नई दिल्ली : चीन ने अफगानिस्तान की धरती में छिपे खजाने की खोज शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि इसके लिए चीन की तकरीबन 25 कंपनियां अफगानिस्तान पहुंच गई हैं और दुर्लभ खजाने की खोज में लग गई है. ये कंपनियां मुख्य तौर पर दुर्लभ धातु लिथियम की खोज करेंगी.
चीनी मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' की एक हालिया रिपोर्ट में चीन अरब आर्थिक और व्यापार संवर्धन समिति के एक अधिकारी गाओ सुसु के हवाले से कहा गया है कि पांच चीनी कंपनियों ने पहले ही अफगानिस्तान में प्रतिनिधियों और अधिकारियों को तैनात कर दिया है, जबकि 20 से अधिक अन्य चीन की सरकारी और निजी कंपनियों ने लिथियम के खनन में रुचि दिखाई है.
रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने पांच कंपनियों के अधिकारियों के लिए अफगानिस्तान में दुर्लभ धातु के खनन के लिए विशेष वीजा जारी किया है. अफगानिस्तान को 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के विशाल लिथियम भंडार के लिए जाना जाता है, जो काफी हद तक गजनी प्रांत में केंद्रित है. दुनिया में सबसे ज्यादा लिथियम दक्षिण अमेरिका के चिली, बोलीविया और अर्जेंटीना में पाया जाता है. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में लिथियम पाया जाता है. लेकिन चीन दुनिया की अधिकांश लिथियम-प्रसंस्करण सुविधाओं को नियंत्रित करता है.
लिथियम का इस्तेमाल कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा, सौर पैनल, इलेक्ट्रिक कार, उपग्रह, लेजर, लड़ाकू विमान के इंजन, इमर्जिंग इनर्जी, वैज्ञानिक और सैन्य प्रौद्योगिकियों में किया जाता है. लिथियम का इस्तेमाल मुख्यत इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बैटरी बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इस धातु का इस्तेमाल लैपटॉप और सेल फोन की बैटरी के साथ-साथ कांच और सिरेमिक उद्योग में भी किया जाता है. लिथियम की कीमत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया ईवी क्रांति की कगार पर खड़ी है. ऐसे में लिथियम जैसी खनिजों की भारी मौजूदगी अफगानिस्तान की किस्मत बदल सकती है.
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युद्ध से तबाह हो चुके अफगानिस्तान में सुरक्षा पहलू को लेकर काफी आशंकाएं हैं, जिसमें सत्ताधारी तालिबान शासन अस्थिरता और अनिश्चितता की तस्वीर पेश कर रहा है. बताया जा रहा है कि अफगानिस्तान में भोजन की कमी हो गई है और तालिबान को देश चलाने के लिए पैसे की आवश्यकता है. इसके बाद भी इस्लामिक स्टेट या 'दाएश' जैसे कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी समूह अपनी हिंसक गतिविधियां जारी रखी हैं.