ETV Bharat / bharat

'भारत रूस-अमेरिका का पिछलग्गू न बने, तालिबान के सेटल होने के बाद करे बातचीत'

भारत को किसी का भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यही अमेरिका है, जिसने 1971 में पाकिस्तान की मदद की थी. वही रूस है, जिसने बांग्लादेश में हस्तक्षेप नहीं किया था. इसीलिए भारत को दूरदर्शिता से अफगानिस्तान और तालिबान पर निर्णय लेना होगा. किसी देश के पिछलग्गू बनकर नीतियों को निर्धारित नहीं करना चाहिए. यह कहना है रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बख्शी का. उनसे बातचीत की है ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना ने.

पूर्व विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी
पूर्व विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी
author img

By

Published : Aug 19, 2021, 6:40 PM IST

Updated : Aug 19, 2021, 8:27 PM IST

नई दिल्ली : तालिबान ने 20 साल बाद दोबारा अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के करीब तीन सप्ताह बाद ही सत्ता से बेदखल हो गई. इस समय दुनिया की नजरें अफगानिस्तान पर हैं. भारत भी अपनी नजर अफगानिस्तान गड़ाये हुए है. इन सब मुद्दों पर ईटीवी भारत ने रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी से बात की है. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कुछ कहा...

सवाल- ऐसे समय में जब अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर हो रहे हैं और तालिबान ने एक हफ्ते के अंदर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. क्या आप मानते हैं कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा इंटेलिजेंस फेलियर था

जवाब : इंटेलिजेंस फेलियर इसलिए है कि हमारी पॉलिटिकल पॉलिसी कमजोर रही है. वह इसलिए कमजोर रही है, क्योंकि हमने इंटरनल सिक्योरिटी की डॉक्टरीन नहीं लिखी. डॉक्टरीन वह पेपर होते हैं और वह सोच विचार हैं, जिससे पॉलिसी बनती है, न ही इंटरनल न एक्सटर्नल डॉक्टरीन तैयार की गई, रैंड कॉरपोरेशन ने 1995 में एक पेपर प्रकाशित किया था, जिसमें साफ लिखा गया था कि भारतवर्ष की 19 47 के बाद कोई डॉक्टरीन नहीं लिखी गई 1995 तक सारी फौज बगैर किसी डॉक्टरीन के लड़ रही थी.

रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बख्शी से खास बातचीत.

उन्होंने कहा कि कश्मीर की समस्या हो या कश्मीरी पंडितों की समस्या हो यह भी डॉक्टरीन की वजह से आईं. 1962 की समस्या भी डॉक्टरीन की कमी की वजह से आई थी, क्योंकि जब किसी को कुछ पता नहीं होता तो ब्यूरोक्रेसी भी क्लियर नहीं करना चाहती, क्योंकि वह अपनी मजबूत पकड़ व्यवस्था में बनाए रखना चाहती है. इसीलिए इससे पहले हमारे इंटेलिजेंस फेलियर श्रीलंका में हुई थी. और अब जाकर यहां हुई है. यहां यह कहना सही होगा कि यह लिखा था कि अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा होगा. हम सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में अमेरिका अपने हित में काम कर रहा था और आज अपने हित में ही छोड़कर चला भी गया. अमेरिका को परवाह नहीं है, लेकिन इसका भारत को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि भारत इसमें हस्तक्षेप करने से बच रहा है. पीओके भी हमारे हाथ में नहीं है. हमने अफगानिस्तान में जाने में देरी कर दी. अफगानिस्तान में चीन घुस गया है. वहीं पाकिस्तान ने समर्थन दे दिया. चीन ने वहां संयुक्त मोर्चा (combindfront) बना लिया. भारत ने अफगानिस्तान में चार मिलियन पैसे को निवेश किया है. ये सभी बर्बाद होने के कगार पर हैं.

सवाल- अब जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. तो ऐसे में भारत सरकार का क्या रुख होना चाहिए.

