हैदराबाद : 26 जुलाई 2021, कर्नाटक की राजनीति ने एक और करवट ली. मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ( B.S. yediyurappa) ने 10 दिनों से चल रही अटकलों को इस्तीफा देकर विराम दे दिया. 78 साल के इस लिंगायत नेता की विदाई की पूरी कहानी जानने से पहले 15 मई 2018 से 19 मई 2018 के बीच कर्नाटक में जो हुआ था, उसे याद करना होगा.
15 मई 2018, कर्नाटक विधानसभा के नतीजे आए थे. किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. भारतीय जनता पार्टी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 78 सीटें और जनता दल (सेक्युलर) को 37 सीटें मिलीं थीं. जोड़-तोड़ की खबरों के बीच 17 मई 2018 को बुकानाकेरे सिद्दलिंगप्पा येदियुरप्पा यानी बी. एस. येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली थी.
स्पष्ट बहुमत नहीं होने के कारण 19 मई को 'येदि' ने विधानसभा में इमोशनल स्पीच देने के बाद इस्तीफा दे दिया था. तब कांग्रेस के सपोर्ट से एच डी कुमारस्वामी ने सरकार बनाई थी. मगर एक साल बाद 2019 में कांग्रेस के 14 और जेडी (एस) के तीन विधायक बागी हो गए और कुमारस्वामी की सरकार चली गई. तब चर्चा चली थी कि येदियुरप्पा के नेतृत्व में ही बीजेपी ने ऑपरेशन लोटस (Operetion Lotus) चलाया और दोबारा सरकार बनाई.
येदियुरप्पा ने 26 जुलाई 2019 को चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के कारण दिसंबर में उपचुनाव हुए और बीजेपी ने 12 सीटें जीतकर विधानसभा में अपना बहुमत पक्का कर लिया. कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीटें हैं और बहुमत के लिए 113 सीटों पर जीत सुनिश्चित करना जरूरी है. राजनीतिक हलकों में येदियुरप्पा 'बीएसवाई' (BSY) और 'येदि'( Yedi) के नाम से भी मशहूर हैं. 'बीएसवाई' उस दौर में मुख्यमंत्री बने थे, जब उनके उम्र की नेताओं को पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में भेजा जा रहा था.
येदियुरप्पा को हाईकमान ने क्यों बनाया था 2018 में सीएम ?: तो क्या 2019 में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी की मजबूरी थी?. कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा का कद काफी बड़ा है. येदियुरप्पा ने 2008 में अकेले अपने दम पर कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता में ला दिया था. दरअसल, 2019 में 78 वर्षीय येदियुरप्पा का विकल्प फिलहाल भाजपा के पास मौजूद नहीं था. तब बीजेपी को ऐसी नेतृत्व की जरूरत थी, जो राजनीतिक उठापटक को बेहतर तरीके से हैंडल कर सके. येदियुरप्पा ऑपरेशन लोटस (Operetion Lotus) की कामयाबी से अपना दबदबा साबित कर चुके थे.
महंगी पड़ सकती है लिंगायत मुख्यमंत्री की रवानगी : येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं और राज्य में सबसे ज्यादा करीब 17 पर्सेंट आबादी इसी समुदाय की है. इसकी ताकत यह है कि अब तक कर्नाटक के 8 मुख्यमंत्री इसी समुदाय से आते हैं और करीब 120 विधानसभा सीटों पर इस जाति का प्रभाव है. लिंगायत समुदाय को बीजेपी और येदियुरप्पा का पक्का समर्थक माना जाता है.
जब येदि को हटाने की चर्चा चल रही थी, तब लिंगायत समुदाय के लिंगेश्वर मंदिर के मठाधीश शरनबासवलिंगा ने कहा कि कर्नाटक में चुनाव कैसे जीते जाते कैसे जीते जाते हैं, यह दिल्ली के लोगों को नहीं पता है. राज्य में येदियुरप्पा ने भाजपा की सरकार बनाई है इसलिए अब उन्हें हटाना भाजपा को बड़े कष्ट में डाल सकता है. बीजेपी 'बीएसवाई' के बिना 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ी थी. तब पार्टी 110 सीटों से सिमटकर 40 पर आ गई थी. हालांकि तब बी एस येदियुरप्पा के कर्नाटक जनता पक्ष को भी सिर्फ 8 सीटों पर कामयाबी मिलीं थीं.
येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पक्ष क्यों बनाया था ? : 'येदि' दूसरी बार 30 मई 2008 को कर्नाटक के सीएम बने थे. उनकी सरकार तीन साल तक बिना विवाद की चलती रही. अचानक 2011 में लोकायुक्त ने प्रदेश में अवैध खनन मामले की जांच शुरू की, इसमें येदियुरप्पा का भी नाम आया. पार्टी हाईकमान ने उनसे इस्तीफा देने को कहा. उस समय बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी थे और पार्टी में लाल कृष्ण आडवाणी की राय मायने रखती थी.
लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी बीजेपी किसी भी स्तर से विवाद से नाता नहीं रखना चाहती थी, इसलिए तब येदियुरप्पा पर इस्तीफे का दबाव बनाया गया. येदियुरप्पा 31 जुलाई 2011 को भाजपा से इस्तीफा दे दिया और 30 नवंबर 2012 को कर्नाटक जनता पक्ष नाम से अपनी पार्टी बनाई थी. पहले बता चुके हैं कि इससे बीजेपी और 'येदि' दोनों को नुकसान हुआ.
पीएम मोदी के खास सिपहसलार में शुमार थे 'BSY ' : 2014 के आम चुनाव से पहले जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने तो उन्होंने येदियुरप्पा को वापस बीजेपी में शामिल कराने की कवायद शुरू कर दी. 2 जनवरी 2014 को कर्नाटक के क्षत्रप ने अपनी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष का विलय बीजेपी में कर दिया. वह शिमोगा से लोकसभा चुनाव भी लड़े और 3 लाख 63 हजार 305 वोटों से विजयी हुए. साथ ही कर्नाटक से बीजेपी को 12 सीटों पर कामयाबी दिलाई थी. इस जीत के बाद 'येदि' नरेंद्र मोदी के खास सिपाहसलार बन गए.
सवाल यह है कि 2021 में अचानक ऐसा क्या हुआ, जिससे बी एस येदियुरप्पा को गद्दी छोड़नी पड़ी. 2023 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होंगे. ऐसे में बीजेपी नेता बदलने का रिस्क क्यों ले रही है? जबकि नए मुख्यमंत्री को भी येदियुरप्पा के समर्थन की जरूरत होगी.
- बीजेपी में जिनकी उम्र 75 साल की है, वे सभी मार्गदर्शक मंडल में जा चुके हैं. 78 साल के येदियुरप्पा इसमें अपवाद थे
- पार्टी की स्टेट यूनिट में कई नेता येदियुरप्पा की कार्यशैली से नाखुश थे, खासकर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बी. एल. संतोष.
- राज्य में चर्चा होने लगी थी कि 'बीएसवाई' (BSY) का बेटा बी. वाई. विजेंद्र कामकाज में हस्तक्षेप कर रहा है. उनके बेटे पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने लगे थे.
- 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी एक नया लीडरशिप खड़ा करना चाहती है. ऩए सीएम को भी खुद को प्रूव करने के लिए वक्त देना होगा.
येदि के बारे में, जो आप जानना चाहेंगे
- 2007 में ज्योतिष की सलाह पर येदियुरप्पा ने अपने नाम से एक लेटर d लगाया था. पहले उनका नाम में Yediyurappa था, जिसे उन्होंने Yeddyurappa कर दिया था. हालांकि 2019 में फिर से वह पुराने वाले Yediyurappa बन गए.
- राजनीति में आने से पहले येदियुरप्पा सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट में प्रथम श्रेणी के क्लर्क थे. 1967 में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और वीरभद्र शास्त्री के शंकर राइस मिल में क्लर्क बन गए.
- वाई एस येदियुरप्पा के दो बेटे और तीन बेटियां हैं. पहले बेटे का नाम है. राघवेंद्र और दूसरे का नाम है वी वाई विजेंद्र. उनकी बेटियों का नाम अरुणा देवी, पद्मा देवी और उमा देवी है.
- खनन घोटाले में येदियुरप्पा को 23 दिन जेल में भी रहना पड़ा. लोकायुक्त कोर्ट के आदेश पर उन्हें 15 अक्टूबर से 8 नवंबर के बीच जेल में रहे.
- वह दो बार कोविड-19 की चपेट में आए. हर बार उन्होंने कोविड को हराया
अब क्या होगा : राजनीतिक सूत्रों में चर्चा है कि बी एस येदियुरप्पा को राज्यपाल बनने का प्रस्ताव दिया गया है. जिसे वह ठुकरा चुके हैं. बदले हालात में अगर वह कर्नाटक में जमे रहते हैं तो राजनीतिक खेल का इंतजार करें.