नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने प्रिया रमानी को नोटिस जारी किया और आगे की सुनवाई के लिए 13 जनवरी को इसे सूचीबद्ध किया है. अकबर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर और गीता लूथरा ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने रमानी को गलती से बरी कर दिया. जबकि यह निष्कर्ष निकालता है कि उनके आरोप मानहानिकारक प्रकृति के थे.
नायर ने तर्क प्रस्तुत किया कि वह (ट्रायल कोर्ट जज) कहते हैं कि मानहानि का मामला बनता है. मामला आईपीसी की धारा 499 के तहत है. उसे यह मानहानिकारक लगता है. इस निष्कर्ष के बाद निर्णय समाप्त हो जाना चाहिए था. अदालत ने जवाब दिया कि किसी भी मामले में मानहानिकारक कार्यवाही का पहला कदम है, जिसके बाद ट्रायल कोर्ट को आरोपी के बचाव पर विचार करना होता है.
न्यायाधीश ने कहा कि निचली अदालत का कहना है कि वे मानहानिकारक हैं और जिस संदर्भ में उसने आरोप लगाए थे, उसका एक वैध बचाव था. वरिष्ठ वकील लूथरा ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने सुनवाई के दौरान उठाई गई किसी भी आपत्ति पर विचार किए बिना फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि आपत्तियों पर फैसला नहीं किया जाता है या उन पर गौर नहीं किया जाता है.
अकबर ने इस मामले में रमानी को बरी करने के निचली अदालत के 17 फरवरी के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी पसंद के किसी भी मंच पर शिकायत रखने का अधिकार है.
निचली अदालत ने अकबर द्वारा दायर शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि रमानी के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ है. इसने कहा था कि यह सुविचारित विचार था कि रमानी के खिलाफ आईपीसी की धारा 500 (मानहानि के अपराध के लिए सजा) के तहत दंडनीय अपराध करने के संबंध में अकबर का मामला साबित नहीं होता है.
अदालत ने कहा था कि यह शर्मनाक है कि जिस देश में महिलाओं के सम्मान के बारे में महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य लिखे गए हैं, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं.
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2018 में #MeToo आंदोलन के तहत रमानी ने अकबर के खिलाफ यौन दुराचार के आरोप लगाए थे जब वह एक पत्रकार थे और वह लगभग 20 साल पहले उनके अधीन काम कर रही थीं. अकबर ने रमानी के खिलाफ दशकों पहले यौन दुराचार का आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने के आरोप में 15 अक्टूबर 2018 को शिकायत दर्ज कराई थी. उन्होंने 17 अक्टूबर 2018 को केंद्रीय मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया था.