जवाब - हमें पता है कि तालिबान किस हद तक जा सकता है, लेकिन जो तालिबान के बारे में धारणाएं हैं उसे इस तरह से समझना चाहिए कि तालिबान एक कट्टर इस्लामिक पंथ है. वह वही करेगा जो इस्लाम का एक लीडर करता है वह अपने हिसाब से ही सता चलाएंगे, लेकिन यह सोचना भी गलत है कि वह जानवर है उनके पास दिमाग नहीं है. लेकिन उसके कानून में जो चीजें हैं, उसे तालिबान जरूर करेगा. जैसे कि शरिया कानून की बात कर लें और किसी और की औरत को उठाना बहुत आसान काम है. तालिबान ने अपने लड़ाकों को हूरों के सपने दिखाए थे. वह उसे पूरा होते देख रहे हैं. लेकिन अब तालिबान के नेताओं को यह पता चल गया है कि अब वह अफगानिस्तान में राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और सत्ता संभालने जा रहे हैं और अब वह जंगल के गुंडे की तरह या आतंकवादी की तरह नहीं है और उन्हें यह पता चल गया है कि यदि उन्हें हुकूमत करनी है तो उन्हें लोगों की देखभाल करनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि भारत ने जो पैसे अफगानिस्तान में लगाए हैं. वे तालिबान के काम की हैं. चीन भी अफगानिस्तान में पैसा लगाना चाहता है. चीन उन्हें अपने में समावेश करना चाहता है, लेकिन यहां चीन के साथ एक दिक्कत आएगी कि चीन ने श्रीलंका को पाकिस्तान को बांग्लादेश को सभी को कर्ज में डुबो दिया और उसके एवज में उनकी जमीन पर भी कब्जा कर लिया. लेकिन यह बात चीन अफगानिस्तान में नहीं दोहरा पाएगा. हां यह जरूर है कि तालिबाना चीन को पैसे जरूर लगाने देंगे और यह भी कहेंगे कि सड़कें बनाओ, विकास परियोजनाएं यहां पर शुरू करो, लेकिन तालिबानी सत्ता अपने नियंत्रण में रखेंगे. यहां यह फर्क होगा और यदि चीन ने उछल कूद मचाई तो तालिबान चीन को ऐसा नहीं करने देगा.

उन्होंने कहा कि इस समय भारत को मुस्लिम देशों के संगठनों ( ओआईसी और शंघाई कोऑपरेशन इत्यादि) से पूछना पड़ेगा कि वह तालिबान को किस तरह देखते हैं यदि इन देशों का सपोर्ट तालिबान को है तो फिर कोई दुनिया की कोई भी ताकत तालिबान को उनकी सत्ता से नहीं हटा सकती. यहां तक कि अमेरिका और रूस भी मिलकर तालिबान को अफगानिस्तान से नहीं हटा पाएंगे. यदि इस्लामिक नेशन तालिबान को सपोर्ट कर रही हैं, तो जो चीजें हैं मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दिखाए जा रहे हैं कि तालिबान के लड़ाके महिलाओं पर जुल्म कर रहे हैं बच्चों को उठाकर ले जा रहे हैं. यह तमाम चीजें मीडिया की बातें हैं, लेकिन तालिबान ने यह कह दिया है कि वह हिंदुस्तान के साथ शांतिपूर्ण वातावरण चाहता है, बल्कि तालिबान ने अफगानिस्तान में रह रहे भारतियों को सुरक्षा का आश्वासन भी दिया है. इसके अलावा तालिबान के लड़ाके सिख-हिंदुओं के पास भी गये. तालिबान ने उनसे यह भी कहा कि आप सुरक्षित हैं. इसीलिए सरकार मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कोई स्टेटमेंट नहीं दे सकती, क्योंकि मीडिया को वास्तविक हालात अभी पता नहीं है.

