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कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से पूछा- जेलों में कोरोना की रोकथाम के लिए क्या किया?

बम्बई उच्च न्यायालय ने जेलों में संक्रमण को नियंत्रित करने के तरीकों के बारे में महाराष्ट्र सरकार से कई सवाल किये. पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वह बृहस्पतिवार को सुनवाई की अगली तारीख तक उनके प्रश्नों का उत्तर दे और संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए अपने सुझाव भी दे.

बम्बई उच्च न्यायालय
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Published : Apr 20, 2021, 4:35 PM IST

मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार ने बम्बई उच्च न्यायालय को सूचित किया कि राज्य की जेलों में 23,127 कैदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में 47 जेलों में 35,124 कैदी बंद हैं. राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत को बताया कि 18 अप्रैल की स्थिति के अनुसार, राज्य में 188 कैदी जांच में कोविड-​​19 से संक्रमित पाये गए हैं.

कुंभकोनी ने यह बात मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ के समक्ष कही. पीठ ने राज्य की जेलों में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बारे में समाचार पत्रों में आयी खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था और इस मुद्दे को एक आपराधिक जनहित याचिका में शामिल किया था.

पढ़ें- यूपी के 5 शहरों में लॉकडाउन लगाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर SC ने लगाई अंतरिम रोक

पीठ ने जेलों में संक्रमण को नियंत्रित करने के तरीकों के बारे में राज्य से मंगलवार को कई सवाल किये. अदालत ने पूछा कि क्या जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए बड़ी संख्या में कैदियों को आपातकालीन पैरोल दी जा सकती है और क्या 45 वर्ष से अधिक उम्र के कैदियों को टीका लगाया जा सकता है.

पीठ ने राज्य से यह भी पूछा कि क्या वह यह सुनिश्चित कर सकता है कि जिन व्यक्तियों को अभी गिरफ्तार किया जा रहा है, उनकी कोविड-19 जांच की जाए और यदि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आये तो ही उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए.

पीठ ने साथ ही यह भी जानना चाहा कि क्या 45 साल से अधिक उम्र के कैदियों को टीका लगाना राज्य के लिए संभव होगा. पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वह बृहस्पतिवार को सुनवाई की अगली तारीख तक उनके प्रश्नों का उत्तर दे और संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए अपने सुझाव भी दे.

पढ़ें-2019 कार दुर्घटना मामला: कोर्ट ने व्यवसायी के बेटे को जमानत देने से किया इनकार

अदालत ने पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और उसके वकील मिहिर देसाई को भी अदालत की सहायता के लिए जनहित याचिका में पक्षकार के तौर पर शामिल करने की अनुमति दी.

पीयूसीएल ने पिछले साल जेल में कैदियों और कर्मचारियों के बीच कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी. बम्बई उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने उस समय जेलों के लिए दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया जारी की थी.

महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि पात्र कैदियों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम पहले से ही चल रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले साल महामारी के कारण जमानत पर या आपातकालीन पैरोल पर रिहा किए गए कैदी अभी भी बाहर हैं. उन्होंने कहा कि राज्य फिर से आपातकालीन पैरोल पर पात्र कैदियों को रिहा करना शुरू करने वाला है.

पढ़ें-चिकित्सक के लिखने के एक घंटे के अंदर जीवन रक्षक दवाएं मुहैया कराए सरकार :कोर्ट

कुंभकोनी ने कहा कि पिछले साल राज्य ने मौजूदा जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में 36 अस्थायी जेलों का निर्माण किया था और स्थिति में सुधार होने पर उन्हें भंग कर दिया गया था.

उन्होंने कहा कि हालांकि, राज्य अब अस्थायी जेलों को वापस हासिल कर रहा है और उसने 14 का अधिग्रहण किया है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा राज्य ने फैसला किया है कि कोविड​​-19 जांच के बिना किसी नए कैदी को जेल में बंद नहीं किया जाएगा.

अदालत ने राज्य को यह भी सूचित करने का निर्देश दिया कि क्या 14 अप्रैल के बाद से अपराध दर में कोई कमी आई है, जब मुख्यमंत्री द्वारा कड़े कोविड​​-19 दिशानिर्देशों की घोषणा की गई थी.

मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार ने बम्बई उच्च न्यायालय को सूचित किया कि राज्य की जेलों में 23,127 कैदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में 47 जेलों में 35,124 कैदी बंद हैं. राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत को बताया कि 18 अप्रैल की स्थिति के अनुसार, राज्य में 188 कैदी जांच में कोविड-​​19 से संक्रमित पाये गए हैं.

कुंभकोनी ने यह बात मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ के समक्ष कही. पीठ ने राज्य की जेलों में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बारे में समाचार पत्रों में आयी खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था और इस मुद्दे को एक आपराधिक जनहित याचिका में शामिल किया था.

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पीठ ने जेलों में संक्रमण को नियंत्रित करने के तरीकों के बारे में राज्य से मंगलवार को कई सवाल किये. अदालत ने पूछा कि क्या जेलों में कैदियों की संख्या कम करने के लिए बड़ी संख्या में कैदियों को आपातकालीन पैरोल दी जा सकती है और क्या 45 वर्ष से अधिक उम्र के कैदियों को टीका लगाया जा सकता है.

पीठ ने राज्य से यह भी पूछा कि क्या वह यह सुनिश्चित कर सकता है कि जिन व्यक्तियों को अभी गिरफ्तार किया जा रहा है, उनकी कोविड-19 जांच की जाए और यदि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आये तो ही उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए.

पीठ ने साथ ही यह भी जानना चाहा कि क्या 45 साल से अधिक उम्र के कैदियों को टीका लगाना राज्य के लिए संभव होगा. पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वह बृहस्पतिवार को सुनवाई की अगली तारीख तक उनके प्रश्नों का उत्तर दे और संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए अपने सुझाव भी दे.

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अदालत ने पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और उसके वकील मिहिर देसाई को भी अदालत की सहायता के लिए जनहित याचिका में पक्षकार के तौर पर शामिल करने की अनुमति दी.

पीयूसीएल ने पिछले साल जेल में कैदियों और कर्मचारियों के बीच कोरोना वायरस के प्रसार को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी. बम्बई उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने उस समय जेलों के लिए दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया जारी की थी.

महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि पात्र कैदियों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम पहले से ही चल रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले साल महामारी के कारण जमानत पर या आपातकालीन पैरोल पर रिहा किए गए कैदी अभी भी बाहर हैं. उन्होंने कहा कि राज्य फिर से आपातकालीन पैरोल पर पात्र कैदियों को रिहा करना शुरू करने वाला है.

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कुंभकोनी ने कहा कि पिछले साल राज्य ने मौजूदा जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों में 36 अस्थायी जेलों का निर्माण किया था और स्थिति में सुधार होने पर उन्हें भंग कर दिया गया था.

उन्होंने कहा कि हालांकि, राज्य अब अस्थायी जेलों को वापस हासिल कर रहा है और उसने 14 का अधिग्रहण किया है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा राज्य ने फैसला किया है कि कोविड​​-19 जांच के बिना किसी नए कैदी को जेल में बंद नहीं किया जाएगा.

अदालत ने राज्य को यह भी सूचित करने का निर्देश दिया कि क्या 14 अप्रैल के बाद से अपराध दर में कोई कमी आई है, जब मुख्यमंत्री द्वारा कड़े कोविड​​-19 दिशानिर्देशों की घोषणा की गई थी.

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