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निजीकरण के विरोध में भारतीय मजदूर संघ का देशव्यापी आंदोलन शुरू - मजदूर संघ के देशव्यापी आंदोलन

भारतीय मजदूर संघ ने सरकार के निजीकरण की नीति के विरोध में अब बड़े आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में सरकार ने विनिवेश के माध्यम से 1.75 लाख करोड़ रुपये राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा है. विपक्ष पहले ही इसका विरोध कर रही है, लेकिन भाजपा सरकार के करीब रहने वाली आरएसएस की इकाई ने भी इसका मुखरता से विरोध करते हुए आंदोलन की शुरुआत कर दी है.

भारतीय मजदूर संघ का देशव्यापी आंदोलन शुरू
भारतीय मजदूर संघ का देशव्यापी आंदोलन शुरू
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Published : Mar 15, 2021, 5:43 PM IST

नई दिल्ली : आरएसएस की ट्रेड विंग भारतीय मजदूर संघ ने मोदी सरकार के द्वारा अपनाई जा रही विनिवेश और निजीकरण की नीति के विरोध में देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत कर दी है. 15 और 16 मार्च को देश भर में मजदूर संघ से जुड़े 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी हड़ताल पर रहेंगे.

मजदूर संघ ने चरणबद्ध तरीके से इस आंदोलन को देश भर में चलाने की घोषणा की थी, जिसमें कहा गया था कि 15 मार्च से शुरू होने वाला आंदोलन नवंबर माह तक चलेगा. दरअसल, बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के द्वारा दो दिवसीय हड़ताल मजदूर संघ के देशव्यापी आंदोलन का एक हिस्सा मात्र है.

संघ की मजदूर इकाई अब मोदी सरकार के निजीकरण और विनिवेश के अलावा नये श्रम कानूनों के मुद्दे पर भी घेरने की तैयारी कर चुकी है. नये लेबर कोड में कुछ बातों का संघ ने स्वागत किया तो, कुछ प्रावधानों पर मजदूर संघ और सरकार के बीच अंतर है और भारतीय मजदूर संघ द्वारा घोषित देशव्यापी आंदोलन में इनका विरोध करने के साथ साथ लोगों को नये कानून, उनके फायदे नुकसान और निजीकरण के बारे में जागरूक भी किया जाएगा, जिसके लिये सम्मेलन आयोजित होंगे.

बता दें कि इन मुद्दों को लेकर मजदूर संघ का नेतृत्व लगातार सरकार से संवाद भी करता रहा है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा हाल में पेश किए गए बजट के बाद मजदूर संघ का कहना है कि वित्त मंत्री ने बजट में बैंकों के निजीकरण का संकेत दिया है जो ठीक नहीं है. इतना ही नहीं सरकार बड़े स्तर पर सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य इकाईयों को निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने की तैयारी में जुटी है.

मई में इकाइयों के मुताबिक वर्कशॉप

स्वयं प्रधानमंत्री मोदी भी यह कह चुके हैं कि सरकार का काम व्यापार चलाना नहीं है. भारतीय मजदूर संघ इसका विरोध कर रही है और अब देशव्यापी आंदोलन से सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत लोगों को लामबंद करने की शुरुआत भी कर दी है. मजदूर संघ के द्वारा तय कार्यक्रम के पहले चरण में 15 मार्च से 14 अप्रैल तक अलग अलग क्षेत्रों के लिये बैठकों का आयोजन होगा, जिसके बाद मई में इकाइयों के मुताबिक वर्कशॉप का आयोजन किया जाएगा. वहीं जून महीने में संघ जागरूकता अभियान चलाएगा.

भारतीय मजदूर संघ से जुड़े अलग-अलग इकाइयों के संगठन 15 जुलाई को विरोध प्रदर्शन करेंगे. सितंबर माह में 20 से 30 सितंबर के बीच राज्य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किए जायेंगे. आंदोलन के अंतिम चरण में 23 नवंबर को भारतीय मजदूर संघ से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के सभी कर्मचारी व अधिकारी देश भर में सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कॉरपोरेट ऑफिस के बाहर विरोध-प्रदर्शन करेंगे.

बैंकों के निजीकरण का विरोध क्यों कर रहा है संघ?
भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है, लेकिन बैंकों के निजीकरण से सरकार के इस सपने को पूरा होने में निजी बैंकों का उतना योगदान नहीं होगा, जितना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का होगा. बैंकों के राष्ट्रीकरण में भी प्रमुख कारण निजी बैंकों का देश की प्रगति में योगदान न करना था.

