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पश्चिम बंगाल की दिव्यांग नादिया और थैलेसीमिया से पीड़ित इंद्राणी छात्रों के लिए प्रेरणा स्रोत

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Published : Nov 8, 2022, 8:36 AM IST

पश्चिम बंगाल में नदिया के शांतिपुर की दिव्यांग पियाशा ने यूजीसी नेट में 99प्रतिशत स्कोर हासिल किया. वहीं, मेदिनीपुर के बिधाननगर निवासी इंद्राणी मेडिकल की छात्रा है. वह थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की जान बचाने के लिए काम करना चाहती है.

Blessed specially-abled Nadia girl Piyasha scores 99% in UGC-NET
पश्चिम बंगाल में दिव्यांग नादिया और थैलेसीमिया से पीड़ित इंद्राणी छात्रों के लिए प्रेरणा स्रोत

शांतिपुर: 'जहां चाह वहां राह' कहावत यहां बिल्कुल फिट बैठती है. नदिया के शांतिपुर की 3 फुट लंबी लड़की पियाशा महलदार की इच्छाशक्ति ही है जिसके बल पर उसने यूजीसी-नेट परीक्षा 2022 में 99.31 पर्सेंटाइल हासिल किया. वह बचपन से शारीरिक रूप से अक्षम है. अपने आप ज्यादा नहीं चल सकती है. लेकिन छोटी उम्र से ही पढ़ाई में उसकी रुचि काबिलैगौर है.

पियाशा ने माध्यमिक विद्यालय से लेकर कई महत्वपूर्ण परीक्षाएं अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण कीं. वह सितंबर में कल्याणी के एक परीक्षा केंद्र में यूजीसी-नेट की परीक्षा में शामिल हुई थी. उसे लेटे-लेटे कंप्यूटर के जरिए परीक्षा देनी थी . लेकिन उसने 99.31 प्रतिशत अंक लाकर सबको चौंका दिया. उसकी सफलता प्रकाश में आते ही पूरे शांतिपुर में खुशी फैल गई और चारों ओर से वाहवाही मिलने लगी.

बंगाली विभाग का छात्र पियासा पीएचडी करना चाहती है और सहायक प्रोफेसर बनने की इच्छा रखती है. यूजीसी-नेट परीक्षा 23 सितंबर को आयोजित की गई थी और कल परिणाम आ गए. पियाशा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा, 'मुझे खुशी है कि मैंने जूनियर रिसर्च फेलो पद के लिए अर्हता प्राप्त की है. मैं अब पीएचडी करना चाहती हूं क्योंकि मैं किसी भी विश्वविद्यालय से ऐसा करने के योग्य हूं.

मैं अब सहायक प्रोफेसर पदों के लिए आवेदन कर सकूंगी.' पियाशा के कल्याणी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का अवसर मिलने की उम्मीद है. पियाशा ने कहा, 'यह सबसे अच्छा है अगर मुझे कल्याणी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का अवसर मिले क्योंकि यह घर के करीब है.'

थैलेसीमिया से पीड़ित लड़की कर रही मेडिकल की पढ़ाई: बंगाल के मेदिनीपुर के बिधाननगर निवासी इंद्राणी विश्वास मेडिकल की छात्रा है. वह खुद थैलेसीमिया से पीड़ित हैं. स्वस्थ रहने के लिए इंद्राणी को महीने में कम से कम दो बार रक्त संचार करवाना पड़ता है. अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के बावजूद वह दूसरों के लिए कुछ करना चाहती है.

इसलिए, कोलकाता के नील रतन सरकारी मेडिकल कॉलेज की छात्रा इंद्राणी विश्वास भविष्य में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की जान बचाने के लिए काम करना चाहती है. इंद्राणी ने इस साल मेडिकल में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) पास किया है. इंद्राणी एनआरएस मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन की पढ़ाई कर रही है और भविष्य में हेमटोलॉजी और ब्लड कैंसर की पढ़ाई करना चाहती है.

