नहीं रही है. इसके बावजूद पार्टी ने अपने तमाम नेताओं को प्रचार में लगाया. पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ-साथ गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद प. बंगाल आते रहे.
ध्रुवीकरण और जाति की राजनीति
चुनाव के दौरान दो फैक्टर काफी अहम थे. ध्रुवीकरण और जाति. मतुआ समुदाय के लोगों को लुभाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश तक चले गए. अमित शाह बार-बार उत्तर बंगाल के राजबंशी समुदाय के घर जाते रहे. इनका 35 सीटों पर प्रभाव माना जाता है. बंगाल में इस बार जिस तरह का चुनाव प्रचार हुआ, वैसा कभी पहले नहीं देखा गया. चुनाव प्रचार के दौरान शाह, नड्डा और दिलीप घोष के बयान खूब सुर्खियों में रहे. प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ काफी तीखी भाषा का प्रयोग किया गया. मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए हिट संगीत से निर्मित पैरोडी का इस्तेमाल किया गया.
युवाओं को खूब मिला मौका
ममता बनर्जी जानती थीं कि इस बार उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है. भाजपा को भी अहसास था कि उसके पास कोई चेहरा नहीं है, जिसे वह मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती है. ममता के सामने किसको खड़ा करें, पार्टी यह तय नहीं कर सकी. लेफ्ट, कांग्रेस और अन्य दलों को अहसास हो चुका था कि उनकी संभावनाएं प्रबल नहीं हैं. उन्होंने पुराने, नए और युवा चेहरों को मौका दिया.
ईटीवी भारत का अनुमान
![एग्जिट पोल पश्चिम बंगाल](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11583750_exit-poll-1.jpg)
ईटीवी भारत ने अपने अनुमान में किसी भी पार्टी को प.बंगाल में बहुमत नहीं मिलने का अनुमान लगाया है. टीएमसी को 131 और भाजपा को 126 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. लेफ्ट और कांग्रेस को 32 और अन्य को तीन सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. जाहिर है, अगर परिणाम ऐसे ही आते हैं, तो विधायकों के खरीद-फरोख्त की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. यह राज्य के लिए अच्छा नहीं होगा. या फिर सर्वे गलत भी हो सकते हैं. जो भी होगा, परिणाम तो दो मई को ही आएंगे.
असम में हुआ दिलचस्प चुनाव
असम के हरे-भरे खेत और पहाड़ी इलाकों में तीन-चरणों में चुनाव हुए. मूल रूप से भाजपा और कांग्रेस-ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के बीच सीधी लड़ाई देखी गई. सात अन्य दल भी थे. उत्तर पूर्व के लिए प्रवेश द्वार के इस राज्य में ईटीवी भारत का अनुमान कुछ दिलचस्प आंकड़े बताते हैं.
क्या ऐसे होंगे परिणाम
अनुमान यह है कि भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन को असम की कुल 126 विधानसभा सीटों में से लगभग 64 सीटें मिलने की संभावना है. जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन को लगभग 55 सीटें मिल सकती हैं. जेल में बंद किसानों के अधिकार कार्यकर्ता अखिल गोगोई और निर्दलीय विधायकों की अगुवाई में राईजोर दल की नई नवेली असोम जाति परिषद (AJP) शेष 7 सीटों पर कब्जा कर सकती है.
![एग्जिट पोल असम](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11583750_exit-poll-2.jpg)
असम का बदला मिजाज
पिछले पांच वर्षों से भाजपा के विकास के एजेंडे के बीच असम में मतदाताओं का मिजाज बदल गया है. जिसके आधार पर उन्होंने दूसरे कार्यकाल के लिए वोट मांगे. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ बड़े पैमाने पर लोकप्रिय भावना कांग्रेस द्वारा उठाई गई. ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने बदरुद्दीन अजमल की AIUDF के साथ गठबंधन करके अपने अल्पसंख्यक वोट शेयर में से कुछ हासिल करने की उम्मीद की है.