उन्होंने कहा कि रूस और अमेरिका की सेना ने अफगानिस्तान में काफी हथियार छोड़ा है. ये सभी तालिबानी लड़ाकों को मिल गए हैं. अमेरिका ने जो कुछ यहां पर छोड़ा है. अब वह तालिबानियों के पास है, जब सोवियत यूनियन टूटा था और कन्वेंशनल ट्रीटी हुई थी तो सर प्लस हथियार जो थे वह मार्केट में आ गए थे और वह भी तालिबानियों के हाथ लग गए थे इसलिए हम कह सकते हैं कि हथियार हेलीकॉप्टर और तमाम चीजों के मामले में वह कहीं से कम नहीं है. वह कहीं भी कहर बरपा सकते हैं और अब इस स्थिति में है कि वह हुकूमत करना चाहता है और यही वजह है कि वह लोगों से फुल एक्सेप्टेबिलिटी मांग रहा है.

सवाल : क्या तालिबान अपनी छवि बदलना चाह रहा है, क्योंकि हमने देखा किम उल्ला खैरुल्लाह और अब्दुल सलाम ने अपील की है कि सभी तालिबानी हुकूमत का साथ दें और तालिबानी किसी से बदला नहीं लेंगे एक तरह से तालिबान अपने सॉफ्ट इमेज दिखाना चाह रहा है क्या तालिबान पर भरोसा किया जा सकता है.

जवाब- जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भरोसे पर रहता है वह मूर्ख होता है. इसमें कोई किसी का भरोसा नहीं करता. हर देश अपने अपने हित साधता है. आज वर्तमान हालात में कौन सा देश किसे फायदा पहुंचा रहा है. इतनी दूर दृष्टि भी होनी चाहिए कि आने वाले समय में अगला कैसे व्यवहार करेगा. यह जानना चाहिए और यह शतरंज की चाल होती है.

उसी हिसाब से किसी देश को अपनी चाल चलनी चाहिए इसमें कोई भी अच्छा बुरा या पीठ में छुरा घोंपने जैसी बातें नहीं आती है. यह सभी चीजें कूटनीति का हिस्सा है और इनमें कोई सच्चाई नहीं होती. यहां भारत को यह पता है कि चीन ,रूस और पाकिस्तान सभी तालिबान को समर्थन कर रहे हैं लेकिन तालिबानी आपकी इज्जत करता रहे इसके लिए आपको बाकी सारे देशों को मिलाकर और मानवाधिकार संगठनों को मिलाकर एक लीडरशिप में भारत को आगे आना चाहिए और इस पर अभियान चलाना चाहिए और अफगानियों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि अब अफगानियों के साथ हमारा रिश्ता करीब100 सालों से पुराना हो चुका है. विंग कमांडर अमानुल्लाह खान कितने साल पहले भारत आए थे. अफगानी हमेशा से भारत के साथ अच्छे तरह से रहे हैं. यदि हम इस समय में मानवता के आधार पर सहायता अफगानियों को देंगे तो ये भविष्य के लिए अच्छा होगा.

इस समय तालिबान को भारत और अन्य देशों की सहायता की जरूरत है. उन्हें पानी की सप्लाई, बिजली की सप्लाई तमाम चीजों की सप्लाई और सुविधाएं चाहिए. यदि इस समय आगे बढ़कर मानवता के ग्राउंड पर भारत मदद करता है तो यह भारत के लिए अच्छा होगा और तालिबान भी आगे जाकर न्यूट्रल रहेगा. और तालिबान एकदम से चीन के वश में भी नहीं आएगा, क्योंकि यदि चीन आगे बढ़ चढ़कर मदद कर देगा तो फिर कोई नहीं रोक पाएगा. इस समय मिलिट्री एक्शन बिल्कुल आउट ऑफ क्वेश्चन है.

सवाल -क्या आपको लगता है कि भारत तालिबान के संपर्क में है, क्योंकि कई विपक्षी पार्टियों ने भी यह आरोप लगाएं कि सरकार की तरफ से चुप्पी आखिर क्यों है.

