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सियाचिन के हीरो कर्नल नरेंद्र बुल कुमार का निधन - नरेंद्र बुल कुमार का निधन

पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरने वाले कर्नल नरेंद्र बुल कुमार का दिल्ली के आर्मी अस्पताल में निधन हो गया है. उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे से सियाचिन ग्लेशियर छीना था. वह 87 वर्ष के थे.

कर्नल नरेंद्र बुल कुमार
कर्नल नरेंद्र बुल कुमार
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Published : Dec 31, 2020, 7:58 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 8:37 PM IST

नई दिल्ली : भारत के लिए सियाचिन ग्लेशियर हासिल करने वाले कर्नल नरेंद्र बुल कुमार का निधन हो गया है. वह 87 वर्ष के थे. कर्नल नरेंद्र ने दिल्ली के आरआर अस्पताल में अंतिम सांसे ली.

पिछले कुछ समय से नरेंद्र बुल कुमार आयु संबंधी बिमारियों से पीड़ित थे.

बुल कुमार ने सियाचिन ग्लेशियर के सामरिक महत्व के बारे में भारत के सैन्य / राजनीतिक नेतृत्व को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

सियाचिन ग्लेशियर एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत अपने दोनों प्रतिद्वंद्वियों पाकिस्तान और चीन पर बढ़त बनाए हुए है.

ऑपरेशन मेघदूत
पाकिस्तान के नापाक इरादों को भांपते हुए भारत ने 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया और सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर लिया. सियाचिन पर भारत का फिर से भारत का ध्वज लहराने में कर्नल कुमार ने अहम रोल निभाया था.

कर्नल कुमार और उनकी टीम द्वारा बनाए गए विस्तृत नक्शों, योजनाओं, तस्वीरों और वीडियो ने भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर को जीतने में मदद की.

ऐसा माना जाता है कि अगर उन्होंने उस अभियान को नहीं चलाया होता तो सियाचिन ग्लेशियर का सारा हिस्सा पाकिस्तान का हो जाता. यह लगभग 10,000 किमी का क्षेत्र है, लेकिन उनके अभियान के कारण भारत ने पूरे क्षेत्र पर विजय प्राप्त की. कुमार ने भारत को सियाचिन देने के लिए सात पर्वत श्रृंखलाओं- पीर पंजाल रेंज, हिमालय, ज़ांस्कर, लद्दाख, सॉल्टोरो, काराकोरम और अगिल को पार किया.

प्रारंभिक जीवन
नरेंद्र कुमार का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में 1933 में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई. लेकिन 1947 में वह अपने परिवार के साथ पंजाब आ गए. उनके तीन और भाई हैं. ये सभी भी भारतीय सेना में शामिल हुए थे.

महज 17 साल की उम्र में नरेंद्र कुमार ने आर्मी ज्वाइन की. 1954 में कुमार को कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला.

कुमार का विवाह मृदुला से हुआ है. उनकी एक बेटी शैलजा कुमार (जन्म 1964), भारत की पहली महिला शीतकालीन ओलंपियन हैं, जिन्होंने 1988 में कैलगरी, कनाडा में अल्पाइन स्कीइंग में भाग लिया था. उनके बेटे का नाम अक्षय कुमार है.

पुरस्कार
1965 में नरेंद्र कुमार को चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया. सेना ने उन्हें तीनों सेवाओं में परम विशिष्ट सेवा पदक (पीवीएसएम) के साथ सम्मानित किया गया. उन्हें कीर्ति चक्र और अति विशिष्ट सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया था. ग्लेशियर बेस कैंप में सियाचिन बटालियन मुख्यालय को उनके सम्मान में 'कुमार बेस' नाम दिया गया है.

इसलिए नाम पड़ा बुल कुमार
कर्नल नरेंद्र कुमार को बुल कुमार के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे ही एक वाकया है. दरअसल वह अपने मुक्केबाजी में एस.एफ. रोड्रिग्स से भीड़ गए थे. यह मैच राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, देहरादून में हो रहा था. हालांकि इस मैच में कर्नल कुमार को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वह लोगों को दिलों को जीतने में कामयाब रहे थे, इसके बाद से उन्हें बुल कुमार के नाम से पुकारा जाने लगा.

