भोपाल। मध्यप्रदेश के देवास के कवि देव कृष्ण व्यास ने पिछले दिनों गुजरात के राजकोट में हुए एक आयोजन में जिस कविता का पाठ किया. वह कविता उन्होंने आज़ादी के अमृत महोत्सव के मौके पर ही लिखी थी. कविता का शीर्षक ही है - आज़ादी की दुल्हन अपनी हुई 75 साल की. कविता की जिन पंक्तियों पर विवाद हुआ है, उनमें कवि अघोषित रूप से महात्मा गांधी को (Gandhi Poetry Controversy) संबोधित करते हुए कहते हैं पूछ रहा हूं बापू तुमसे ऐसी मन में ठानी क्यों, एक हठधर्मी था जिन्ना तो उसकी बातें मानी क्यों, आजादी के नायक थे तुम, कैसे खलनायक जीत गए. चरखा- चरखा करते थे सब, जब जरुरत पड़ी मशाल की, आज़ादी की दुल्हन अपनी हुई 75 साल की. कविता के ही एक दूसरे हिस्से में वे कहते हैं सुभाष का उपहास उड़ाया और नेहरू से मोह किया. कविता में एक जगह कवि लिखते हैं, गांधी जी के अनुयायी सब रघुपति राघव गाते थे बिगुल बजाना था जिनको मिलकर बीन बजाते थे. राजकोट से वायरल हुई कविता की इन पंक्तियों पर अब देशभर में बवाल मचा है. कहा जा रहा है कि कवि ने केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही नहीं, उनमें आस्था रखने वाली बड़ी आबादी का भी अपमान किया है.
मैंने जो भी लिखा, उसके पीछे तथ्य हैं : कवि देव कृष्ण व्यास अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं कि मेरा पक्ष स्पष्ट है कि हमें अधूरी आज़ादी मिली. हमने तो अखंड भारत का स्वप्न देखा हमेशा से. लेकिन हमारे देश का एक हिस्सा तो कट गया. वही मैने अपनी कविता में दर्शाया है. 1947 में देश आज़ाद हुआ लेकिन बंटवारा हो गया. चरखा चरखा करते थे कि जिस पंक्ति पर विरोध किया जा रहा है. इसके पीछे भी मेरा विचार ये है कि चरखे के साथ अगर मशाल भी जुड़ी होती तो आज़ादी का ये आंदोलन कोई और रूप ले चुका होता. वे कहते हैं मैने कविता में जिन्ना को खलनायक कहा है और महात्मा गांधी से पूछा है कि आजादी के नायक तुम थे तो खलनायक कैसे जीत गए. देवकृष्ण जी जोड़ते हैं मेरी कविता का मकसद किसी का अपमान करना, किसी को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है.
- " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="">
इन पंक्तियों से उठा विवाद : राजगुरु सुखदेव भगत सिंह फांसी का फंदा याद हमें...
तुष्टिकरण की राजनीति का गोरखधंधा याद हमें, भारत मां का था बंटवारा हमें अभी तक खलता है
कितना अत्याचार हुआ था सुनकर खून उबलता है, लाशों के ऊपर प्रधान प्रतिष्ठा हुई जवाहर लाल की
सुभाष का उपहास उड़ाया और नेहरू से मोह किया, आज़ाद हिंद हो सारा अपना सेना ने विद्रोह किया
गांधी जी के अनुयायी सब रघुपति राघव गाते थे, बिगुल बजाना था जिनको मिलकर बीन बजाते थे
चरखा चरखा करते थे सब,जब जरुरत पड़ी मशाल की, आज़ादी की दुल्हन अपनी हुई 75 साल की
पूछ रहा हूं बापू तुमसे ऐसी मन में ठानी क्यों, एक हठधर्मी था जिन्ना तो उसकी बातें मानी क्यों
आजादी के नायक थे तुम कैसे खलनायक जीत गए, माता के बंटवारे को साल 75 बीत गए
हमें अधूरी दी आज़ादी, बिना खड्ग और ढाल की, आज़ादी की दुल्हन अपनी हुई 75 साल की
थोड़ा इतिहास पढ़ लेते तो मूर्खतापूर्ण पंक्तियां नहीं लिखते : वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने कवि महोदय को इतिहास पढ़ने की सलाह दी है. उन्होंने कहा है कि कवि महोदय अगर थोड़ा इतिहास पढ़ लेते तो इस तरह की मूर्खतापूर्ण पंक्तियां नहीं लिखते. चरखे पर रवीन्द्रनाथ और गांधी जी के बीच हुई चर्चा और महाकवि निराला द्वारा रवीन्द्रनाथ पर लिखे लेख ही पढ़ लें. आज़ादी के आंदोलन में चरखा, स्वदेशी के संघर्ष और विदेशी कपड़ों की होली ने मशाल से ज़्यादा आग और रोशनी पैदा की थी. वे कहते हैं मेरा सुझाव है इन कवि महोदय को कि कवि का काम सत्ता की चमचागिरी करना नहीं होता.
समूचे राष्ट्र की भावनाओं का अपमान : वरिष्ठ आलोचक लेखक विजय बहादुर सिंह कहते हैं देवास के कोई कवि हैं देवकृष्ण व्यास. आजादी के अमृत महोत्सव काल में राष्ट्रीय आन्दोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की भूमिका पर सवाल उठाती जिस कविता का वे जगह- जगह पाठ करने निकल पड़े हैं, वह समूचे राष्ट्र की भावनाओं का अपमान है. उनका यह आचरण राष्ट्रीय अपमान की एक घिनौनी कोशिश है. जो किसी भी क्षमा के योग्य नहीं. ये गांधी जी से ज्यादा भारत की उस विशाल आबादी का अपमान है जो बापू की भूमिका को लेकर श्रध्दावनत है.
प्रख्यात उर्दू कवि मुनव्वर राना ने ओवैसी की खिंचाई की
ऐसी रचना अपराध की श्रेणी में : जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राम प्रकाश त्रिपाठी इसे अपराध की श्रेणी में रखते हैं. वे कहते हैं मालवा गांधीजी के आन्दोलन की सक्रिय भूमि रही है.देवास सहित पूरे मालवा का देवास के कथित कवि ने गांधी की अवमानना कर, अपमान किया है. मध्यप्रदेश के नाम पर भी बट्टा लगाया है.खेद है कि नाम मात्र के अपराधों में आम जन को जेल की हवा खिलाने वाली सरकार को राष्ट्रपिता के रूप में समाद्रित महात्मा गांधी की सार्वजनिक अवमानना कोई अपराध नहीं लगता?