जवाब- यह सवाल सोलह आने का सवाल है, क्योंकि हम भी सुनते आ रहे हैं कि दोहा में भी भारत सरकार के साथ बैठक हुई है और कई बातें हम सुनते आ रहे हैं और इसमें यह सवाल उठाया जा रहा है कि सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा इस पर मैं यह कहना चाहूंगा कि यह कूटनीति का हिस्सा होता है और भारत सरकार को यह मालूम है कि कब क्या बोलना है वह मीडिया के दबाव में कोई जवाब नहीं देंगे और वह अपने तुरूप का पत्ता कब निकालेंगे. इस बात से सरकार भली-भांति वाकिफ है कब क्या कदम उठाने हैं.

सवाल-अफगानिस्तान कंगाली के रास्ते पर है अफगान बैंक के कमिश्नर ने भी यह संकेत दिए हैं कि भले ही तालिबान सत्ता में सत्तारूढ़ होने का दावा कर ले, लेकिन देश की आर्थिक हालात ठीक नहीं है, ऐसे में भारत की जो विकास परियोजनाएं अफगानिस्तान में चल रही हैं. और भारत ने वहां पर जो पैसे लगाए हुए हैं. क्या भारत इसे आगे जारी रखेगा.

जवाब- इस फ्रंट पर भारत का स्टैंड तभी क्लियर होगा, जब भारत के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के बीच बातचीत के बाद यह बातें साफ नहीं हो जाएंगी. मुख्य तौर पर तालिबान में पश्तून बहुल लोग हैं. इसमें सेंट्रल एशियन रिपब्लिक के ट्राईबल्स भी हैं. इसके अलावा पाकिस्तान के भी लोग शामिल हैं. पाकिस्तान से जो लोग अफगानिस्तान आए हैं वे लीडरशिप की बात पूरी तरह से नहीं मानते हैं. तीन चार महीने तक तालिबान को समझने में लगेगा और उसके बाद जब वतावरण शांत हो जाएगा तभी पता चल पाएगा कि कौन लीडरशिप में स्थायित्व रख पाता है. इसलिए भारत को जरूरत है कि कम से कम डेढ़ महीने तक वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपनाए तभी पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठ रहा है और तभी भारत यह निर्णय ले पाएगा कि आर्थिक तौर पर कितना समावेश करना चाहिए और योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं और उससे पहले वहां जाकर अधिकारियों को पूरा जायजा लेना पड़ेगा कि विकास परियोजना के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हुआ है या नहीं. मिलिट्री ट्रेनिंग प्रोग्राम तालिबान जारी रखना चाहता है या नहीं फ्लाइंग ट्रेनिंग के जो कार्यक्रम चल रहे थे उसे तालिबान जारी रखता है या नहीं. इसके अलावा जिन योजनाओं के तहत जो अफगानी अधिकारी यहां आए हैं. वह फंसे हुए हैं और उन्हें पता नहीं कि अब उन्हें कौन बुलाएगा. इसलिए इन समस्याओं को दूर करने के लिए हमें कुछ इंतजार करना पड़ेगा. तभी कोई निर्णय लेना सही होगा.

सवाल- तालिबान में जो सरकार सत्तारूढ़ हुई है या होने जा रही है. यह एक सफल सरकार हो पाएगी. क्या भारत को इसका साथ देना चाहिए.

जवाब- मुझे लगता है कि तालिबान वहां पर सत्ता कायम कर लेंगे, लेकिन कुछ समय लगेगा पंचशिर वैली में जो चल रहा है वह तालिबान के खिलाफ जरूर है. लेकिन तालिबानियों को सेटल होने में अभी कम से कम 15 दिन लगेंगे. क्योंकि इनका जो नेचर है वह ट्राइबल नेचर है वह अपने-अपने एरिया को कंट्रोल करके रखते हैं और इनके इंटेलिजेंस पर शक करना बेमानी होगा. क्योंकि यह इंटेलिजेंस में शर्तिया तेज होते हैं, लेकिन हां यह जरूर है कि यह अपनी धार्मिक पॉलिसी पर ही चलते हैं और वह काफी क्रूर है और इस खेल में भारत को किसी का भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यही अमेरिका है, जो 1971 में पाकिस्तान की मदद कर रहा था. यह वही रूस है, जिसने बांग्लादेश में हस्तक्षेप नहीं किया था. इसीलिए यहां पर भारत सरकार को दूरदर्शिता से ही अफगानिस्तान और तालिबान पर निर्णय लेना होगा. किसी देश के पिछलग्गू बनकर नीतियों को निर्धारित नहीं करना चाहिए.

