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वैवाहिक बलात्कार मामले में हाई कोर्ट ने कहा, आईपीसी की धारा 377 और 375 में विसंगति - आईपीसी की धारा 377 और 375 में विसंगति

न्यायाधीश ने कहा, इस तथ्य के बावजूद कि आप्रकृतिक यौन संबंध भी यौन क्रिया का हिस्सा है और, इसलिए, अगर इसमें सहमति है तो यह बलात्कार नहीं है, लेकिन, उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले धारा 377 की विसगंति प्रभावी रही.

हाई कोर्ट
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Published : Jan 20, 2022, 9:22 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (delhi high court) ने बुधवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की पूर्ववर्ती धारा 377 और बलात्कार कानून में विसंगति थी जो एक पति को अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाने समेत अप्राकृतिक यौन संबंध के खिलाफ अभियोजन से संरक्षण देती है. इस धारा को उच्चतम न्यायालय ने 2018 में अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. उच्च न्यायालय ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिनमें वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध किया गया है.

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ बृहस्पतिवार को भी इस मामले पर सुनवाई जारी रखेगी. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए सजा) को अपराधमुक्त किए जाने से पहले, मैं विषमलैंगिक जोड़ों के बारे में बात कर रहा हूं, क्या धारा 375 और धारा 377 में विसंगति (discrepancy in section 377 and 375 of IPC ) नहीं थी. विडंबना यह है कि सुखी वैवाहिक जीवन में यह जारी रहा और किसी ने शिकायत नहीं की.

न्यायाधीश ने कहा, इस तथ्य के बावजूद कि आप्रकृतिक यौन संबंध भी यौन क्रिया का हिस्सा है और, इसलिए, अगर इसमें सहमति है तो यह बलात्कार नहीं है, लेकिन, उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले धारा 377 की विसगंति प्रभावी रही. आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत, अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा यौन संबंध या यौन क्रिया, पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं होने की सूरत में बलात्कार नहीं है. अदालत की टिप्पणी पर न्यायमित्र और वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा कि इस पर आईपीसी की धारा 377 लागू नहीं होती.

जॉन ने कहा, अगर हम एक अपवाद को देखते हैं तो हम एक विसंगति को हावी नहीं होने दे सकते. इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान अन्य न्यायमित्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने अदालत से कहा था कि विवाह संस्था की रक्षा और दुरुपयोग की आशंका वैवाहिक बलात्कार को भारतीय दंड संहिता के तहत अपवाद मानने का आधार नहीं हो सकते. न्याय मित्र के रूप में अदालत का सहयोग कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि पहले भी आपराधिक मामलों के दुरुपयोग की आशंका रही है और विवाह संस्था की रक्षा के लिए कानून भी रहे हैं, लेकिन पत्नियों को कम गंभीर प्रकृति के यौन अपराधों समेत किसी अपराध के लिए पतियों के खिलाफ अभियोजन चलाने की शक्ति नहीं दी गई.

अदालत ने 17 जनवरी को केंद्र से वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मुद्दे पर अपनी सैद्धांतिक स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा था. उच्च न्यायालय की पीठ गैर सरकारी संगठन आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन्स एसोसिएशन, एक पुरुष और एक महिला द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इसमें भारतीय बलात्कार कानून के तहत पतियों को दिए गए अपवाद को खत्म करने की मांग की गई है. न्याय मित्र ने इसके पहले कहा था कि एक विवाहित महिला को अपने पति पर मुकदमा चलाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, अगर उसे लगता है कि उसके साथ बलात्कार किया गया था.

केंद्र सरकार ने इस मामले में दायर अपने पहले हलफनामे में कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को एक आपराधिक उल्लंघन नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का सरल औजार बन सकती है. दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया है कि वैवाहिक बलात्कार को पहले से ही भारतीय दंड संहिता के तहत 'क्रूरता के अपराध' के रूप में शामिल किया गया है.

