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COVID-19 Vaccine : छह महीनों में विकसित हुए कई टीके, 85 देशों में नहीं पहुंची वैक्सीन - covid vaccine six months

कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी से बचाव के लिए विकसित की गई वैक्सीन को आए लगभग 6 महीने हो चुके हैं. कोरोना वैक्सीन (Covid Vaccine) को लेकर कई अध्ययन भी किए जा रहे हैं. ऐसे में कई तथ्य निकलकर सामने आए हैं. इन सब से इतर एक पक्ष यह भी है की दुनिया के 85 से अधिक देशों में अभी तक कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक भी नहीं पहुंच सकी है. पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट...

COVID-19 टीके
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Published : Jun 13, 2021, 8:11 PM IST

हैदराबाद : कोरोना टीकों (Covid Vaccines) पर पिछले कुछ महीनों में प्रकाशित अध्ययनों में सुझाव दिया गया था कि महामारी से निजात पाने में टीकाकरण की उल्लेखनीय भूमिका हो सकती है. पिछले साल दिसंबर में ब्रिटेन (United Kingdom) की एक महिला को वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी, इसके बाद जून की शुरुआत तक दुनिया भर में 2 अरब कोरोना टीके लगाए जा चुके हैं.

कोविड-19 टीकों (Covid Vaccines) ने पिछले महीने तक अकेले इंग्लैंड में लगभग 12,000 लोगों की जान बचाई थी. चीन हर दिन रोमानिया के आबादी के बराबर अपने नागरिकों का टीकाकरण कर रहा है. अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को, के लगभग 70 फीसद निवासियों को कोरोना टीका लगाया जा चुका है. सैन फ्रांसिस्को पहला शहर है जहां हर्ड इम्यूनिटी की आशंका जताई जा रही है.

वैश्विक स्तर पर, रोजाना सामने आ रहे कोरोना संक्रमितों की संख्या और मौतें अप्रैल से नीचे की ओर बढ़ रहे हैं. वर्तमान हालात देखते हुए, हम कह सकते है कि टीके सुरक्षित हैं और अच्छी तरह से काम कर रहे हैं.

डेनमार्क के लोगों को प्राथमिक आधार पर फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन लगाया गया था. मार्च में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि यह वैक्सीन स्वास्थ्यकर्मियों के बीच 90% प्रभावी था. यह टीका लंबे समय से बीमार चल रहे लोगों ( 84 वर्ष की औसत आयु ) पर 64% प्रभावी पाया गया.

इसी बीच, भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में कोरोना के नए वेरिएंट- 'डेल्टा' के सामने आने के बाद टीकों की प्रभावशीलता पर सवाल भी उठे हैं.

पिछले महीने ब्रिटेन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन की दो खुराक डेल्टा वेरिएंट संक्रमितों पर 88% प्रभावी थीं. हालांकि, महामारी विज्ञानियों (Epidemiologists) ने चेतावनी दी है कि अभी प्रयोग किए जा रहे कोरोना टीके नए वेरिएंट पर एक साल या उससे भी कम समय में ही अप्रभावी हो सकते हैं.

इन टीकों का संभावित दुष्प्रभाव एक और चिंता का विषय रहा है. ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन के टीके लगाए जाने के बाद खून के थक्के जमने की घटनाएं सामने आई हैं. इस संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि टीकों से जोखिम कम और लाभ अधिक हैं.

पढ़ें- कोविड-19 टीके की दोनों खुराक ले चुके कर्मचारी सोमवार से आफिस आएं

कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) के बारे में एक दूसरा तथ्य यह भी है कि दुनिया के लगभग सात दर्जन देशों में (85 देश) अभी तक कोरोना वैक्सीन की कोई खुराक नहीं पहुंची है. एक विश्लेषण के मुताबिक 85 से अधिक देशों (ज्यादातर अफ्रीका में) में 2023 से पहले कोविड-19 वैक्सीन नहीं पहुंचेगी.

