ETV Bharat / bharat

आरटीआई के खिलाफ जयराम रमेश की याचिका पर केंद्र की खिंचाई

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने आरटीआई कानून के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिस पर न्यायालय ने केंद्र से जवाब दाखिल करने के लिए कहा था. रमेश की याचिका पर जवाब नहीं देने पर कोर्ट ने केंद्र की खिंचाई की है.

supreme court
supreme court
author img

By

Published : Feb 22, 2021, 10:53 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की एक याचिका पर जवाब दाखिल नहीं करने पर सोमवार को केंद्र की खिंचाई की.

रमेश ने सूचना का अधिकार (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है जिसके तहत सरकार को सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, भत्ते और वेतन निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त होता है.

केंद्र की ओर से पेश वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया. इस पर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, मामले में नोटिस जारी हुए एक साल हो गया है. आप इस दौरान क्या कर रहे थे? आपके साथ क्या परेशानी है? यह एक महत्वपूर्ण मामला है.

न्यायालय ने हालांकि केंद्र को जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया.

न्यायालय ने पिछले साल 31 जनवरी को रमेश की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. रमेश की याचिका में कहा गया कि आरटीआई (संशोधन) कानून, 2019 और आरटीआई (कार्यकाल, कार्यालय, वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें तथा नियम) नियम, 2019 सभी नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का सामूहिक उल्लंघन करता है जबकि इसकी गारंटी संविधान में दी गई है.

पढ़ें :- मानहानि मामले में दिग्विजय सिंह के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी

अधिवक्ता सुनील फर्नांडिस के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून के प्रावधान से केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों के पांच वर्षों के पूर्व निर्धारित कार्यकाल में बदलाव होता है तथा नए प्रावधान के अनुसार कार्यकाल का निर्धारण केंद्र सरकार करेगी.

याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून के प्रावधान से सरकार को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तों के संबंध में नियम बनाने की स्पष्ट रूप से शक्ति मिलती है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की एक याचिका पर जवाब दाखिल नहीं करने पर सोमवार को केंद्र की खिंचाई की.

रमेश ने सूचना का अधिकार (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है जिसके तहत सरकार को सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, भत्ते और वेतन निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त होता है.

केंद्र की ओर से पेश वकील ने जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया. इस पर न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, मामले में नोटिस जारी हुए एक साल हो गया है. आप इस दौरान क्या कर रहे थे? आपके साथ क्या परेशानी है? यह एक महत्वपूर्ण मामला है.

न्यायालय ने हालांकि केंद्र को जवाब देने के लिए दो हफ्ते का समय दिया.

न्यायालय ने पिछले साल 31 जनवरी को रमेश की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. रमेश की याचिका में कहा गया कि आरटीआई (संशोधन) कानून, 2019 और आरटीआई (कार्यकाल, कार्यालय, वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें तथा नियम) नियम, 2019 सभी नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का सामूहिक उल्लंघन करता है जबकि इसकी गारंटी संविधान में दी गई है.

पढ़ें :- मानहानि मामले में दिग्विजय सिंह के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी

अधिवक्ता सुनील फर्नांडिस के जरिए दायर याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून के प्रावधान से केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों के पांच वर्षों के पूर्व निर्धारित कार्यकाल में बदलाव होता है तथा नए प्रावधान के अनुसार कार्यकाल का निर्धारण केंद्र सरकार करेगी.

याचिका में कहा गया है कि संशोधित कानून के प्रावधान से सरकार को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तों के संबंध में नियम बनाने की स्पष्ट रूप से शक्ति मिलती है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.