हैदराबाद : देश के 16 राज्य ऐसे हैं, जहां दो साल के भीतर विधानसभा चुनाव होंगे. इन चुनावों में किसका पलड़ा भारी होगा ? किस मुद्दे पर आखिरी समय में खेल होगा, यह तय नहीं है. मगर चुनावी राजनीति में अभी से सियासी गोटियां बैठाई जा रही हैं. जाति के समीकरणों के हिसाब-किताब से सीएम बदले जा रहे हैं. मगर यह भी तय है कि मुद्दों और चुनावी समीकरणों के अलावा जीत उसी पार्टी की होगी, जिसके कार्यकर्ता सक्रिय होंगे और संगठन मजबूत होगा. सांगठनिक ढांचे में बीजेपी कांग्रेस पर भारी साबित होती है.
2022 के मार्च में उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर समेत पांच राज्यों में चुनाव होंगे जबकि दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे. 2023 में 9 राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होंगे. इन 16 राज्यों में से 9 राज्यों में बीजेपी सत्ता में है. कांग्रेस के खाते में तीन राज्य हैं. कर्नाटक और मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस सत्ता में आई थी. मगर बदले राजनीतिक हालात में दोनों राज्य बीजेपी के हिस्से में चले गए. कुल 10 राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला होता है.
अभी तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष परमानेंट नहीं : संगठन चुनाव में कांग्रेस पिछड़ती रही है. 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से कांग्रेस अभी तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है. पार्टी नेता केसी वेणुगोपाल (K.C. Venugopal) ने मई 2021 में दावा किया था कि जून तक नया चुना हुआ कांग्रेस अध्यक्ष मिल जाएगा. मगर पार्टी को नया अध्यक्ष नहीं मिला. बीजेपी ने सितंबर 2020 में कोरोना के बीच ही राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर संगठन चुनाव करा लिए. पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों और विंग पर भी कार्यकर्ताओं की तैनाती कर दी. छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो कांग्रेस अपने बड़े राज्यों में संगठन के पदों पर नियुक्ति नहीं कर सकी है. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, विभिन्न प्रदेशों में कांग्रेस के 500 से अधिक पदाधिकारियों की सींटें खाली है.
गुजरात में प्रदेश अध्यक्ष पद तकनीकी तौर से खाली : गुजरात राज्य विधानसभा चुनावों में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है. इससे पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री तो बदल दिए. उससे पहले ब्लॉक स्तर तक संगठन चुनाव पूरे कर लिए. प्रदेश स्तर पर 160 पदाधिकारियों की टीम काम कर रही है. 2019 में लगातार दूसरी बार बीजेपी के हाथों सभी छब्बीस लोकसभा सीटों के हारने के बाद प्रदेश की टीम बिखर गई है. अभी जीपीसीसी अध्यक्ष अमित चावड़ा, कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल हैं और नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं. इसके अलावा सभी पद खाली हैं. निकाय चुनाव में हार के बाद अमित चावड़ा और परेश धनानी भी अपने पदों से इस्तीफा दे चुके हैं मगर वहां नया नेतृत्व अभी तैयार नहीं है.
राजस्थान सचिन के तेवर के बाद सुस्त पड़ा संगठन : 2023 में राजस्थान राजस्थान विधानसभा के चुनाव होंगे. हालत यह है कि कांग्रेस के 39 जिलाध्यक्ष का पद खाली है. सचिन पायलट के बागी तेवर को देखते हुए प्रदेश कार्यकारिणी में नई नियुक्तियां नहीं हुई है. कार्यकर्ता सचिन और गहलोत खेमे में बंटे हैं. इस कारण महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं. इसके उलट बीजेपी बूथ स्तर पर प्रभारी तैनात कर चुकी है. 40 जिलाध्यक्ष के अलावा 93 विदेश आमंत्रित कार्यकारिणी सदस्य चुनावी तैयारी कर रहे हैं. बीजेपी के सभी मोर्च और प्रकोष्ठों में पदाधिकारी काम कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में संगठन तो है, मगर खेमेबाजी भी है : छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य है कि जहां 2018 के बाद संगठन पर भी ध्यान दिया गया. 2020 में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी की नई कार्यकारिणी घोषित कर दी गई. पीसीसी में 10 उपाध्यक्ष, 22 महासचिव और 36 शहर और ग्रामीण अध्यक्ष बनाए गए. वहां बीजेपी ने अपनी 160 पार्टी पदाधिकारियों के साथ तैयार है. आने वाले चुनाव से पहले पार्टी को वहां सिंहदेव और बघेल गुटों की खेमेबाजी से निपटना होगा.
