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मानवता की मिसाल : सिपाही ने सड़क किनारे रखी अर्थी को दिया कंधा

लोगों में कोरोना का डर इस तरह बैठ गया है कि वे अर्थी को कंधा तक नहीं दे रहे. ताजा मामला उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले का है, जहां एक अर्थी को चार कंधे नहीं नसीब हो रहे थे. जब इसकी जानकारी पुलिस को दी गई तो मौके पर पहुंचे एक सिपाही ने चौथा कंधा बनकर अर्थी को श्मशान घाट तक पहुंचाया. पढ़ें पूरी खबर...

मानवता की मिसाल
मानवता की मिसाल
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Published : Apr 29, 2021, 11:42 AM IST

मुरादाबाद : किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी अंतिम यात्रा श्मशान घाट तक चार लोगों के कंधों पर जाती है. लेकिन उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के मुगलपुरा क्षेत्र के लालबाग स्थित दसवां घाट श्मशान तक पहुंचने के लिए एक व्यक्ति की अर्थी को चार कंधा तक नसीब नहीं हुआ. व्यक्ति का शव सड़क के किनारे नाले के पास पड़ा था. उसकी अर्थी को कंधा देने के लिए चौथे व्यक्ति का इंतजार किया जा रहा था. लोग शव से दूर खड़े होकर केवल तमाशा देख रहे थे.

कोरोना के डर की वजह से कोई भी व्यक्ति आगे आकर शव को कंधा देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. इसी बीच इस बात की सूचना पुलिस को दी गई. सूचना पाकर मौके पर पहुंचे एक सिपाही ने मानवता का परिचय देते हुए आगे आकर उस मृत व्यक्ति की अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट तक पहुंचाया.

सिपाही ने सड़क किनारे रखी अर्थी को दिया कंधा

मृतक व्यक्ति की मौत इलाज के दौरान सरकारी अस्पताल में हुई थी. अभी उसकी कोरोना की रिपोर्ट आनी बाकी है.

'है कोई इंसानियत का बंदा, जो इस अर्थी को कंधा दे दे'
बता दें कि सड़क किनारे नाले के पास शव पड़े होने की सूचना पर लालबाग चौकी इंचार्ज और सिपाही अरुण सिंह जब मौके पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चारों तरफ भीड़ लगी हुई है. एक व्यक्ति शव के पास फोन पर बात कर रहा है. पूछने पर पता चला कि शव के साथ उनके दो बेटे और एक भाई है. श्मशान तक अर्थी ले जाने के लिए कोई चौथा व्यक्ति नहीं मिल रहा, जो कंधा दे सके. सिपाही अरुण सिंह तेज आवाज में चीख कर भीड़ से पूछा कि है कोई इंसानियत का बंदा, जो इस अर्थी को कंधा दे सके. लेकिन भीड़ में से कोई भी व्यक्ति आगे नहीं आया.

किस व्यक्ति का था शव
मुरादाबाद के डिप्टीगंज के रहने वाला राकेश ट्रेलर का काम करता था. कुछ दिन पहले तबीयत खराब होने की वजह से एक निजी अस्पताल में अपना इलाज करवा रहा था. लेकिन अचानक हालात बिगड़ गई और डॉक्टर ने इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ले जाने के लिए कहा. राकेश को जिला अस्पताल में भर्ती कर लिया गया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.

जिला अस्पताल की लापरवाही आई सामने
जिला अस्पताल में इलाज के दौरान राकेश की कोरोना जांच का सेंपल भी लिया गया था. लेकिन कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले ही उसकी मौत हो गई. अस्पताल वालों ने उसके शव को घर की ही एक चादर में लपेट कर एम्बुलेंस में रखवा दिया. उसके हाथ से कैनुला तक नहीं निकाला गया था. कोरोना रिपोर्ट आने से पहले ही राकेश के शव को परिजनों को सौंप दिया.

