नई दिल्ली: आज हम बात करेंगे एक ऐसी शख्शियत के बारे में, जिन्होंने चंबल की धरती को डकैतों के आतंक से मुक्त करवाया, अपना पूरा जीवन गांधीवादी विचारों को स्थापित करने में समर्पित कर दिया, जिन्हें उनके साथी भाईजी के नाम से बुलाते थे. जी हां हम बात करेंगे एसएन सुब्बा राव की.
गांधीवादी विचारों को स्थापित करने में सुब्बा राव की खास पहचान रही. अक्सर सिर पर टोपी, खाकी हाफ पैंट और सफेद शर्ट पहनने वाले इस महान व्यक्तित्व ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और विनोबा भावे के विचारों के प्रसार-प्रचार, दुर्दांत डाकुओं को फिर से समाज की मुख्य धारा से जोड़ने और देश के युवाओं को श्रम के महत्व को समझाने और उन्हें समाज सेवा से जोड़ने के लिए प्रेरित करने में लगा दिया.
साल 1929 में कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मे डॉ. सुब्बा राव 13 साल की उम्र में ही भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़ गये थे. उन्होंने गांधी सेवा संघ की स्थापना कर हजारों लोगों को रोजगार दिया. वे राष्ट्रीय सेवा योजना के संस्थापना की थी. उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया. गांधीवादी विचारों को स्थापित करने के लिए उन्होंने 1954 में चंबल में कदम रखा था. शांति के प्रेरक डॉ. सुब्बा राव ने चंबल घाटी में डाकू उन्मूलन के लिए काम किया था. वो निरंतर डकैतों के संपर्क में रहे और उनका ह्रदय परिवर्तन कराने में सफल रहे.
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'चंबल घाटी शांति मिशन' के तहत उन्होंने बड़ी संख्या में डकैतों का एक साथ समपर्ण कराया था. मध्यप्रदेश के चंबल को दस्यु मुक्त करने में डॉ. एसएन सुब्बा राव का बड़ा योगदान रहा है. उन्होंने 14 अप्रैल 1972 में जौरा के गांधी सेवा आश्रम में एक साथ 654 डकैतों का समर्पण कराया था. जबकि 100 डकैतों ने राजस्थान के धौलपुर में गांधीजी की तस्वीर के सामने हथियार डाले थे. इनमें मौहर सिंह और माधौ सिंह जैसे दुर्दांत डकैतों ने भी हथियार डाल दिए थे.
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सुब्बा राव का एक वाक्या है जब वो जयपुर में किसी कार्यक्रम में भाग लेने गये थे, जहां दुर्दांत डाकू माधो सिंह भी मौजूद थे, जिन्होंने उनकी प्रेरणा से आत्म समर्पण किया था. वह अपने कई रोमांचित कर देने वाले संस्मरण सुना रहे थे. तभी किसी ने उनसे पूछ दिया कि आपने डाकू रहते कितने लोगों का शिकार किया तो उनसे कोई जवाब नहीं बन पाया, लेकिन सुब्बा राव ने हस्तक्षेप करते हुए जवाब दिया कि 'आप सब यदि अपनी माताओं से यह पूछें की उन्होंने अब तक कितनी तरकारियां काटी हैं? तो वे क्या जवाब देंगी. खैर ! अब सिंह जैसे कई डाकुओं ने अपनी पिछली जिंदगी को भुलाकर समाज की मुख्य धारा से जुड़ने का फैसला लिया है. समाज की सेवा ही उनका पश्चाताप है. जिसके लिए वे सभी कृत संरकल्प हैं'. सुब्बाराव जी ने ऐसे कई लोगों के हृदय परिवर्तन करवाए और सभी को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ा.
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पद्मश्री से सम्मानित डॉ. एसएन सुब्बाराव को उनके कामों के लिए 1995 में राष्ट्रीय युवा परियोजना को राष्ट्रीय युवा पुरस्कार, 2003 में राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, 2006 में तीन जमनालाल बजाज पुरस्कार, 2014 में कर्नाटक सरकार की ओर से महात्मा गांधी प्रेरणा सेवा पुरस्कार और नागपुर में 2014 में ही राष्ट्रीय सद्भावना एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
डॉ. एसएन सुब्बाराव की कहानी हमें सिद्धांतों और मूल्यों के साथ जीवन जीने की सीख देती है. सीख देती है कि हमें हमेशा समाज में शांति, अहिंसा और सद्भावना बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए.
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