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जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में भक्तों ने शंकराचार्य जयंती मनाई - आदि शंकराचार्य की जयंंती

श्रीनगर में संत आदि शंकराचार्य की यात्रा की स्मृति में पांच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसकी वजह से पूरा कश्मीर घाटी वैदिक मंत्रों के मंत्रोचारण से गूंजायमान है.

आदि शंकराचार्य की यात्रा की स्मृति
आदि शंकराचार्य की यात्रा की स्मृति
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Published : May 7, 2022, 8:58 AM IST

श्रीनगर : श्रीनगर में संत आदि शंकराचार्य की यात्रा की स्मृति में पांच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. इसकी वजह से पूरा कश्मीर घाटी वैदिक मंत्रों के मंत्रोचारण से गूंजायमान है. इस कार्यक्रम को 'वन इंडिया स्ट्रांग इंडिया' द्वारा नागरिक प्रशासन और कश्मीरी हिंदुओं के विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों के समर्थन से आयोजित किया जाता है. कश्मीर वैली में सुरक्षा की अनिश्चितता के बावजूद इस वर्ष डल झील के नजदीक प्राचीन शंकराचार्य मंदिर में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया.

दक्षिण भारत के करीब 200 से ज्यादा संत श्रीनगर में डेरा डाले हुए हैं. विधु शर्मा ने कहा, "कार्यक्रम एक बड़े मंच पर आयोजित किया जाता है. यह महान संत के लिए एक उचित श्रद्धांजलि होगी. उनकी यात्रा ने हिंदू धर्म के दार्शनिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान में बहुत योगदान दिया. यह कश्मीर में था जहां उन्होंने विद्वानों के साथ बहस की थी. कश्मीर हजारों वर्षों से वैदिक परंपराओं और संस्कृति का केंद्र रहा है. केरल के रहने वाले आदि शंकराचार्य ने कश्मीर समेत पूरे भारत की यात्रा की थी. शंकराचार्य ने वेदांत दर्शन को लोकप्रिय बनाया जब भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म था.

बता दें कि श्रीनगर में स्थित शंकराचार्य मंदिर वो कड़ी है, जो सदियों से भारत के सनातन इतिहास की आस्था का केंद्र रहा है. जिस पहचान को मुस्लिम आक्रांता और आधुनिक मुस्लिम आतंकी चाह कर भी मिटा नहीं पाये. हर साल आदि गुरू शंकराचार्य के जन्मदिवस पर ये आस्था केंद्र भारतीय सनातन चेतना का केंद्र बन जाता है. हर वर्ष पूरे देश से श्रद्धालु शंकराचार्य जयंती मनाने श्रीनगर, जम्मू कश्मीर आते हैं. राष्ट्रीय एकता, शांति और एक शक्तिशाली भारत के लिए प्रार्थना करते हैं. इस बार भी देशभर से आये हज़ारों लोग शंकराचार्य पहाड़ी पर एकत्रित हो रहे हैं.

कौन थे आदि शंकराचार्य : आदि शंकराचार्य, जिन्हें जगतगुरु शंकराचार्य (Jagatguru Shankracharya Jayanti) के नाम से भी जाना जाता है. जगतगुरु शंकराचार्य भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक गुरुओं और दार्शनिकों में से एक हैं. हर साल आदि शंकराचार्य जयंती उनके भक्तों द्वारा वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि या पूर्णिमा चंद्र पखवाड़े के पांचवें दिन मनाई जाती है. आदि शंकराचार्य जिन्हें भगवान शिव के अवतार के रूप में भी जाना जाता है. आज के दिन भगवान शिव की पूजा विधि विधान से करने के साथ ही सत्संग का आयोजन करते हैं.

आदि शंकराचार्य जयंती का इतिहास: जगतगुरु का जन्म 788 सीई के दौरान केरल के कलाडी में हुआ था. शंकराचार्य ने 16 से 32 वर्ष की आयु से देश भर में यात्रा की और इस दौरान उन्होंने वेदों के संदेश का प्रचार-प्रसार किया. कम उम्र में ही जगतगुरु शंकराचार्य दिव्य ज्योति में विलीन हो गए थे, परंतु उनकी शिक्षाएं आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं. सनातन धर्म के संत ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत का मजबूती से प्रचार प्रसार किया गया. उनके संदेशों ने हिंदू संस्कृति को उस समय पुनर्जीवित किया जब हिंदू संस्कृति गिरावट का सामना कर रही थी. ऐसा कहा जाता है कि माधव और रामानुज जैसे अन्य हिंदू साधुओं के साथ आदि शंकराचार्य के कार्यों ने हिंदू धर्म के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.इन सिद्धांतों का गठन तीन शिक्षकों द्वारा किया गया. जिनका पालन उनसे संबंधित संप्रदायों द्वारा आज भी किया जा रहा है. इन शिक्षकों को आज भी हिंदू दर्शन के आधुनिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों के रूप में याद किया जाता है.

आदि शंकराचार्य के अनमोल वचन : 1 बंधन से मुक्त होने के लिए बुद्धिमान व्यक्ति को अपने और अहंकार के बीच भेदभाव का अभ्यास करना चाहिए. केवल उसी से एक व्यक्ति स्वयं को शुद्ध सत्ता, चेतना और आनंद के रूप में पहचानते हुए आनंद से भरा हो जाएगा. 2 धन, लोगों, रिश्तों और दोस्तों या अपनी जवानी पर गर्व न करें. ये सब चीजें पल भर में छीन ली जाती हैं. इस मायावी संसार को त्याग कर परमात्मा को जानो और प्राप्त करो. 3 प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव की ओर बढ़ने लगती है. मैं हमेशा सुख की कामना करता हूं जो कि मेरा वास्तविक स्वरूप है. मेरा स्वभाव मेरे लिए कभी बोझ नहीं है. खुशी मेरे लिए कभी बोझ नहीं है, जबकि दुख है.

