चेन्नई: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को कहा कि भारत को उद्योग जगत की जरूरतों को समझना होगा. शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों को इस तरह तैयार करना होगा कि वे उद्योगों में अपनी जगह बना सकें और देश के विकास लक्ष्यों को पाने में मदद दे सकें. सीतारमण ने यहां एक कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक विश्वविद्यालयों की तुलना में भारत की उच्च शिक्षा किसी भी लिहाज से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ कंपनियों का प्रबंधन करने वाले लोगों में भारतीय विश्वविद्यालयों से पढ़ाई करने वाले लोग दूसरे स्थान पर हैं.
उन्होंने तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी, डिजाइन एवं विनिर्माण संस्थान के बोर्ड में सेंट-गोबेन इंडिया के प्रतिनिधित्व का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि उद्योग शोध संस्थानों के बोर्ड में शामिल होते हैं तो वे उद्योग खासकर भविष्य के उद्यमों को समझ पाते हैं. उन्होंने कहा कि इससे भारत कुछ महत्वपूर्ण चीजों के विनिर्माण का केंद्र बन सकता है, जिसके लिए आज हम पूरी तरह से दूसरे देशों पर निर्भर हैं. जब आपूर्ति श्रृंखला में गतिरोध आता है तो हमारे विनिर्माण को नुकसान होता है.
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सीतारमण ने चेन्नई से सटे इस शिक्षण संस्थान के 10वें दीक्षांत समारोह में कहा कि हमें यह समझना होगा कि उद्योगों की जरूरत क्या है. वे हमारे लिए तथा दुनिया के लिए विनिर्माण के लिहाज से सक्षम हों. इसलिए ऐसे शानदार शिक्षण संस्थानों के संचालक मंडलों में उद्योग जगत के लोगों का होना बहुत महत्वपूर्ण है जो प्रतिभाओं को आकर्षित करें, सर्वश्रेष्ठ कौशल और क्षमता लाएं और जिनका प्रशिक्षण अनुभव अच्छा खासा हो, यह बहुत आवश्यक है.
भारत की शिक्षा प्रणाली को अब भी बेहतर बनाने की जरूरत संबंधी टिप्पणियों को खारिज करते हुए सीतारमण ने कहा कि दुनियाभर में शीर्ष स्तर की 58 कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं. उनमें से 11 बड़े कॉरपोरेट घराने हैं जो एक हजार अरब डॉलर से अधिक का राजस्व अर्जित करते हैं और जिनका 4 हजार अरब डॉलर से अधिक का कारोबार है. उन्होने कहा कि अगर भारतीय मूल के 58 लोग इस आकार के समूहों के प्रमुख बने हैं तो उन्होंने अन्य किसी से कम शिक्षा प्राप्त नहीं की होगी. बल्कि सच यह है कि उन्होंने हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों से बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त की है.