नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु सरकार को पत्र लिखकर सीयूईटी से जुड़ी आशंकाओं का समाधान करने की कोशिश की है. बता दें कि तमिलनाडु विधान सभा ने अप्रैल 11 को मुख्यमंत्री एस के स्टालिन द्वारा पेश प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था. जिसमें केंद्र से अपील की गई थी कि वो सीयूईटी को लागू करने का विचार छोड़ दें. इसी के जवाब में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी को पत्र लिखा है. उसमें कहा कि संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है.
गौर है कि तमिलनाडु विधानसभा ने 12 अप्रैल को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा पेश एक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, जिसमें केंद्र से सीयूईटी का विचार त्यागने का आग्रह किया गया था. इसी के जवाब में धर्मेंद्र प्रधान ने यह पत्र लिखा है. धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, “चूंकि, शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार को भी देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के उपाय करने का अधिकार है. इसका (सीयूईटी) का मकसद कोचिंग की आवश्यकता को समाप्त करना है. यह परीक्षा माध्यम के लिए 13 भाषाओं के चयन का विकल्प देती है और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इसकी पहुंच होने के कारण वित्तीय बोझ को कम करती है. साथ ही तर्क दिया कि कोचिंग संस्कृति को प्रोत्साहित करने वाले योगात्मक मूल्यांकन के विपरीत, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 प्रारंभिक मूल्यांकन पर जोर देती है.
उन्होंने कहा कि "सीयूईटी परीक्षा वंचित समूहों के हित में है. छात्र एक आवेदन पत्र के साथ अपनी पसंद के अनुसार एक से अधिक विश्वविद्यालयों में आवेदन कर सकते हैं, जिससे वित्तीय बोझ कम होगा और पहुंच में वृद्धि होगी. उनके पास देश भर के सैकड़ों परीक्षा केंद्रों में से अपनी पसंद के परीक्षा केंद्रों का चयन करने के विकल्प के साथ 13 भाषाओं में किसी भी भाषा के विकल्प के साथ प्रवेश परीक्षा में बैठने के योग्य होंगे. इसमें राज्यों / केंद्र-शासित प्रदेशों के अधिकारों के उल्लंघन का कोई मामला नहीं है.
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पीटीआई