नई दिल्ली : तालिबान ने 20 साल बाद दोबारा अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने के करीब तीन सप्ताह बाद ही सत्ता से बेदखल हो गई. इस समय दुनिया की नजरें अफगानिस्तान पर हैं. भारत भी अपनी नजर अफगानिस्तान गड़ाये हुए है. इन सब मुद्दों पर ईटीवी भारत ने रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी से बात की है. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कुछ कहा...

सवाल- ऐसे समय में जब अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर हो रहे हैं और तालिबान ने एक हफ्ते के अंदर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. क्या आप मानते हैं कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा इंटेलिजेंस फेलियर था

जवाब : इंटेलिजेंस फेलियर इसलिए है कि हमारी पॉलिटिकल पॉलिसी कमजोर रही है. वह इसलिए कमजोर रही है, क्योंकि हमने इंटरनल सिक्योरिटी की डॉक्टरीन नहीं लिखी. डॉक्टरीन वह पेपर होते हैं और वह सोच विचार हैं, जिससे पॉलिसी बनती है, न ही इंटरनल न एक्सटर्नल डॉक्टरीन तैयार की गई, रैंड कॉरपोरेशन ने 1995 में एक पेपर प्रकाशित किया था, जिसमें साफ लिखा गया था कि भारतवर्ष की 19 47 के बाद कोई डॉक्टरीन नहीं लिखी गई 1995 तक सारी फौज बगैर किसी डॉक्टरीन के लड़ रही थी.

रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बख्शी से खास बातचीत.

उन्होंने कहा कि कश्मीर की समस्या हो या कश्मीरी पंडितों की समस्या हो यह भी डॉक्टरीन की वजह से आईं. 1962 की समस्या भी डॉक्टरीन की कमी की वजह से आई थी, क्योंकि जब किसी को कुछ पता नहीं होता तो ब्यूरोक्रेसी भी क्लियर नहीं करना चाहती, क्योंकि वह अपनी मजबूत पकड़ व्यवस्था में बनाए रखना चाहती है. इसीलिए इससे पहले हमारे इंटेलिजेंस फेलियर श्रीलंका में हुई थी. और अब जाकर यहां हुई है. यहां यह कहना सही होगा कि यह लिखा था कि अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा होगा. हम सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान में अमेरिका अपने हित में काम कर रहा था और आज अपने हित में ही छोड़कर चला भी गया. अमेरिका को परवाह नहीं है, लेकिन इसका भारत को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि भारत इसमें हस्तक्षेप करने से बच रहा है. पीओके भी हमारे हाथ में नहीं है. हमने अफगानिस्तान में जाने में देरी कर दी. अफगानिस्तान में चीन घुस गया है. वहीं पाकिस्तान ने समर्थन दे दिया. चीन ने वहां संयुक्त मोर्चा (combindfront) बना लिया. भारत ने अफगानिस्तान में चार मिलियन पैसे को निवेश किया है. ये सभी बर्बाद होने के कगार पर हैं.

सवाल- अब जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. तो ऐसे में भारत सरकार का क्या रुख होना चाहिए.