यह भी पढ़ें-चारधाम यात्रा: खुल गए केदारनाथ धाम के कपाट, PM मोदी के नाम की हुई पहली पूजा

एएनआई

श्रीनगर : श्रीनगर में संत आदि शंकराचार्य की यात्रा की स्मृति में पांच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. इसकी वजह से पूरा कश्मीर घाटी वैदिक मंत्रों के मंत्रोचारण से गूंजायमान है. इस कार्यक्रम को 'वन इंडिया स्ट्रांग इंडिया' द्वारा नागरिक प्रशासन और कश्मीरी हिंदुओं के विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों के समर्थन से आयोजित किया जाता है. कश्मीर वैली में सुरक्षा की अनिश्चितता के बावजूद इस वर्ष डल झील के नजदीक प्राचीन शंकराचार्य मंदिर में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया.

दक्षिण भारत के करीब 200 से ज्यादा संत श्रीनगर में डेरा डाले हुए हैं. विधु शर्मा ने कहा, "कार्यक्रम एक बड़े मंच पर आयोजित किया जाता है. यह महान संत के लिए एक उचित श्रद्धांजलि होगी. उनकी यात्रा ने हिंदू धर्म के दार्शनिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान में बहुत योगदान दिया. यह कश्मीर में था जहां उन्होंने विद्वानों के साथ बहस की थी. कश्मीर हजारों वर्षों से वैदिक परंपराओं और संस्कृति का केंद्र रहा है. केरल के रहने वाले आदि शंकराचार्य ने कश्मीर समेत पूरे भारत की यात्रा की थी. शंकराचार्य ने वेदांत दर्शन को लोकप्रिय बनाया जब भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म था.

बता दें कि श्रीनगर में स्थित शंकराचार्य मंदिर वो कड़ी है, जो सदियों से भारत के सनातन इतिहास की आस्था का केंद्र रहा है. जिस पहचान को मुस्लिम आक्रांता और आधुनिक मुस्लिम आतंकी चाह कर भी मिटा नहीं पाये. हर साल आदि गुरू शंकराचार्य के जन्मदिवस पर ये आस्था केंद्र भारतीय सनातन चेतना का केंद्र बन जाता है. हर वर्ष पूरे देश से श्रद्धालु शंकराचार्य जयंती मनाने श्रीनगर, जम्मू कश्मीर आते हैं. राष्ट्रीय एकता, शांति और एक शक्तिशाली भारत के लिए प्रार्थना करते हैं. इस बार भी देशभर से आये हज़ारों लोग शंकराचार्य पहाड़ी पर एकत्रित हो रहे हैं.

कौन थे आदि शंकराचार्य : आदि शंकराचार्य, जिन्हें जगतगुरु शंकराचार्य (Jagatguru Shankracharya Jayanti) के नाम से भी जाना जाता है. जगतगुरु शंकराचार्य भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक गुरुओं और दार्शनिकों में से एक हैं. हर साल आदि शंकराचार्य जयंती उनके भक्तों द्वारा वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि या पूर्णिमा चंद्र पखवाड़े के पांचवें दिन मनाई जाती है. आदि शंकराचार्य जिन्हें भगवान शिव के अवतार के रूप में भी जाना जाता है. आज के दिन भगवान शिव की पूजा विधि विधान से करने के साथ ही सत्संग का आयोजन करते हैं.

आदि शंकराचार्य जयंती का इतिहास: जगतगुरु का जन्म 788 सीई के दौरान केरल के कलाडी में हुआ था. शंकराचार्य ने 16 से 32 वर्ष की आयु से देश भर में यात्रा की और इस दौरान उन्होंने वेदों के संदेश का प्रचार-प्रसार किया. कम उम्र में ही जगतगुरु शंकराचार्य दिव्य ज्योति में विलीन हो गए थे, परंतु उनकी शिक्षाएं आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं. सनातन धर्म के संत ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत का मजबूती से प्रचार प्रसार किया गया. उनके संदेशों ने हिंदू संस्कृति को उस समय पुनर्जीवित किया जब हिंदू संस्कृति गिरावट का सामना कर रही थी. ऐसा कहा जाता है कि माधव और रामानुज जैसे अन्य हिंदू साधुओं के साथ आदि शंकराचार्य के कार्यों ने हिंदू धर्म के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.इन सिद्धांतों का गठन तीन शिक्षकों द्वारा किया गया. जिनका पालन उनसे संबंधित संप्रदायों द्वारा आज भी किया जा रहा है. इन शिक्षकों को आज भी हिंदू दर्शन के आधुनिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों के रूप में याद किया जाता है.

आदि शंकराचार्य के अनमोल वचन : 1 बंधन से मुक्त होने के लिए बुद्धिमान व्यक्ति को अपने और अहंकार के बीच भेदभाव का अभ्यास करना चाहिए. केवल उसी से एक व्यक्ति स्वयं को शुद्ध सत्ता, चेतना और आनंद के रूप में पहचानते हुए आनंद से भरा हो जाएगा. 2 धन, लोगों, रिश्तों और दोस्तों या अपनी जवानी पर गर्व न करें. ये सब चीजें पल भर में छीन ली जाती हैं. इस मायावी संसार को त्याग कर परमात्मा को जानो और प्राप्त करो. 3 प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव की ओर बढ़ने लगती है. मैं हमेशा सुख की कामना करता हूं जो कि मेरा वास्तविक स्वरूप है. मेरा स्वभाव मेरे लिए कभी बोझ नहीं है. खुशी मेरे लिए कभी बोझ नहीं है, जबकि दुख है.

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