नई दिल्ली : जिला प्रशासन ने एक बयान में कहा कि गिरजाघर ग्राम सभा की भूमि पर बनाया गया था और इस भूमि पर कुछ लोगों ने धार्मिक संरचनाओं को बनाने के वास्ते अतिक्रमण कर लिया था. बयान में कहा गया है कि समय के साथ-साथ धार्मिक ढांचे के विस्तार की आड़ में अतिक्रमित क्षेत्र का दायरा बढ़ने लगा. इसलिए बीडीओ कार्यालय ने अनधिकृत ढांचों को गिराने का प्रयास किया.
बयान में कहा गया है कि मामला पहले एनएचआरसी के निर्देश पर धार्मिक समिति को स्थानांतरित कर दिया गया था. इसमें कहा गया है कि इसके बाद, गृह पुलिस-द्वितीय विभाग से तीन मार्च 2021 को एक पत्र प्राप्त हुआ जहां उन्होंने डब्ल्यूपीसी संख्या 5234/2011 में उच्च न्यायालय के 2015 के आदेश का हवाला दिया था.
जिसमें धार्मिक समिति के निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना भूतल के ऊपरी भाग के निर्माण के साथ-साथ जमीन के उस भाग को, जहां मूर्तियां स्थापित नहीं की जाती हैं, को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था.
सात जुलाई को जारी एक नोटिस के अनुसार खंड विकास अधिकारी (दक्षिण) के कार्यालय ने अतिक्रमणकारियों / अनधिकृत कब्जाधारियों को तीन दिनों के भीतर अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था. हालांकि पादरी परिषद के सदस्य और वकील जॉन थॉमस ने दावा किया कि गिरजाघर को कभी नोटिस नहीं मिला. थॉमस ने कहा कि न तो हमें कोई नोटिस मिला और न ही हमें जमीन खाली करने का समय दिया गया.
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अधिकारी 150 पुलिसकर्मियों और तीन जेसीबी के साथ आए और उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ पूरे ढांचे को ध्वस्त कर दिया. हमें अपनी पवित्र वस्तुओं को लेने की भी अनुमति नहीं दी गई. उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से अवैध कृत्य था और हम इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे.
(पीटीआई-भाषा)