प्रियंका गांधी ने नए सिरे सजाया यूपी कांग्रेस को : उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की चुनौती प्रमुख विरोधी दल बनने की है. यूपी 2017 के चुनाव में सपा से गठबंधन के बावजूद 7 सीट ही जीत सकी. प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) को लेकर संगठन में बड़ा विस्तार किया है और 3 नए उपाध्यक्ष, 1 संगठन महामंत्री, 11 महासचिव के अलावा 28 सचिव नियुक्त किए हैं. इससे पहले मार्च में कांग्रेस ने प्रदेश इकाई के लिए 69 नए पदाधिकारियों की एक सूची जारी की थी. इसके मुकाबले के लिए बीजेपी ने 172 पार्टी पदाधिकारियों की प्रदेश टीम बनाई है. सत्तारुढ़ बीजेपी बूथ स्तर पर काम शुरू कर चुकी है.
ज्योतिरादित्य क्या गए, संगठन विस्तार भी रुक गया : मध्यप्रदेश में आखिरी बार कांग्रेस पदाधिकारी 2018 में चुने थे. यहां भी 2023 में चुनाव होना है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के विद्रोह के बाद मध्यप्रदेश में बीजेपी ने कब्जा किया. ज्योतिरादित्य के पार्टी छोड़ने के बाद संगठन विस्तार नहीं हुआ. इससे उलट बीजेपी के प्रदेश कार्यकारिणी, मोर्चे और जिला स्तर पर करीब 450 पदाधिकारियों की नियुक्ति कर चुका है. मध्यप्रदेश में कांग्रेस के संगठन चुनाव 3 साल से टाले जा रहे हैं. प्रदेश नेतृत्व हाईकमान के आदेश का इंतजार कर रहा है.
गोवा में सरकार बनाकर कांग्रेस पर बीजेपी ने ली बढ़त : गोवा में 2017 के चुनाव के बाद बीजेपी काफी बदल गई. 13 सीट जीतने वाली भाजपा ने पहले निर्दलीय, गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के सहयोग से सरकार बनाई. फिर 17 विधायकों वाली कांग्रेस को दो बार तोड़ा. आज कांग्रेस के पांच बचे विधायकों में चार पूर्व मुख्यमंत्री हैं, दिगंबर कामत, प्रतापसिंह राणे, रवीनाईक और लुइझिनोफलेरो. पार्टी ने गोवा के पूर्व मंत्री अलेक्सो सिकेरा को सोमवार को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया .पंचायत चुनाव में पराजय के बाद इस्तीफा देने वाले प्रदेश अध्यक्ष गिरीश चोडनकर पद पर बने रहेंगे. संगठन के पद यहां भी खाली हैं. बीजेपी में 40 सदस्यों का कोरम पूरा है.
कांग्रेस का ऐसा ही हाल उत्तराखंड में हैं, जहां अभी प्रदेश अध्यक्ष तय नहीं हुआ है. वहां भी कार्यकारी अध्यक्ष के भरोसे पार्टी चल रही है. संगठन के सभी पद खाली हैं. जबकि बीजेपी वहां संगठन चुनाव पूरा कर चुकी है. अब कांग्रेस राहुल-सोनिया के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी मगर बीजेपी से मुकाबला करने के लिए बूथ स्तर पर कार्यकर्ता और बात रखने के लिए पदाधिकारी की जरूरत होगी. इस कमी को पूरा करने के लिए पार्टी के पास गिने-चुने महीने ही हैं.
अहमद पटेल की कमी खल रही है कांग्रेस को : अहमद पटेल कांग्रेस के संकटमोचक के तौर पर जाने जाते थे. उनकी राज्यों में भी संगठन पर पकड़ थी. अंदरुनी गुटबाजी का तोड़ भी उनके पास था. अहमद पटेल के बाद कोई ऐसा नेता सामने नहीं आया जो शीर्ष नेतृत्व और राज्य नेतृत्व के बीच कड़ी बन सके.