पढ़ें: कर्नाटक हाईकोर्ट ने 21 साल से अलग रह रहे जोड़े को दी तलाक की मंजूरी, कहा- शादी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है

याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है.

पीटीआई-भाषा

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (delhi high court) ने बुधवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की पूर्ववर्ती धारा 377 और बलात्कार कानून में विसंगति थी जो एक पति को अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाने समेत अप्राकृतिक यौन संबंध के खिलाफ अभियोजन से संरक्षण देती है. इस धारा को उच्चतम न्यायालय ने 2018 में अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. उच्च न्यायालय ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिनमें वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध किया गया है.

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ बृहस्पतिवार को भी इस मामले पर सुनवाई जारी रखेगी. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए सजा) को अपराधमुक्त किए जाने से पहले, मैं विषमलैंगिक जोड़ों के बारे में बात कर रहा हूं, क्या धारा 375 और धारा 377 में विसंगति (discrepancy in section 377 and 375 of IPC ) नहीं थी. विडंबना यह है कि सुखी वैवाहिक जीवन में यह जारी रहा और किसी ने शिकायत नहीं की.

न्यायाधीश ने कहा, इस तथ्य के बावजूद कि आप्रकृतिक यौन संबंध भी यौन क्रिया का हिस्सा है और, इसलिए, अगर इसमें सहमति है तो यह बलात्कार नहीं है, लेकिन, उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले धारा 377 की विसगंति प्रभावी रही. आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत, अपनी पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा यौन संबंध या यौन क्रिया, पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं होने की सूरत में बलात्कार नहीं है. अदालत की टिप्पणी पर न्यायमित्र और वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा कि इस पर आईपीसी की धारा 377 लागू नहीं होती.

जॉन ने कहा, अगर हम एक अपवाद को देखते हैं तो हम एक विसंगति को हावी नहीं होने दे सकते. इससे पहले मंगलवार को सुनवाई के दौरान अन्य न्यायमित्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने अदालत से कहा था कि विवाह संस्था की रक्षा और दुरुपयोग की आशंका वैवाहिक बलात्कार को भारतीय दंड संहिता के तहत अपवाद मानने का आधार नहीं हो सकते. न्याय मित्र के रूप में अदालत का सहयोग कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव ने कहा कि पहले भी आपराधिक मामलों के दुरुपयोग की आशंका रही है और विवाह संस्था की रक्षा के लिए कानून भी रहे हैं, लेकिन पत्नियों को कम गंभीर प्रकृति के यौन अपराधों समेत किसी अपराध के लिए पतियों के खिलाफ अभियोजन चलाने की शक्ति नहीं दी गई.

अदालत ने 17 जनवरी को केंद्र से वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मुद्दे पर अपनी सैद्धांतिक स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा था. उच्च न्यायालय की पीठ गैर सरकारी संगठन आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेन्स एसोसिएशन, एक पुरुष और एक महिला द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. इसमें भारतीय बलात्कार कानून के तहत पतियों को दिए गए अपवाद को खत्म करने की मांग की गई है. न्याय मित्र ने इसके पहले कहा था कि एक विवाहित महिला को अपने पति पर मुकदमा चलाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, अगर उसे लगता है कि उसके साथ बलात्कार किया गया था.

केंद्र सरकार ने इस मामले में दायर अपने पहले हलफनामे में कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को एक आपराधिक उल्लंघन नहीं बनाया जा सकता क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का सरल औजार बन सकती है. दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया है कि वैवाहिक बलात्कार को पहले से ही भारतीय दंड संहिता के तहत 'क्रूरता के अपराध' के रूप में शामिल किया गया है.

पढ़ें: कर्नाटक हाईकोर्ट ने 21 साल से अलग रह रहे जोड़े को दी तलाक की मंजूरी, कहा- शादी पूरी तरह से खत्म हो चुकी है

याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है.

पीटीआई-भाषा

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