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एलएसी विवाद : कड़ाके की ठंड से चीनी सेना के तेवर ढीले, लौटने को हुए मजबूर - People's Liberation Army

पूर्वी लद्दाख सेक्टर में तैनात चीनी सैनिक क्षेत्र में अत्यधिक ठंड से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इस कारण पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपनी 90 प्रतिशत सेना को रोटेट किया है. वे ठंड नहीं झेल पा रहे हैं. इसके ठीक उलट भारतीय जवान एलएसी पर डटे हुए हैं. हमारे जवान दो साल तक लगातार डटे रहते हैं. ऐसी क्षमता चीनी सैनिकों के पास नहीं है.

चीनी सेना
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Published : Jun 6, 2021, 3:55 PM IST

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख सेक्टर (Eastern Ladakh sector ) के सामने तैनात चीनी सैनिक क्षेत्र में अत्यधिक ठंड से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिसके चलते पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People's Liberation Army ) ने अपनी 90 प्रतिशत सेना को रोटेट (Rotate ) किया है और भीतरी इलाकों से नए सैनिकों को तैनात किया है.

पिछले साल अप्रैल-मई की समय सीमा के बाद से चीन ने पूर्वी लद्दाख (eastern Ladakh ) में भारतीय क्षेत्र के करीब 50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है और पैंगोंग झील क्षेत्र (Pangong lake sector) से आगे के इलाकों से सीमित सैनिकों की वापसी के बावजूद उन्हें वहां बनाए रखा है.

सूत्रों के मुताबिक चीन ने पिछले एक साल से वहां मौजूद सैनिकों को रोटेट कर भीतरी इलाकों में नए सैनिकों को तैनात किया है. उसने लगभग 90 प्रतिशत सैनिकों को बदला है.

सूत्रों का कहना है कि इस रोटेशन का कारण हाई लेटिट्यूड क्षेत्रों (high latitude areas) में अत्यधिक ठंड हो सकती है, यहां तैनात सैनिक ठंड और अन्य संबंधित मुद्दों वाली चरम स्थितियों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

सूत्रों के अनुसार पैंगोंग झील क्षेत्र में घर्षण बिंदुओं ( friction points) पर तैनाती के दौरान भी, चीनी सैनिकों को ऊंचाई वाली चौकियों पर लगभग दैनिक आधार पर बदला जा रहा था और उनकी आवाजाही बहुत प्रतिबंधित हो गई थी.

बता दें कि भारतीय सेना दो साल के कार्यकाल के लिए ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपने सैनिकों को तैनात करती है और हर साल लगभग 40-50 प्रतिशत सैनिकों को बदल दिया जाता है. इन परिस्थितियों में आईटीबीपी के जवानों का कार्यकाल कभी-कभी दो साल से भी ज्यादा लंबा होता है.

भारत और चीन पिछले साल अप्रैल-मई की समय सीमा के बाद से पूर्वी लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control) के साथ अन्य क्षेत्रों में चीनी आक्रमण के कारण दोनों सेनाएं एक दूसरे के खिलाफ बड़े पैमाने पर तैनात की गई हैं.

उल्लेखनीय है कि पिछले साल चीनी आक्रमण के बाद भारतीय पक्ष ने भी जोरदार जवाबी कार्रवाई की और सुनिश्चित किया कि उन्हें सभी स्थानों पर रोक कर रखा जाए. उसके बाद भारत ने झील के दक्षिणी किनारे (southern bank of the lake ) पर सामरिक ऊंचाइयों पर कब्जा करके चीनी सेना को आश्चर्यचकित कर दिया.

पढ़ें - एलओसी पर बंदूकें खामोश लेकिन कश्मीर में आतंकी गतिविधियां प्रायोजित कर रहा पाक

दोनों पक्ष इस साल की शुरुआत में पैंगोंग झील क्षेत्र में अपनी-अपनी पॉजिशन को खाली करने और वहां गश्त बंद करने पर सहमत हुए. हालांकि, इन स्थानों से दोनों पक्षों द्वारा बुलाए गए सैनिक करीब-करीब तैनात हैं.

इस साल गर्मियों की शुरुआत से चीनी सैनिक प्रशिक्षण क्षेत्रों में लौट आए हैं, जहां से उन्होंने पिछले साल भारतीय मोर्चे की ओर रुख किया था.वहीं भारतीय पक्ष स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है.