बदल सकता है सीएम चेहरा
इसके अलावा, कांग्रेस के लिए एक सामरिक लाभ बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ गठबंधन हो सकता है, जो कम से कम 12 सीटों के परिणाम को प्रभावित कर सकता है. असम फिर से बीजेपी के पास जा सकता है लेकिन हो सकता है कि मीठी जीत के लिए हिचकी न आए. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और हेमंत बिस्वा सरमा के बीच रेस जैसी स्थिति बनती जा रही है. कोई भी फोटो फिनिश टेबल बदल सकता है.
पूर्व से दक्षिण की ओर
तमिलनाडु में ऐसा लगता है कि ईपीएस के लिए यात्रा खत्म हो रही है. राज्य में अगली सरकार बनाने के लिए द्रमुक तैयार है. ईटीवी भारत के प्रोजेक्शन से पता चलता है कि डीएमके मोर्चा 133 सीटों पर जीत हासिल कर सकता है, जबकि एआईएडीएमके फ्रंट के पास केवल 89 सीटें जाएंगी और 12 सीटें अन्य के पास जा सकती हैं. राज्य में 234 विधानसभा सीटों के लिए 6 अप्रैल को चुनाव हुआ था.
![एग्जिट पोल तमिलनाडु](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11583750_exit-poll-3.jpg)
तमिलनाडु में स्टालिन का जलवा
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) 2016 में कम सीटों के अंतर से हार गई थी. पार्टी अध्यक्ष एमके स्टालिन मुख्यमंत्री पद संभाल सकते हैं. वर्तमान में एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) जो एआईएडीएमके के झुंड को एक साथ रखने में सक्षम हैं, केंद्र में बीजेपी के समर्थन के बावजूद ऐसा लगता है कि वे 10 साल बाद बस पकड़ने से चूक गए हैं. सत्तारूढ़ पार्टी को 90 सीटों के सुरक्षित होने की उम्मीद के बावजूद, पश्चिमी तमिलनाडु ने अपने गढ़ को बचाए रखा, द्रविड़ प्रमुख का भविष्य चौराहे पर दिखाई देता है. अनुमानों के मुताबिक डीएमके को निर्णायक बढ़त मिलेगी.
स्टालिन का उभार है चुनाव
यह अनुमान कांग्रेस, वामपंथी दलों, विदुथलाई चिरुथिगाल काची, मुस्लिम पार्टियों और कुछ अन्य दलों के साथ द्रमुक मोर्चा के लिए एक भूस्खलन का संकेत देता है. गठबंधन अंकगणित को ध्यान में रखते हुए यह एआईएडीएमकेकी तुलना में बेहतर है. जिसके लिए भाजपा के साथ टाई-अप को एक दायित्व माना गया था. तमिलनाडु में एम करुणानिधि या उनकी दांव-पेंच में शामिल रहीं जयललिता जैसी हस्तियों के अतिरेक के अभाव में बहुत समय बाद हो रहे चुनावों में यह संभवतः एमके स्टालिन को खुद को एक नेता के रूप में उभरने का सबूत पेश करेगा.
इनको मिल सकती है जीत
अन्य संभावित प्रमुख विजेताओं में उधायनिधि स्टालिन, चेपक-त्रिपलीकेन निर्वाचन क्षेत्र से द्रमुक के जनरल नेता, कतपड़ी से पार्टी के दिग्गज दुरईमुर्गन और तिरुचिरापल्ली से मजबूत केएन नेहरू शामिल हैं. हालांकि मुख्यमंत्री ईपीएस को अपने मूल एजापडी से घर से बाहर निकलने की उम्मीद है लेकिन उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश सहयोगी शायद तैरना पसंद नहीं करते. शशिकला के भतीजे, टीटीवी धिनकरन, जो कि एक बार फिर अन्नाद्रमुक के प्रचारक साबित हुए हैं, कोविलपट्टी से विजयी हो सकते हैं.
कांग्रेस कहां है मजबूत
कांग्रेस कन्याकुमारी लोकसभा सीट को बरकरार रखने के लिए पूरी तरह तैयार है, जहां विधानसभा चुनाव के साथ ही उपचुनाव भी हुआ था. अनुमान के अनुसार पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की शिवगंगा जिले में पार्टी की अच्छी पकड़ मानी जाती है. वाम दलों और डीएमके-मोर्चा का हिस्सा रहे थोल थिरुमावलवन के वीसीके को भी नई विधानसभा में प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद है.