बैंकों के निजीकरण करने से निजी बैंक अपने घराने के उद्योगों के लिये पब्लिक के पैसे का इस्तेमाल करेंगे. इससे रोजगार के साधनों में भी कमी आएगी और आरक्षण की सुविधा भी बंद हो जाएगी. मजदूर संघ का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत सुधारने के लिये इनको सदृढ़ करने की जरूरत है या फिर सरकार को कोई और रास्ता निकालना चाहिये.

पेंशनधारी भी उतरे आंदोलन में
भारतीय मजदूर संघ की ऑल पेंशनर्स कोआर्डिनेशन कमेटी ने भी 15 मार्च से देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत कर दी है जो 20 मार्च तक चलेगा. इसमें सभी कार्यकर्ताओं को देश के अलग अलग राज्यों में जिला मुख्यालय पर पेंशनर्स की मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपने के लिये कहा गया है. मजदूर संघ की पेंशनर्स के लिये मांगों में पेंशन को महंगाई दर से जोड़ने, पेंशन को आखिरी वेतन का आधा होना अनिवार्य, बुजुर्गों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना इत्यादि शामिल है.

वामपंथी मजदूर संगठनों ने भी की आंदोलन की शुरुआत
मोदी सरकार के निजीकरण नीति के विरोध में सीटू (सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस) 15 मार्च को 'निजीकरण विरोध दिवस' के रूप में मना रही है. देश भर में अलग अलग स्थानों पर छोटे समूह में सीटू से जुड़े कार्यकर्ता निजीकरण के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं. तीन कृषि कानून के विरोध में गत तीन माह से ज्यादा से दिल्ली के बॉर्डरों पर धरना-प्रदर्शन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने भी वामपंथी ट्रेड यूनियनों के आंदोलन का समर्थन किया है.

बैंक निजीकरण के विरोध में भी सीटू ने 15 मार्च से दो दिवसीय हड़ताल का आवाह्न किया है. इस तरह से बैंकों व अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण के मुद्दे पर भारतीय मजदूर संघ और वामपंथी मजदूर संघ एक मत दिख रहे हैं और दोनों का आंदोलन भी एक ही समय पर शुरू हो रहा है.

तीन महीने से ज्यादा से चल रहे किसान आंदोलन के बाद अब देश मे मजदूरों का आंदोलन भी आने वाले दिनों में जोर पकड़ता दिखेगा. आम तौर पर सरकार से सामंजस्य और संपर्क में रहने वाले आरएसएस की इकाइयों ने भी मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में आंदोलन की शुरुआत कर दी है.

नई दिल्ली : आरएसएस की ट्रेड विंग भारतीय मजदूर संघ ने मोदी सरकार के द्वारा अपनाई जा रही विनिवेश और निजीकरण की नीति के विरोध में देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत कर दी है. 15 और 16 मार्च को देश भर में मजदूर संघ से जुड़े 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी हड़ताल पर रहेंगे.

मजदूर संघ ने चरणबद्ध तरीके से इस आंदोलन को देश भर में चलाने की घोषणा की थी, जिसमें कहा गया था कि 15 मार्च से शुरू होने वाला आंदोलन नवंबर माह तक चलेगा. दरअसल, बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों के द्वारा दो दिवसीय हड़ताल मजदूर संघ के देशव्यापी आंदोलन का एक हिस्सा मात्र है.

संघ की मजदूर इकाई अब मोदी सरकार के निजीकरण और विनिवेश के अलावा नये श्रम कानूनों के मुद्दे पर भी घेरने की तैयारी कर चुकी है. नये लेबर कोड में कुछ बातों का संघ ने स्वागत किया तो, कुछ प्रावधानों पर मजदूर संघ और सरकार के बीच अंतर है और भारतीय मजदूर संघ द्वारा घोषित देशव्यापी आंदोलन में इनका विरोध करने के साथ साथ लोगों को नये कानून, उनके फायदे नुकसान और निजीकरण के बारे में जागरूक भी किया जाएगा, जिसके लिये सम्मेलन आयोजित होंगे.

बता दें कि इन मुद्दों को लेकर मजदूर संघ का नेतृत्व लगातार सरकार से संवाद भी करता रहा है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा हाल में पेश किए गए बजट के बाद मजदूर संघ का कहना है कि वित्त मंत्री ने बजट में बैंकों के निजीकरण का संकेत दिया है जो ठीक नहीं है. इतना ही नहीं सरकार बड़े स्तर पर सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य इकाईयों को निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने की तैयारी में जुटी है.

