उत्तरकाशी : उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बुजुर्ग महिलाएं अक्षर ज्ञान सीख रही हैं. जीवन के 60 से ज्यादा बसंत देख चुकीं ये बुजुर्ग महिलाएं किसी की दादी हैं, तो किसी की नानी. पोते-पोतियों के पढ़ने-लिखने की उम्र में इन दादी-नानियों ने खुद कलम उठाई है और साक्षर बनने की ओर कदम बढ़ाया है.
उत्तराखंड के पहाड़ी जिले उत्तरकाशी में इन दिनों ये नजारा आम हो गया है. दरअसल, महिलाएं हर रोज एक अनोखी चौपाल लगा रही हैं. कभी घरों में सिमटकर रहने वाली ये महिलाएं उम्र की एक दहलीज पार करने के बाद अब ओट से निकलकर बाहर आ रही हैं.
वैसे तो हर गांव में चौपाल लगना आम बात है, लेकिन यहां आम चौपाल नहीं, बल्कि शिक्षा की चौपाल लगती है. विकासखंड भटवाड़ी के लोन्थरु और सिरोर गांवों में चौपालों पर अलग ही माहौल देखने को मिलता है. अंगूठा लगाना छोड़ ये महिलाएं किताबों पर रेखाएं खींचकर आखर से आखर मिलाना सीख रही हैं. शिक्षा को लेकर इन महिलाओं का उत्साह वाकई में देखने लायक है.
उत्तरकाशी जिला प्रशासन की पहल का स्वागत करते हुए इन बुजुर्ग महिलाओं का कहना है कि उन्हें इस उम्र में शिक्षा लेने में कोई हिचक नहीं है. पारिवारिक परिस्थितियों के चलते उन्हें सही समय पर शिक्षा हासिल नहीं हुई थी. ऐसे में इस उम्र में ही सही, सभी महिलाएं जोश और जुनून के साथ पढ़ाई कर रही हैं.
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कुछ तो अपना हस्ताक्षर करना भी सीख गई हैं. दरअसल, बुजुर्ग महिलाओं को शिक्षित करने की ये पहल जिला प्रशासन द्वारा की गई है. भटवाड़ी विकासखंड में 3,115 निरक्षर हैं, जिनके लिए मॉडल साक्षर विकासखंड योजना शुरू की गई है.
गांव की बुजुर्ग विजरा देवी का कहना है कि, 'चौपाल के माध्यम से शिक्षित होना एक सुखद अनुभव है, किसी के यहां कोई महिला बगैर शिक्षा के नहीं रहेगी. अगर गांव में कोई आएगा, तो ऐसे में खुले मन से लोगों से बातचीत कर सकेंगे. कम से कम अक्षर बोध होना चाहिए. गांव की महिला अनपढ़ नहीं रहनी चाहिए. आएगा तभी जब सीखेंगे.'
वहीं, ग्रामीण सोना देवी पढ़ाई को लेकर अपने अनुभव के बारे में बताती हैं. वो कहती हैं कि ये विचार उनकी भलाई के लिए ही है. अभी वो नाम लिखना सीख गई हैं, अभी तक तो अंगूठा लगाती थीं.
इस पाठशाला को लेकर बुजुर्ग महिलाओं में काफी उत्साह दिख रहा है. गौर हो कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के 2020 के सर्वेक्षण के अनुसार केरल के बाद दिल्ली 88.7 प्रतिशत के साथ साक्षरता दर के साथ दूसरे स्थान पर है. उत्तराखंड 87.6 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है. पहाड़ी राज्य का ये आंकड़ा और सुधरे इसको लेकर ग्रामीण जनपदों में ऐसी पहल सराहनीय है.