स्टालिन जीते तो यह चुनौतियां
यदि स्टालिन अंत में संख्याओं के साथ बने रहते हैं तो डीएमके के चुनावी वादों को लागू करने की एक बड़ी चुनौती होगी. जिसमें शैक्षिक ऋण की माफी और महिलाओं को एक महीने के लिए 1500 रुपये का भुगतान करना शामिल है. जिसमें अन्य माताओं के अलावा एकल माताओं का भी इंतजार करना होगा.
केरल में सब लाल-लाल
पड़ोसी केरल में 140 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए हैं. ईटीवी भारत के अनुमान से संकेत मिलता है कि माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा को लगातार दूसरा कार्यकाल मिलने जा रहा है. जो यह दर्शाता है कि यहां सत्ता विरोधी लहर नहीं है. 2016 के चुनावों के हिसाब से एलडीएफ को लगभग 11 सीटों का नुकसान हो सकता है, जो इस बार 93 से घटकर 82 तक पहुंच गई है. लेकिन यह भविष्यवाणी की जाती है कि लाल झंडा आरामदायक बहुमत के साथ सत्ता में वापस आएंगे.
![एग्जिट पोल केरल](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11583750_exit-poll-4.jpg)
निर्णायक नेता बने विजयन
सामाजिक कल्याण के उपाय, विकास कार्य और संकट के समय में एक मजबूत नेतृत्व जैसे कि निफा का प्रकोप, लगातार बाढ़ या कोविड महामारी, ऐसे कारण थे कि लोगों ने पिनारयी विजयन के नेतृत्व में वोट देने के लिए चुना. हालांकि एलडीएफ ने कुछ जमीन खो दी, जो अभियान की शुरुआत में विपक्षी कांग्रेस द्वारा उठाए गए भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों या पीएससी रैंक धारकों द्वारा रिले हड़ताल के कारण हुआ. फिर भी बेहतर शासन ने आखिरकार विजयन और उनके पक्ष में बात की कामरेड.
अन्य दलों का यह हाल
यूडीएफ को इस बार 2016 की 45 सीटों से बढ़ते हुए 56 सीटें मिल सकती हैं. जबकि मध्य केरल और आईयूएमएल के गढ़ में यूडीएफ के के वोटों की सुरक्षा जारी रखते हैं. यूडीएफ के केरल कांग्रेस (M) के बाहर जाने से उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया है. आईयूएमएल का मजबूत वोट बैंक कांग्रेस के रास्ते से आ सकता है क्योंकि पारंपरिक कांग्रेस निर्वाचन क्षेत्र वामपंथियों की तरफ मुड़ गए हैं.
फेल रहा राहुल फैक्टर
यहां तक कि राहुल गांधी फैक्टर भी राहुल की वायनाड लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्रों में एलडीएफ की बाजीगरी में सेंध लगाने में नाकाम रहा है. अनुमानों से पता चलता है कि 2019 में कांग्रेस ने जिन सात विधानसभा सीटों पर वोट पाए थे उनमें से चार ने एलडीएफ की तरफ जाने का फैसला किया है.
त्रिवेंद्रम में भी बदलाव
यही स्थिति त्रिवेंद्रम में दोहराई जा रही है. जहां कांग्रेस के शशि थरूर ने 2019 में आराम से जीत हासिल की. एलडीएफ की यहां एक अलग बढ़त है और वह त्रिवेंद्रम लोकसभा क्षेत्र की सीमा के भीतर सात विधानसभा सीटों में से चार जीत सकते हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को 2016 के चुनावों में मिली अकेली सीट से चुनाव लड़ना पड़ सकता है.
मेट्रोमैन की आशाएं धूमिल
देखा जाए तो एलडीएफ और यूडीएफ दोनों ने नेओम में कड़ी टक्कर दी है, जहां भाजपा के पहले विधायक ओ राजगोपाल ने पिछले चुनावों में जीत हासिल की थी. पलक्कड़ से दावा करने वाले मेट्रोमैन ई श्रीधरन की संभावनाएं धूमिल दिख रही हैं. हालांकि अंतिम परिणामों के लिए 2 मई का इंतजार करना होगा और सभी की निगाहें उसी तरफ हैं.