भारतीय सेना प्रमुख (Indian Army Chief ) जनरल मनोज मुकुंद नरवणे (Gen Manoj Mukund Naravane) अक्सर लद्दाख सेक्टर का दौरा करते रहे हैं और स्थिति से निपटने के लिए जमीनी बलों को निर्देश देते रहे हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor ) अजीत डोभाल (Ajit Doval) सहित चीन अध्ययन समूह भी स्थिति से निपटने के लिए सुझाव देता रहा है और चीन के साथ बातचीत के दौरान दिशा-निर्देश भी देता रहा है.

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख सेक्टर (Eastern Ladakh sector ) के सामने तैनात चीनी सैनिक क्षेत्र में अत्यधिक ठंड से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिसके चलते पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People's Liberation Army ) ने अपनी 90 प्रतिशत सेना को रोटेट (Rotate ) किया है और भीतरी इलाकों से नए सैनिकों को तैनात किया है.

पिछले साल अप्रैल-मई की समय सीमा के बाद से चीन ने पूर्वी लद्दाख (eastern Ladakh ) में भारतीय क्षेत्र के करीब 50,000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया है और पैंगोंग झील क्षेत्र (Pangong lake sector) से आगे के इलाकों से सीमित सैनिकों की वापसी के बावजूद उन्हें वहां बनाए रखा है.

सूत्रों के मुताबिक चीन ने पिछले एक साल से वहां मौजूद सैनिकों को रोटेट कर भीतरी इलाकों में नए सैनिकों को तैनात किया है. उसने लगभग 90 प्रतिशत सैनिकों को बदला है.

सूत्रों का कहना है कि इस रोटेशन का कारण हाई लेटिट्यूड क्षेत्रों (high latitude areas) में अत्यधिक ठंड हो सकती है, यहां तैनात सैनिक ठंड और अन्य संबंधित मुद्दों वाली चरम स्थितियों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

सूत्रों के अनुसार पैंगोंग झील क्षेत्र में घर्षण बिंदुओं ( friction points) पर तैनाती के दौरान भी, चीनी सैनिकों को ऊंचाई वाली चौकियों पर लगभग दैनिक आधार पर बदला जा रहा था और उनकी आवाजाही बहुत प्रतिबंधित हो गई थी.

बता दें कि भारतीय सेना दो साल के कार्यकाल के लिए ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपने सैनिकों को तैनात करती है और हर साल लगभग 40-50 प्रतिशत सैनिकों को बदल दिया जाता है. इन परिस्थितियों में आईटीबीपी के जवानों का कार्यकाल कभी-कभी दो साल से भी ज्यादा लंबा होता है.

भारत और चीन पिछले साल अप्रैल-मई की समय सीमा के बाद से पूर्वी लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control) के साथ अन्य क्षेत्रों में चीनी आक्रमण के कारण दोनों सेनाएं एक दूसरे के खिलाफ बड़े पैमाने पर तैनात की गई हैं.

उल्लेखनीय है कि पिछले साल चीनी आक्रमण के बाद भारतीय पक्ष ने भी जोरदार जवाबी कार्रवाई की और सुनिश्चित किया कि उन्हें सभी स्थानों पर रोक कर रखा जाए. उसके बाद भारत ने झील के दक्षिणी किनारे (southern bank of the lake ) पर सामरिक ऊंचाइयों पर कब्जा करके चीनी सेना को आश्चर्यचकित कर दिया.

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दोनों पक्ष इस साल की शुरुआत में पैंगोंग झील क्षेत्र में अपनी-अपनी पॉजिशन को खाली करने और वहां गश्त बंद करने पर सहमत हुए. हालांकि, इन स्थानों से दोनों पक्षों द्वारा बुलाए गए सैनिक करीब-करीब तैनात हैं.

इस साल गर्मियों की शुरुआत से चीनी सैनिक प्रशिक्षण क्षेत्रों में लौट आए हैं, जहां से उन्होंने पिछले साल भारतीय मोर्चे की ओर रुख किया था.वहीं भारतीय पक्ष स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है.

भारतीय सेना प्रमुख (Indian Army Chief ) जनरल मनोज मुकुंद नरवणे (Gen Manoj Mukund Naravane) अक्सर लद्दाख सेक्टर का दौरा करते रहे हैं और स्थिति से निपटने के लिए जमीनी बलों को निर्देश देते रहे हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor ) अजीत डोभाल (Ajit Doval) सहित चीन अध्ययन समूह भी स्थिति से निपटने के लिए सुझाव देता रहा है और चीन के साथ बातचीत के दौरान दिशा-निर्देश भी देता रहा है.

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