यह भी पढ़ें- कोरोना का कहर- देश के इन राज्यों में सबसे ज्यादा संक्रमण

अगर उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो उसकी अर्थी को कंधा देने वाले तीनों परिजन व सिपाही तब तक न जाने कितने लोगों के संपर्क में आ चुके होंगे. लेकिन इस पूरे मामले में मृतक के परिजन और पुलिस कर्मी कुछ भी कहने से बचते नजर आए.

मुरादाबाद : किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी अंतिम यात्रा श्मशान घाट तक चार लोगों के कंधों पर जाती है. लेकिन उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के मुगलपुरा क्षेत्र के लालबाग स्थित दसवां घाट श्मशान तक पहुंचने के लिए एक व्यक्ति की अर्थी को चार कंधा तक नसीब नहीं हुआ. व्यक्ति का शव सड़क के किनारे नाले के पास पड़ा था. उसकी अर्थी को कंधा देने के लिए चौथे व्यक्ति का इंतजार किया जा रहा था. लोग शव से दूर खड़े होकर केवल तमाशा देख रहे थे.

कोरोना के डर की वजह से कोई भी व्यक्ति आगे आकर शव को कंधा देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. इसी बीच इस बात की सूचना पुलिस को दी गई. सूचना पाकर मौके पर पहुंचे एक सिपाही ने मानवता का परिचय देते हुए आगे आकर उस मृत व्यक्ति की अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट तक पहुंचाया.

सिपाही ने सड़क किनारे रखी अर्थी को दिया कंधा

मृतक व्यक्ति की मौत इलाज के दौरान सरकारी अस्पताल में हुई थी. अभी उसकी कोरोना की रिपोर्ट आनी बाकी है.

'है कोई इंसानियत का बंदा, जो इस अर्थी को कंधा दे दे'
बता दें कि सड़क किनारे नाले के पास शव पड़े होने की सूचना पर लालबाग चौकी इंचार्ज और सिपाही अरुण सिंह जब मौके पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चारों तरफ भीड़ लगी हुई है. एक व्यक्ति शव के पास फोन पर बात कर रहा है. पूछने पर पता चला कि शव के साथ उनके दो बेटे और एक भाई है. श्मशान तक अर्थी ले जाने के लिए कोई चौथा व्यक्ति नहीं मिल रहा, जो कंधा दे सके. सिपाही अरुण सिंह तेज आवाज में चीख कर भीड़ से पूछा कि है कोई इंसानियत का बंदा, जो इस अर्थी को कंधा दे सके. लेकिन भीड़ में से कोई भी व्यक्ति आगे नहीं आया.

किस व्यक्ति का था शव
मुरादाबाद के डिप्टीगंज के रहने वाला राकेश ट्रेलर का काम करता था. कुछ दिन पहले तबीयत खराब होने की वजह से एक निजी अस्पताल में अपना इलाज करवा रहा था. लेकिन अचानक हालात बिगड़ गई और डॉक्टर ने इलाज के लिए सरकारी अस्पताल ले जाने के लिए कहा. राकेश को जिला अस्पताल में भर्ती कर लिया गया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.

जिला अस्पताल की लापरवाही आई सामने
जिला अस्पताल में इलाज के दौरान राकेश की कोरोना जांच का सेंपल भी लिया गया था. लेकिन कोरोना की रिपोर्ट आने से पहले ही उसकी मौत हो गई. अस्पताल वालों ने उसके शव को घर की ही एक चादर में लपेट कर एम्बुलेंस में रखवा दिया. उसके हाथ से कैनुला तक नहीं निकाला गया था. कोरोना रिपोर्ट आने से पहले ही राकेश के शव को परिजनों को सौंप दिया.

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अगर उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो उसकी अर्थी को कंधा देने वाले तीनों परिजन व सिपाही तब तक न जाने कितने लोगों के संपर्क में आ चुके होंगे. लेकिन इस पूरे मामले में मृतक के परिजन और पुलिस कर्मी कुछ भी कहने से बचते नजर आए.

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