जवाब - हमें पता है कि तालिबान किस हद तक जा सकता है, लेकिन जो तालिबान के बारे में धारणाएं हैं उसे इस तरह से समझना चाहिए कि तालिबान एक कट्टर इस्लामिक पंथ है. वह वही करेगा जो इस्लाम का एक लीडर करता है वह अपने हिसाब से ही सता चलाएंगे, लेकिन यह सोचना भी गलत है कि वह जानवर है उनके पास दिमाग नहीं है. लेकिन उसके कानून में जो चीजें हैं, उसे तालिबान जरूर करेगा. जैसे कि शरिया कानून की बात कर लें और किसी और की औरत को उठाना बहुत आसान काम है. तालिबान ने अपने लड़ाकों को हूरों के सपने दिखाए थे. वह उसे पूरा होते देख रहे हैं. लेकिन अब तालिबान के नेताओं को यह पता चल गया है कि अब वह अफगानिस्तान में राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और सत्ता संभालने जा रहे हैं और अब वह जंगल के गुंडे की तरह या आतंकवादी की तरह नहीं है और उन्हें यह पता चल गया है कि यदि उन्हें हुकूमत करनी है तो उन्हें लोगों की देखभाल करनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि भारत ने जो पैसे अफगानिस्तान में लगाए हैं. वे तालिबान के काम की हैं. चीन भी अफगानिस्तान में पैसा लगाना चाहता है. चीन उन्हें अपने में समावेश करना चाहता है, लेकिन यहां चीन के साथ एक दिक्कत आएगी कि चीन ने श्रीलंका को पाकिस्तान को बांग्लादेश को सभी को कर्ज में डुबो दिया और उसके एवज में उनकी जमीन पर भी कब्जा कर लिया. लेकिन यह बात चीन अफगानिस्तान में नहीं दोहरा पाएगा. हां यह जरूर है कि तालिबाना चीन को पैसे जरूर लगाने देंगे और यह भी कहेंगे कि सड़कें बनाओ, विकास परियोजनाएं यहां पर शुरू करो, लेकिन तालिबानी सत्ता अपने नियंत्रण में रखेंगे. यहां यह फर्क होगा और यदि चीन ने उछल कूद मचाई तो तालिबान चीन को ऐसा नहीं करने देगा.

उन्होंने कहा कि इस समय भारत को मुस्लिम देशों के संगठनों ( ओआईसी और शंघाई कोऑपरेशन इत्यादि) से पूछना पड़ेगा कि वह तालिबान को किस तरह देखते हैं यदि इन देशों का सपोर्ट तालिबान को है तो फिर कोई दुनिया की कोई भी ताकत तालिबान को उनकी सत्ता से नहीं हटा सकती. यहां तक कि अमेरिका और रूस भी मिलकर तालिबान को अफगानिस्तान से नहीं हटा पाएंगे. यदि इस्लामिक नेशन तालिबान को सपोर्ट कर रही हैं, तो जो चीजें हैं मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दिखाए जा रहे हैं कि तालिबान के लड़ाके महिलाओं पर जुल्म कर रहे हैं बच्चों को उठाकर ले जा रहे हैं. यह तमाम चीजें मीडिया की बातें हैं, लेकिन तालिबान ने यह कह दिया है कि वह हिंदुस्तान के साथ शांतिपूर्ण वातावरण चाहता है, बल्कि तालिबान ने अफगानिस्तान में रह रहे भारतियों को सुरक्षा का आश्वासन भी दिया है. इसके अलावा तालिबान के लड़ाके सिख-हिंदुओं के पास भी गये. तालिबान ने उनसे यह भी कहा कि आप सुरक्षित हैं. इसीलिए सरकार मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कोई स्टेटमेंट नहीं दे सकती, क्योंकि मीडिया को वास्तविक हालात अभी पता नहीं है.

उन्होंने कहा कि रूस और अमेरिका की सेना ने अफगानिस्तान में काफी हथियार छोड़ा है. ये सभी तालिबानी लड़ाकों को मिल गए हैं. अमेरिका ने जो कुछ यहां पर छोड़ा है. अब वह तालिबानियों के पास है, जब सोवियत यूनियन टूटा था और कन्वेंशनल ट्रीटी हुई थी तो सर प्लस हथियार जो थे वह मार्केट में आ गए थे और वह भी तालिबानियों के हाथ लग गए थे इसलिए हम कह सकते हैं कि हथियार हेलीकॉप्टर और तमाम चीजों के मामले में वह कहीं से कम नहीं है. वह कहीं भी कहर बरपा सकते हैं और अब इस स्थिति में है कि वह हुकूमत करना चाहता है और यही वजह है कि वह लोगों से फुल एक्सेप्टेबिलिटी मांग रहा है.

