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प्रकृति संरक्षण: मद्रास हाई कोर्ट ने प्रकृति को सभी अधिकारों के साथ जीवित व्यक्ति का दिया दर्जा

प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने एक अहम फैसला दिया है. हाई कोर्ट ने प्रकृति मां को सभी अधिकारों के साथ जीवित व्यक्ति (living person) का दर्जा दिया है. पढ़ें पूरी खबर.

Madras High Court
मद्रास उच्च न्यायालय
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Published : Apr 30, 2022, 8:29 PM IST

Updated : Apr 30, 2022, 9:31 PM IST

मदुरै (तमिलनाडु) : मद्रास उच्च न्यायालय ने प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रकृति को जीवित प्राणी का दर्जा दिया है. हाई कोर्ट ने संरक्षक के क्षेत्राधिकार का उपयोग करते हुए उसे एक जीवित व्यक्ति के सभी अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों से लैस किया है. उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने तहसीलदार स्तर के एक पूर्व अधिकारी की याचिका पर अपने हालिया आदेश में प्रकृति संरक्षण को व्यापक महत्व दिया है.

याचिकाकर्ता ने कुछ लोगों को 'जंगल की सरकारी जमीन' का पट्टा (भूमि विलेख) मंजूर किया था, जिसके लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी और उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर जाने का आदेश दिया गया था. याचिकाकर्ता ने इसे निरस्त करने की मांग की थी. ए. पेरियाकरुपन की ओर से दायर याचिका पर अदालत ने कहा कि प्रकृति के अंधाधुंध विनाश से पारिस्थितिकी तंत्र में कई तरह की समस्याएं आएंगी और वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.

उत्तराखंड के फैसले का जिक्र : न्यायमूर्ति एस. श्रीमती ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के एक पूर्व के फैसले को याद किया, जिसमें उसने संरक्षक के क्षेत्राधिकार का उपयोग किया था और गंगोत्री एवं यमुनोत्री सहित ग्लेशियर को संरक्षित रखने के लिए उन्हें कानूनी अधिकारों से लैस कर दिया था. उन्होंने कहा, 'पिछली पीढ़ी ने प्रकृति मां को हमें पवित्र रूप में सौंपा है और हम इसे अगली पीढ़ी को उसी रूप में सौंपने के लिए आबद्ध हैं.'

प्रकृति मां को न्यायिक दर्जा दिए जाने का उचित वक्त : अदालत ने कहा, 'यह प्रकृति मां को न्यायिक दर्जा दिए जाने का उचित वक्त है. इसलिए यह अदालत 'माता-पिता के अधिकार क्षेत्र' को लागू करके 'मातृ प्रकृति' को 'जीवित प्राणी' के रूप में घोषित कर रही है.' याचिकाकर्ता ने अनुशासनात्मक कार्रवाई को निरस्त करने और प्रतिवादियों को उसे पूरी पेंशन तथा मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का बकाया साढ़े सात प्रतिशत ब्याज के साथ सेवानिवृत्ति की तारीख से भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की थी.

अदालत ने कहा कि चूंकि मेघामलाई में विवादित भूमि का पट्टा रद्द कर दिया गया था और गांव के खाते में आवश्यक प्रविष्टियां कर दी गई थीं, इसलिए सजा भी संशोधित की जानी चाहिए. इसके साथ ही अदालत ने कहा, 'हमारा मानना है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को संशोधित किया जाना चाहिए.'

पढ़ें- Madras HC: सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए मेडिकल दाखिलों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण वैध

मदुरै (तमिलनाडु) : मद्रास उच्च न्यायालय ने प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रकृति को जीवित प्राणी का दर्जा दिया है. हाई कोर्ट ने संरक्षक के क्षेत्राधिकार का उपयोग करते हुए उसे एक जीवित व्यक्ति के सभी अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों से लैस किया है. उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने तहसीलदार स्तर के एक पूर्व अधिकारी की याचिका पर अपने हालिया आदेश में प्रकृति संरक्षण को व्यापक महत्व दिया है.

याचिकाकर्ता ने कुछ लोगों को 'जंगल की सरकारी जमीन' का पट्टा (भूमि विलेख) मंजूर किया था, जिसके लिए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी और उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर जाने का आदेश दिया गया था. याचिकाकर्ता ने इसे निरस्त करने की मांग की थी. ए. पेरियाकरुपन की ओर से दायर याचिका पर अदालत ने कहा कि प्रकृति के अंधाधुंध विनाश से पारिस्थितिकी तंत्र में कई तरह की समस्याएं आएंगी और वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.

उत्तराखंड के फैसले का जिक्र : न्यायमूर्ति एस. श्रीमती ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के एक पूर्व के फैसले को याद किया, जिसमें उसने संरक्षक के क्षेत्राधिकार का उपयोग किया था और गंगोत्री एवं यमुनोत्री सहित ग्लेशियर को संरक्षित रखने के लिए उन्हें कानूनी अधिकारों से लैस कर दिया था. उन्होंने कहा, 'पिछली पीढ़ी ने प्रकृति मां को हमें पवित्र रूप में सौंपा है और हम इसे अगली पीढ़ी को उसी रूप में सौंपने के लिए आबद्ध हैं.'

प्रकृति मां को न्यायिक दर्जा दिए जाने का उचित वक्त : अदालत ने कहा, 'यह प्रकृति मां को न्यायिक दर्जा दिए जाने का उचित वक्त है. इसलिए यह अदालत 'माता-पिता के अधिकार क्षेत्र' को लागू करके 'मातृ प्रकृति' को 'जीवित प्राणी' के रूप में घोषित कर रही है.' याचिकाकर्ता ने अनुशासनात्मक कार्रवाई को निरस्त करने और प्रतिवादियों को उसे पूरी पेंशन तथा मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी का बकाया साढ़े सात प्रतिशत ब्याज के साथ सेवानिवृत्ति की तारीख से भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की थी.

अदालत ने कहा कि चूंकि मेघामलाई में विवादित भूमि का पट्टा रद्द कर दिया गया था और गांव के खाते में आवश्यक प्रविष्टियां कर दी गई थीं, इसलिए सजा भी संशोधित की जानी चाहिए. इसके साथ ही अदालत ने कहा, 'हमारा मानना है कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को संशोधित किया जाना चाहिए.'

पढ़ें- Madras HC: सरकारी स्कूल के छात्रों के लिए मेडिकल दाखिलों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण वैध

Last Updated : Apr 30, 2022, 9:31 PM IST
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