नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में भूमि की कमी के मद्देनजर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से अनुरोध किया है कि केंद्रीय परियोजनाओं के लिए वन भूमि का अधिग्रहण करने की स्थिति में उसे पड़ोसी राज्यों में क्षतिपूरक वनीकरण की अनुमति प्रदान की जाए.
मंत्रालय की वन सुझाव समिति (एफएसी) ने जून के अंत में इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद दिल्ली के अधिकारियों से अतिरिक्त सूचना देने का अनुरोध करते हुए यह पता लगाने के लिए कहा था कि क्षतिपूरक वनीकरण मानदंडों में ढील देने का प्रस्ताव शहर के हरित क्षेत्र को कैसे प्रभावित कर सकता है?
डीडीए के एक अधिकारी ने कहा, दिल्ली में क्षतिपूरक वनीकरण के लिए भूमि की उपलब्धता बेहद सीमित है. यह योजना बनायी गई थी कि दिल्ली का 15 फीसदी क्षेत्र हरित आच्छादन के लिए अलग रखा जाएगा. यह क्षेत्र या तो वृक्षारोपण के कारण या उस पर आगामी सार्वजनिक सुविधाओं के चलते पहले से ही भरा हुआ है. इसलिए, हमारे पास क्षतिपूरक वनीकरण के के लिए गैर-वन भूमि खाली नहीं है.
उन्होंने कहा, इसलिए, हमने मंत्रालय से केंद्र सरकार की परियोजनाओं के लिए पड़ोसी राज्यों में क्षतिपूरक वनीकरण की अनुमति प्रदान किये जाने का अनुरोध किया है क्योंकि हमे दिल्ली में गैर-वन भूमि की पहचान करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
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वन संरक्षण अधिनियम के तहत जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, क्षतिपूरक वनीकरण उपयुक्त गैर-वन भूमि पर किया जाएगा, जो भू परिवर्तन के लिए प्रस्तावित क्षेत्र के बराबर होगा. साथ ही इसका खर्च भूमि का उपयोग करने वाली एजेंसी को उठाना होगा.
अपनी हालिया बैठक में एफएसी ने पाया कि क्षतिपूरक वनीकरण मानदंडों में किसी भी तरह की छूट से आखिरकार दिल्ली के वन क्षेत्र में कमी आएगी जो वर्तमान और भविष्य में दिल्ली के निवासियों के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी.
(पीटीआई-भाषा)