सवाल : क्या तालिबान अपनी छवि बदलना चाह रहा है, क्योंकि हमने देखा किम उल्ला खैरुल्लाह और अब्दुल सलाम ने अपील की है कि सभी तालिबानी हुकूमत का साथ दें और तालिबानी किसी से बदला नहीं लेंगे एक तरह से तालिबान अपने सॉफ्ट इमेज दिखाना चाह रहा है क्या तालिबान पर भरोसा किया जा सकता है.

जवाब- जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भरोसे पर रहता है वह मूर्ख होता है. इसमें कोई किसी का भरोसा नहीं करता. हर देश अपने अपने हित साधता है. आज वर्तमान हालात में कौन सा देश किसे फायदा पहुंचा रहा है. इतनी दूर दृष्टि भी होनी चाहिए कि आने वाले समय में अगला कैसे व्यवहार करेगा. यह जानना चाहिए और यह शतरंज की चाल होती है.

उसी हिसाब से किसी देश को अपनी चाल चलनी चाहिए इसमें कोई भी अच्छा बुरा या पीठ में छुरा घोंपने जैसी बातें नहीं आती है. यह सभी चीजें कूटनीति का हिस्सा है और इनमें कोई सच्चाई नहीं होती. यहां भारत को यह पता है कि चीन ,रूस और पाकिस्तान सभी तालिबान को समर्थन कर रहे हैं लेकिन तालिबानी आपकी इज्जत करता रहे इसके लिए आपको बाकी सारे देशों को मिलाकर और मानवाधिकार संगठनों को मिलाकर एक लीडरशिप में भारत को आगे आना चाहिए और इस पर अभियान चलाना चाहिए और अफगानियों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि अब अफगानियों के साथ हमारा रिश्ता करीब100 सालों से पुराना हो चुका है. विंग कमांडर अमानुल्लाह खान कितने साल पहले भारत आए थे. अफगानी हमेशा से भारत के साथ अच्छे तरह से रहे हैं. यदि हम इस समय में मानवता के आधार पर सहायता अफगानियों को देंगे तो ये भविष्य के लिए अच्छा होगा.

इस समय तालिबान को भारत और अन्य देशों की सहायता की जरूरत है. उन्हें पानी की सप्लाई, बिजली की सप्लाई तमाम चीजों की सप्लाई और सुविधाएं चाहिए. यदि इस समय आगे बढ़कर मानवता के ग्राउंड पर भारत मदद करता है तो यह भारत के लिए अच्छा होगा और तालिबान भी आगे जाकर न्यूट्रल रहेगा. और तालिबान एकदम से चीन के वश में भी नहीं आएगा, क्योंकि यदि चीन आगे बढ़ चढ़कर मदद कर देगा तो फिर कोई नहीं रोक पाएगा. इस समय मिलिट्री एक्शन बिल्कुल आउट ऑफ क्वेश्चन है.

सवाल -क्या आपको लगता है कि भारत तालिबान के संपर्क में है, क्योंकि कई विपक्षी पार्टियों ने भी यह आरोप लगाएं कि सरकार की तरफ से चुप्पी आखिर क्यों है.

जवाब- यह सवाल सोलह आने का सवाल है, क्योंकि हम भी सुनते आ रहे हैं कि दोहा में भी भारत सरकार के साथ बैठक हुई है और कई बातें हम सुनते आ रहे हैं और इसमें यह सवाल उठाया जा रहा है कि सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा इस पर मैं यह कहना चाहूंगा कि यह कूटनीति का हिस्सा होता है और भारत सरकार को यह मालूम है कि कब क्या बोलना है वह मीडिया के दबाव में कोई जवाब नहीं देंगे और वह अपने तुरूप का पत्ता कब निकालेंगे. इस बात से सरकार भली-भांति वाकिफ है कब क्या कदम उठाने हैं.