मई में इकाइयों के मुताबिक वर्कशॉप

स्वयं प्रधानमंत्री मोदी भी यह कह चुके हैं कि सरकार का काम व्यापार चलाना नहीं है. भारतीय मजदूर संघ इसका विरोध कर रही है और अब देशव्यापी आंदोलन से सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत लोगों को लामबंद करने की शुरुआत भी कर दी है. मजदूर संघ के द्वारा तय कार्यक्रम के पहले चरण में 15 मार्च से 14 अप्रैल तक अलग अलग क्षेत्रों के लिये बैठकों का आयोजन होगा, जिसके बाद मई में इकाइयों के मुताबिक वर्कशॉप का आयोजन किया जाएगा. वहीं जून महीने में संघ जागरूकता अभियान चलाएगा.

भारतीय मजदूर संघ से जुड़े अलग-अलग इकाइयों के संगठन 15 जुलाई को विरोध प्रदर्शन करेंगे. सितंबर माह में 20 से 30 सितंबर के बीच राज्य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किए जायेंगे. आंदोलन के अंतिम चरण में 23 नवंबर को भारतीय मजदूर संघ से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के सभी कर्मचारी व अधिकारी देश भर में सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कॉरपोरेट ऑफिस के बाहर विरोध-प्रदर्शन करेंगे.

बैंकों के निजीकरण का विरोध क्यों कर रहा है संघ?
भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है, लेकिन बैंकों के निजीकरण से सरकार के इस सपने को पूरा होने में निजी बैंकों का उतना योगदान नहीं होगा, जितना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का होगा. बैंकों के राष्ट्रीकरण में भी प्रमुख कारण निजी बैंकों का देश की प्रगति में योगदान न करना था.

बैंकों के निजीकरण करने से निजी बैंक अपने घराने के उद्योगों के लिये पब्लिक के पैसे का इस्तेमाल करेंगे. इससे रोजगार के साधनों में भी कमी आएगी और आरक्षण की सुविधा भी बंद हो जाएगी. मजदूर संघ का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत सुधारने के लिये इनको सदृढ़ करने की जरूरत है या फिर सरकार को कोई और रास्ता निकालना चाहिये.

पेंशनधारी भी उतरे आंदोलन में
भारतीय मजदूर संघ की ऑल पेंशनर्स कोआर्डिनेशन कमेटी ने भी 15 मार्च से देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत कर दी है जो 20 मार्च तक चलेगा. इसमें सभी कार्यकर्ताओं को देश के अलग अलग राज्यों में जिला मुख्यालय पर पेंशनर्स की मांगों से संबंधित ज्ञापन सौंपने के लिये कहा गया है. मजदूर संघ की पेंशनर्स के लिये मांगों में पेंशन को महंगाई दर से जोड़ने, पेंशन को आखिरी वेतन का आधा होना अनिवार्य, बुजुर्गों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना इत्यादि शामिल है.

वामपंथी मजदूर संगठनों ने भी की आंदोलन की शुरुआत
मोदी सरकार के निजीकरण नीति के विरोध में सीटू (सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस) 15 मार्च को 'निजीकरण विरोध दिवस' के रूप में मना रही है. देश भर में अलग अलग स्थानों पर छोटे समूह में सीटू से जुड़े कार्यकर्ता निजीकरण के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं. तीन कृषि कानून के विरोध में गत तीन माह से ज्यादा से दिल्ली के बॉर्डरों पर धरना-प्रदर्शन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने भी वामपंथी ट्रेड यूनियनों के आंदोलन का समर्थन किया है.

बैंक निजीकरण के विरोध में भी सीटू ने 15 मार्च से दो दिवसीय हड़ताल का आवाह्न किया है. इस तरह से बैंकों व अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निजीकरण के मुद्दे पर भारतीय मजदूर संघ और वामपंथी मजदूर संघ एक मत दिख रहे हैं और दोनों का आंदोलन भी एक ही समय पर शुरू हो रहा है.

तीन महीने से ज्यादा से चल रहे किसान आंदोलन के बाद अब देश मे मजदूरों का आंदोलन भी आने वाले दिनों में जोर पकड़ता दिखेगा. आम तौर पर सरकार से सामंजस्य और संपर्क में रहने वाले आरएसएस की इकाइयों ने भी मोदी सरकार की नीतियों के विरोध में आंदोलन की शुरुआत कर दी है.

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