हैदराबाद : सच कहा जाए तो यह गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार है जिसकी वजह से कोरोना की दूसरी लहर बेहद घातक बन गई है. हालांकि प्रधानमंत्री ने दावा किया कि पिछले साल इसी समय के दौरान देखी गई स्थितियों की तुलना में वर्तमान स्थिति में सुधार हुआ है.
कोरोना पॉजिटिव मामलों में तीन गुना की वृद्धि और की उच्च मृत्यु दर मौजूदा संकट की भयावहता को दर्शाने के लिए काफी है. केंद्र ने यह भी दावा किया कि कोविड परीक्षण केंद्रों की संख्या बढ़ाकर 2500 कर दी गई लेकिन तथ्य यह है कि मरीजों की भारी भीड़ के कारण राष्ट्रीय राजधानी में दो दिनों के लिए परीक्षण रोक दिया गया. अस्पतालों में बिस्तरों की कमी ने दावों के खोखलेपन को उजागर कर दिया है. जबकि दावा था कि कई कोविड विशेष अस्पताल स्थापित किए गए हैं.
ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत वास्तव में दिल दहला देने वाली है. भारत ने दूसरे लहर तक 70 से अधिक देशों को कोविड वैक्सीन की 6.6 करोड़ खुराक का निर्यात किया. आज देश के पास अपने नागरिकों के लिए कोई वैक्सीन स्टॉक नहीं है. सरकारों की निष्क्रियता युवा डॉक्टरों की आवाज से स्पष्ट है जो इस बात पर विलाप कर रहे हैं कि जरुरी चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव के कारण मरीज मर रहे हैं.
हालांकि केंद्र ने 162 ऑक्सीजन उत्पादन केंद्रों की स्थापना को मंजूरी दी है लेकिन उनमें से केवल पांचवां हिस्सा ही वास्तव में स्थापित किया गया है. यदि कोविड को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त टास्क फोर्स ने अपना कर्तव्य ठीक से निभाया होता तो देश आज 3 लाख पॉजिटिव मामलों और दस प्रतिशत मौतों के साथ इतना दुखी नहीं होता. सरकार की वर्तमान वैक्सीन नीति भी किसी तरह का आश्वासन नहीं दे रही है.
भारत पूरी दुनिया में उत्पादित 60 प्रतिशत टीकों का उत्पादन करता है. यह नोट करना चौंकाने वाला है कि ऐसा देश अपने आप में वैक्सीन की कमी को देख रहा है. पूरी दुनिया का मानना है कि टीका काफी हद तक कोविड के खतरे को कम कर सकता है. दुनिया का मानना है कि वैक्सीन मृत्यु दर को रोक सकती है और इसे आगे फैलने से भी रोक सकती है.
यहां तक कि जब कोविड का टीका प्रायोगिक स्तर पर था, तब यूएसए ने अपनी 30 करोड़ आबादी के लिए 60 करोड़ खुराक का आदेश दे दिया और उसके लिए अग्रिम भुगतान कर दिया था. जबकि भारत ने अपनी 130 करोड़ आबादी के लिए केवल 1.10 करोड़ खुराक के आदेश जारी किए.
हालांकि चरणबद्ध टीकाकरण कार्यक्रम 16 जनवरी को शुरू हुआ लेकिन पहले चरण में 3 करोड़ फ्रंटलाइन योद्धाओं में से केवल 37 प्रतिशत को ही वैक्सीन मिली. सरकार ने तब 45 और 60 वर्ष की आयु के सभी लोगों के लिए टीकाकरण की अनुमति दी थी. हालांकि आज स्थिति यह है कि कई राज्यों ने टीका लगाने के लिए सरकार से मांग करनी बंद कर दी है.
उत्पादन क्षमता बढ़ाने की अनुमति देने के लिए वैक्सीन निर्माताओं द्वारा प्रस्तुत आवेदन पर निर्णय लेने में देरी, तीन सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों को प्रक्रिया में भाग लेने में समय की कमी, वायरस को खतरनाक म्यूटेशन अपनाने के लिए समय दिया.
एक नवीनतम पहल में सरकार ने वैक्सीन निर्माताओं को वित्तीय सहायता प्रदान की है. दूसरी तरफ इसने सार्वभौमिक वयस्क टीकाकरण की घोषणा की है जो उन सभी को टीका मिलेगा जो 18 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं. जबकि इसने 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के टीकाकरण की जिम्मेदारी को बरकरार रखा.
शेष आयु समूहों की जिम्मेदारी राज्यों और निजी क्षेत्र पर छोड़ दी गई है. जबकि नौकरी से निकाले जाने के कारण लोग गंभीर आर्थिक तंगी झेल रहे हैं. जबकि राजस्व में भारी गिरावट के परिणामस्वरूप राज्य सरकारें भी आर्थिक तंगी का सामना कर रही हैं. केंद्र की ओर से इस तरह के महत्वपूर्ण मोड़ पर हाथ पीछे खींचना तर्कहीन है. जबकि वैक्सीन के स्टॉक सीमित हैं.
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अच्छी तरह से काम करने वाले और नहीं करने वाले दोनों ही राज्य इसके लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. यह असमान प्रतियोगिता देश की संघीय भावना की गहरी जड़ों पर चोट कर रही है. क्या कभी कोविड द्वारा मौत के ढोल पीटने को नियंत्रित करना संभव होगा. अगर केंद्र सार्वभौमिक मुक्त टीकाकरण और टीके के उत्पादन का आश्वासन नहीं देता है?