सवाल-अफगानिस्तान कंगाली के रास्ते पर है अफगान बैंक के कमिश्नर ने भी यह संकेत दिए हैं कि भले ही तालिबान सत्ता में सत्तारूढ़ होने का दावा कर ले, लेकिन देश की आर्थिक हालात ठीक नहीं है, ऐसे में भारत की जो विकास परियोजनाएं अफगानिस्तान में चल रही हैं. और भारत ने वहां पर जो पैसे लगाए हुए हैं. क्या भारत इसे आगे जारी रखेगा.

जवाब- इस फ्रंट पर भारत का स्टैंड तभी क्लियर होगा, जब भारत के विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के बीच बातचीत के बाद यह बातें साफ नहीं हो जाएंगी. मुख्य तौर पर तालिबान में पश्तून बहुल लोग हैं. इसमें सेंट्रल एशियन रिपब्लिक के ट्राईबल्स भी हैं. इसके अलावा पाकिस्तान के भी लोग शामिल हैं. पाकिस्तान से जो लोग अफगानिस्तान आए हैं वे लीडरशिप की बात पूरी तरह से नहीं मानते हैं. तीन चार महीने तक तालिबान को समझने में लगेगा और उसके बाद जब वतावरण शांत हो जाएगा तभी पता चल पाएगा कि कौन लीडरशिप में स्थायित्व रख पाता है. इसलिए भारत को जरूरत है कि कम से कम डेढ़ महीने तक वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपनाए तभी पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठ रहा है और तभी भारत यह निर्णय ले पाएगा कि आर्थिक तौर पर कितना समावेश करना चाहिए और योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं और उससे पहले वहां जाकर अधिकारियों को पूरा जायजा लेना पड़ेगा कि विकास परियोजना के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हुआ है या नहीं. मिलिट्री ट्रेनिंग प्रोग्राम तालिबान जारी रखना चाहता है या नहीं फ्लाइंग ट्रेनिंग के जो कार्यक्रम चल रहे थे उसे तालिबान जारी रखता है या नहीं. इसके अलावा जिन योजनाओं के तहत जो अफगानी अधिकारी यहां आए हैं. वह फंसे हुए हैं और उन्हें पता नहीं कि अब उन्हें कौन बुलाएगा. इसलिए इन समस्याओं को दूर करने के लिए हमें कुछ इंतजार करना पड़ेगा. तभी कोई निर्णय लेना सही होगा.

सवाल- तालिबान में जो सरकार सत्तारूढ़ हुई है या होने जा रही है. यह एक सफल सरकार हो पाएगी. क्या भारत को इसका साथ देना चाहिए.

जवाब- मुझे लगता है कि तालिबान वहां पर सत्ता कायम कर लेंगे, लेकिन कुछ समय लगेगा पंचशिर वैली में जो चल रहा है वह तालिबान के खिलाफ जरूर है. लेकिन तालिबानियों को सेटल होने में अभी कम से कम 15 दिन लगेंगे. क्योंकि इनका जो नेचर है वह ट्राइबल नेचर है वह अपने-अपने एरिया को कंट्रोल करके रखते हैं और इनके इंटेलिजेंस पर शक करना बेमानी होगा. क्योंकि यह इंटेलिजेंस में शर्तिया तेज होते हैं, लेकिन हां यह जरूर है कि यह अपनी धार्मिक पॉलिसी पर ही चलते हैं और वह काफी क्रूर है और इस खेल में भारत को किसी का भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यही अमेरिका है, जो 1971 में पाकिस्तान की मदद कर रहा था. यह वही रूस है, जिसने बांग्लादेश में हस्तक्षेप नहीं किया था. इसीलिए यहां पर भारत सरकार को दूरदर्शिता से ही अफगानिस्तान और तालिबान पर निर्णय लेना होगा. किसी देश के पिछलग्गू बनकर नीतियों को निर्धारित नहीं करना चाहिए.

Last Updated : Aug 19, 2021, 8:27 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.