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Women Reservation Bill: सीपीआई नेता डी राजा बोले, महिला आरक्षण बिल का श्रेय कोई एक पार्टी नहीं ले सकती - महिला आरक्षण विधेयक

नई संसद में महिला आरक्षण विधेयक के पास होने के बाद अब अलग-अलग पार्टियां उसका श्रेय लेने में लगी हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा ने भी मंगलवार को इस मुद्दे पर ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय से खास बातचीत की.

CPI National General Secretary D Raja
सीपीआई राष्ट्रीय महासचिव डी राजा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 19, 2023, 4:35 PM IST

सीपीआई राष्ट्रीय महासचिव डी राजा से बातचीत

नई दिल्ली: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा ने मंगलवार को कहा कि कोई भी एक राजनीतिक दल महिला आरक्षण विधेयक का श्रेय नहीं ले सकता. उन्होंने कहा कि लगभग सभी राजनीतिक दल और विभिन्न संगठन इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. राजा ने नई दिल्ली में ईटीवी भारत से एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि न तो भाजपा, न ही कांग्रेस और न ही कोई निजी विधेयक इस अति आवश्यक महिला आरक्षण विधेयक का श्रेय ले सकता है.

उन्होंने कहा कि हम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी लंबे समय से इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. दरअसल, लगभग सभी राजनीतिक दल और विभिन्न संगठन महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने का समर्थन कर रहे हैं. मंगलवार को संसद में प्रवेश करते हुए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दावा किया है कि यह हमारा (कांग्रेस) बिल है.

विधेयक के कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए सीपीआई सांसद गीता मुखर्जी को याद करते हुए राजा ने कहा कि मुखर्जी ने विधेयक के कार्यान्वयन के लिए कई सिफारिशें कीं. 1996 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने विधेयक की जांच के लिए सीपीआई सांसद मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति की स्थापना की. मुखर्जी ने विधेयक में कई सिफारिशें कीं, जिनमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया.

समिति ने 15 साल की अवधि के लिए आरक्षण का सुझाव दिया, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए उप आरक्षण शामिल है, जिसमें उन मामलों में आरक्षण भी शामिल है, जहां राज्य में लोकसभा में कम सीटें हैं (या एससी और एसटी के लिए तीन से कम सीटें हैं), जिसमें दिल्ली विधानसभा के लिए आरक्षण और 'एक तिहाई से कम नहीं' को 'जितना संभव हो सके, एक तिहाई' में बदलना शामिल है.

हालांकि, दो सिफ़ारिशों को 2008 के विधेयक में शामिल नहीं किया गया है, जिसमें राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करना और संविधान द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण शामिल है. हालांकि, समिति अपनी अंतिम रिपोर्ट में आम सहमति तक पहुंचने में विफल रही. राजा ने 2024 के आम चुनाव से ठीक पहले विधेयक लाने को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया.

राजा ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि कोई भी पार्टी, चाहे वह सत्ता में हो, संसद में विधेयक पेश करके श्रेय ले सकती है. लेकिन, भाजपा सरकार ऐसा पहले ही कर सकती थी, क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत है. राजा ने कहा कि जब उनसे नई परमानेंट और 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने की मोदी सरकार की मंशा के बारे में पूछा गया.

राजा ने कहा कि ऐसा दावा कोई भी कर सकता है. यहां तक कि मैं या आप भी दावा कर सकते हैं कि हम 2047 तक भारत को एक विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार को साम्राज्यवादी देशों के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए.

राजा से जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के अमेरिका की ओर कदम बढ़ाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि भारत को अपनी और स्वतंत्र विदेश नीति अपनानी चाहिए और वह नीति किसी साम्राज्यवादी देश (अमेरिका) द्वारा निर्देशित नहीं होनी चाहिए.

सीपीआई राष्ट्रीय महासचिव डी राजा से बातचीत

नई दिल्ली: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा ने मंगलवार को कहा कि कोई भी एक राजनीतिक दल महिला आरक्षण विधेयक का श्रेय नहीं ले सकता. उन्होंने कहा कि लगभग सभी राजनीतिक दल और विभिन्न संगठन इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. राजा ने नई दिल्ली में ईटीवी भारत से एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि न तो भाजपा, न ही कांग्रेस और न ही कोई निजी विधेयक इस अति आवश्यक महिला आरक्षण विधेयक का श्रेय ले सकता है.

उन्होंने कहा कि हम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी लंबे समय से इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं. दरअसल, लगभग सभी राजनीतिक दल और विभिन्न संगठन महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने का समर्थन कर रहे हैं. मंगलवार को संसद में प्रवेश करते हुए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दावा किया है कि यह हमारा (कांग्रेस) बिल है.

विधेयक के कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए सीपीआई सांसद गीता मुखर्जी को याद करते हुए राजा ने कहा कि मुखर्जी ने विधेयक के कार्यान्वयन के लिए कई सिफारिशें कीं. 1996 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने विधेयक की जांच के लिए सीपीआई सांसद मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति की स्थापना की. मुखर्जी ने विधेयक में कई सिफारिशें कीं, जिनमें से पांच को 2008 के विधेयक में शामिल किया गया.

समिति ने 15 साल की अवधि के लिए आरक्षण का सुझाव दिया, जिसमें एंग्लो इंडियंस के लिए उप आरक्षण शामिल है, जिसमें उन मामलों में आरक्षण भी शामिल है, जहां राज्य में लोकसभा में कम सीटें हैं (या एससी और एसटी के लिए तीन से कम सीटें हैं), जिसमें दिल्ली विधानसभा के लिए आरक्षण और 'एक तिहाई से कम नहीं' को 'जितना संभव हो सके, एक तिहाई' में बदलना शामिल है.

हालांकि, दो सिफ़ारिशों को 2008 के विधेयक में शामिल नहीं किया गया है, जिसमें राज्यसभा और विधान परिषदों में सीटें आरक्षित करना और संविधान द्वारा ओबीसी के लिए आरक्षण का विस्तार करने के बाद ओबीसी महिलाओं के लिए उप-आरक्षण शामिल है. हालांकि, समिति अपनी अंतिम रिपोर्ट में आम सहमति तक पहुंचने में विफल रही. राजा ने 2024 के आम चुनाव से ठीक पहले विधेयक लाने को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाया.

राजा ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि कोई भी पार्टी, चाहे वह सत्ता में हो, संसद में विधेयक पेश करके श्रेय ले सकती है. लेकिन, भाजपा सरकार ऐसा पहले ही कर सकती थी, क्योंकि उनके पास पूर्ण बहुमत है. राजा ने कहा कि जब उनसे नई परमानेंट और 2047 तक भारत को एक विकसित देश बनाने की मोदी सरकार की मंशा के बारे में पूछा गया.

राजा ने कहा कि ऐसा दावा कोई भी कर सकता है. यहां तक कि मैं या आप भी दावा कर सकते हैं कि हम 2047 तक भारत को एक विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार को साम्राज्यवादी देशों के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए.

राजा से जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के अमेरिका की ओर कदम बढ़ाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि भारत को अपनी और स्वतंत्र विदेश नीति अपनानी चाहिए और वह नीति किसी साम्राज्यवादी देश (अमेरिका) द्वारा निर्देशित नहीं होनी चाहिए.

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