यूके में अप्रैल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTech) और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (Oxford-AstraZeneca) टीकों की एक खुराक प्राप्त करने से घर के अन्य सदस्यों को संक्रमित करने की संभावना कम हो गई. पिछले महीने प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि इजराइल में फाइजर की पहली खुराक लेने के बाद लोगों में वायरल लोड (viral load) उल्लेखनीय रूप से कम हुआ. इन लोगों ने फाइजर टीका कोरोना संक्रमित होने के कुछ समय बाद लगवाया था, टीकों के कारण ऐसे लोगों से अन्य लोगों के संक्रमित होने की संभावना काफी कम हो गई.

हैदराबाद : कोरोना टीकों (Covid Vaccines) पर पिछले कुछ महीनों में प्रकाशित अध्ययनों में सुझाव दिया गया था कि महामारी से निजात पाने में टीकाकरण की उल्लेखनीय भूमिका हो सकती है. पिछले साल दिसंबर में ब्रिटेन (United Kingdom) की एक महिला को वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी, इसके बाद जून की शुरुआत तक दुनिया भर में 2 अरब कोरोना टीके लगाए जा चुके हैं.

कोविड-19 टीकों (Covid Vaccines) ने पिछले महीने तक अकेले इंग्लैंड में लगभग 12,000 लोगों की जान बचाई थी. चीन हर दिन रोमानिया के आबादी के बराबर अपने नागरिकों का टीकाकरण कर रहा है. अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को, के लगभग 70 फीसद निवासियों को कोरोना टीका लगाया जा चुका है. सैन फ्रांसिस्को पहला शहर है जहां हर्ड इम्यूनिटी की आशंका जताई जा रही है.

वैश्विक स्तर पर, रोजाना सामने आ रहे कोरोना संक्रमितों की संख्या और मौतें अप्रैल से नीचे की ओर बढ़ रहे हैं. वर्तमान हालात देखते हुए, हम कह सकते है कि टीके सुरक्षित हैं और अच्छी तरह से काम कर रहे हैं.

डेनमार्क के लोगों को प्राथमिक आधार पर फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन लगाया गया था. मार्च में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि यह वैक्सीन स्वास्थ्यकर्मियों के बीच 90% प्रभावी था. यह टीका लंबे समय से बीमार चल रहे लोगों ( 84 वर्ष की औसत आयु ) पर 64% प्रभावी पाया गया.

इसी बीच, भारत, ब्रिटेन और अमेरिका में कोरोना के नए वेरिएंट- 'डेल्टा' के सामने आने के बाद टीकों की प्रभावशीलता पर सवाल भी उठे हैं.

पिछले महीने ब्रिटेन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन की दो खुराक डेल्टा वेरिएंट संक्रमितों पर 88% प्रभावी थीं. हालांकि, महामारी विज्ञानियों (Epidemiologists) ने चेतावनी दी है कि अभी प्रयोग किए जा रहे कोरोना टीके नए वेरिएंट पर एक साल या उससे भी कम समय में ही अप्रभावी हो सकते हैं.

इन टीकों का संभावित दुष्प्रभाव एक और चिंता का विषय रहा है. ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका और जॉनसन एंड जॉनसन के टीके लगाए जाने के बाद खून के थक्के जमने की घटनाएं सामने आई हैं. इस संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि टीकों से जोखिम कम और लाभ अधिक हैं.

पढ़ें- कोविड-19 टीके की दोनों खुराक ले चुके कर्मचारी सोमवार से आफिस आएं

कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) के बारे में एक दूसरा तथ्य यह भी है कि दुनिया के लगभग सात दर्जन देशों में (85 देश) अभी तक कोरोना वैक्सीन की कोई खुराक नहीं पहुंची है. एक विश्लेषण के मुताबिक 85 से अधिक देशों (ज्यादातर अफ्रीका में) में 2023 से पहले कोविड-19 वैक्सीन नहीं पहुंचेगी.

यूके में अप्रैल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTech) और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (Oxford-AstraZeneca) टीकों की एक खुराक प्राप्त करने से घर के अन्य सदस्यों को संक्रमित करने की संभावना कम हो गई. पिछले महीने प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि इजराइल में फाइजर की पहली खुराक लेने के बाद लोगों में वायरल लोड (viral load) उल्लेखनीय रूप से कम हुआ. इन लोगों ने फाइजर टीका कोरोना संक्रमित होने के कुछ समय बाद लगवाया था, टीकों के कारण ऐसे लोगों से अन्य लोगों के संक्रमित होने की संभावना काफी कम हो गई.

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