नई दिल्ली : भारत के लिए सियाचिन ग्लेशियर हासिल करने वाले कर्नल नरेंद्र बुल कुमार का निधन हो गया है. वह 87 वर्ष के थे. कर्नल नरेंद्र ने दिल्ली के आरआर अस्पताल में अंतिम सांसे ली.

पिछले कुछ समय से नरेंद्र बुल कुमार आयु संबंधी बिमारियों से पीड़ित थे.

बुल कुमार ने सियाचिन ग्लेशियर के सामरिक महत्व के बारे में भारत के सैन्य / राजनीतिक नेतृत्व को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

सियाचिन ग्लेशियर एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत अपने दोनों प्रतिद्वंद्वियों पाकिस्तान और चीन पर बढ़त बनाए हुए है.

ऑपरेशन मेघदूत
पाकिस्तान के नापाक इरादों को भांपते हुए भारत ने 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया और सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर लिया. सियाचिन पर भारत का फिर से भारत का ध्वज लहराने में कर्नल कुमार ने अहम रोल निभाया था.

कर्नल कुमार और उनकी टीम द्वारा बनाए गए विस्तृत नक्शों, योजनाओं, तस्वीरों और वीडियो ने भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर को जीतने में मदद की.

ऐसा माना जाता है कि अगर उन्होंने उस अभियान को नहीं चलाया होता तो सियाचिन ग्लेशियर का सारा हिस्सा पाकिस्तान का हो जाता. यह लगभग 10,000 किमी का क्षेत्र है, लेकिन उनके अभियान के कारण भारत ने पूरे क्षेत्र पर विजय प्राप्त की. कुमार ने भारत को सियाचिन देने के लिए सात पर्वत श्रृंखलाओं- पीर पंजाल रेंज, हिमालय, ज़ांस्कर, लद्दाख, सॉल्टोरो, काराकोरम और अगिल को पार किया.

प्रारंभिक जीवन
नरेंद्र कुमार का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में 1933 में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई. लेकिन 1947 में वह अपने परिवार के साथ पंजाब आ गए. उनके तीन और भाई हैं. ये सभी भी भारतीय सेना में शामिल हुए थे.

महज 17 साल की उम्र में नरेंद्र कुमार ने आर्मी ज्वाइन की. 1954 में कुमार को कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला.

कुमार का विवाह मृदुला से हुआ है. उनकी एक बेटी शैलजा कुमार (जन्म 1964), भारत की पहली महिला शीतकालीन ओलंपियन हैं, जिन्होंने 1988 में कैलगरी, कनाडा में अल्पाइन स्कीइंग में भाग लिया था. उनके बेटे का नाम अक्षय कुमार है.

पुरस्कार
1965 में नरेंद्र कुमार को चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया. सेना ने उन्हें तीनों सेवाओं में परम विशिष्ट सेवा पदक (पीवीएसएम) के साथ सम्मानित किया गया. उन्हें कीर्ति चक्र और अति विशिष्ट सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया था. ग्लेशियर बेस कैंप में सियाचिन बटालियन मुख्यालय को उनके सम्मान में 'कुमार बेस' नाम दिया गया है.

इसलिए नाम पड़ा बुल कुमार
कर्नल नरेंद्र कुमार को बुल कुमार के नाम से जाना जाता है. इसके पीछे ही एक वाकया है. दरअसल वह अपने मुक्केबाजी में एस.एफ. रोड्रिग्स से भीड़ गए थे. यह मैच राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, देहरादून में हो रहा था. हालांकि इस मैच में कर्नल कुमार को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वह लोगों को दिलों को जीतने में कामयाब रहे थे, इसके बाद से उन्हें बुल कुमार के नाम से पुकारा जाने लगा.

Last Updated : Dec 31, 2020, 8:37 PM IST
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