मुंबई : काेराेना के पहली और दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र है. काेराेना की वजह से कार्यालय और परिवहन बंद हाेने के कारण मुंबई के प्रसिद्ध डब्बावालों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है.
कहने का मतलब है कि लाेगाें काे कार्यालय में घर का खाना मुहैया कराने वाले डब्बावाला ही इस वक्त राेटी की संकट से गुजर रहे हैं.
मुंबई के डब्बावाला काे काैन नहीं जानता. बेहतर प्रबंधन के साथ कार्य के लिए विश्व स्तर पर डब्बावाला काे पहचान मिली है, लेकिन काेराेना ने उन्हें जीवन के उस मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां वे मदद के लिए सरकार से आस लगाए बैठे हैं.
वैसे ताे हम सब जानते हैं कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर में सभी क्षेत्र के लाेगाें काे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और ऐसे में डब्बावाला भी अपवाद नहीं हैं. वे घर से दफ्तर तक टिफिन पहुंचाते थे.
मुंबई डब्बावाले एसोसिएशन ने सरकार से वित्तीय सहायता मांगी है. एसाेसिएशन के मुताबिक डब्बावालों को हर महीने 5,000 रुपये की मदद देनी चाहिए, मुंबई में करीब साढ़े चार से पांच हजार डब्बावाले हैं. हालांकि, अब काेराेना के इस संकट में मुंबई में केवल 50 फीसदी डब्बावाले ही बचे हैं. परिवहन और कार्यालयों के बंद होने के कारण डब्बावालों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है.
उनमें से कुछ ने खेती के लिए गांव का रुख किया है जबकि अन्य ने मुंबई में रिक्शा चलाना शुरू कर दिया है. आर्थिक संकट की वजह से उन्हें जाे काम हाथ लग रहा है वे वह कर रहे हैं, ताकि अपना पेट पाल सकें.
सुभाष तालेकर, जिन्हें कभी 'प्रबंधन गुरु' के रूप में जाना जाता था, आज वे कर्ज में डूबे हुए हैं.'
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उन्हाेंने सरकार से मांग की है कि डब्बावालों काे सरकार हर महीने 5 हजार रुपये तक की मदद दे जिससे वे अपनी आजीविका चला सकें.