चूंकि वह खुद थैलेसीमिया से पीड़ित है, इसलिए इंद्राणी का लक्ष्य उन लोगों के साथ खड़ा होना है जो इस समस्या से पीड़ित हैं. जन्म के 7 महीने बाद, इंद्राणी के पिता अभिजीत विश्वास और मां तनुजा विश्वास को पता चला कि उनकी बेटी थैलेसीमिया से पीड़ित है. उसके बाद से उनके लिए जिंदगी की जंग आसान नहीं रही. पहले महीने में एक बार खून चढ़ाना पड़ता था लेकिन फिलहाल इंद्राणी को महीने में दो बार खून लेना पड़ रहा है.

हालांकि, सबसे बुरा दौर महामारी के दौरान आया. उस समय लॉकडाउन के दौरान रक्त की आपूर्ति कम होने के कारण इंद्राणी मुश्किल में थी. स्थिति से बाहर निकलने के बाद वह वर्तमान में स्वस्थ है. इंद्राणी बिस्वास का जन्म स्थान बांकुरा जिले का निबरा गांव है. वहां उसने गर्गरिया सुभाष स्कूल से सेकेंडरी स्कूल पास किया.

ये भी पढ़ें- बंगाल विभाजन की सुगबुगाहट : भाजपा के शीर्ष नेताओं ने की अनंत महाराज से मुलाकात

2019 में, उसने मिदनापुर शहर के निर्मल हृदय आश्रम स्कूल से हायर सेकेंडरी पास की. हालाँकि, उसकी राह कभी आसान नहीं थी. उसकी लाइलाज बीमारी ने बार-बार उसके डॉक्टर बनने के संघर्ष में बाधा डाली है. कई बार ऐसा भी होता था जब पढ़ाई छोड़ना एक पसंदीदा विकल्प होता था. लेकिन, इंद्राणी ने इसका मुकाबला किया और अब अपने सपनों को साकार करने का वक्त आ गया है. जीवन की इस लड़ाई में उसके साथ हमेशा उसके माता-पिता और भाई खड़े हैं. आज इंद्राणी कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो उन्हें पसंद करते हैं और ऐसी घातक बीमारियों के बावजूद स्वस्थ जीवन जी रही है.

शांतिपुर: 'जहां चाह वहां राह' कहावत यहां बिल्कुल फिट बैठती है. नदिया के शांतिपुर की 3 फुट लंबी लड़की पियाशा महलदार की इच्छाशक्ति ही है जिसके बल पर उसने यूजीसी-नेट परीक्षा 2022 में 99.31 पर्सेंटाइल हासिल किया. वह बचपन से शारीरिक रूप से अक्षम है. अपने आप ज्यादा नहीं चल सकती है. लेकिन छोटी उम्र से ही पढ़ाई में उसकी रुचि काबिलैगौर है.

पियाशा ने माध्यमिक विद्यालय से लेकर कई महत्वपूर्ण परीक्षाएं अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण कीं. वह सितंबर में कल्याणी के एक परीक्षा केंद्र में यूजीसी-नेट की परीक्षा में शामिल हुई थी. उसे लेटे-लेटे कंप्यूटर के जरिए परीक्षा देनी थी . लेकिन उसने 99.31 प्रतिशत अंक लाकर सबको चौंका दिया. उसकी सफलता प्रकाश में आते ही पूरे शांतिपुर में खुशी फैल गई और चारों ओर से वाहवाही मिलने लगी.

बंगाली विभाग का छात्र पियासा पीएचडी करना चाहती है और सहायक प्रोफेसर बनने की इच्छा रखती है. यूजीसी-नेट परीक्षा 23 सितंबर को आयोजित की गई थी और कल परिणाम आ गए. पियाशा ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा, 'मुझे खुशी है कि मैंने जूनियर रिसर्च फेलो पद के लिए अर्हता प्राप्त की है. मैं अब पीएचडी करना चाहती हूं क्योंकि मैं किसी भी विश्वविद्यालय से ऐसा करने के योग्य हूं.

मैं अब सहायक प्रोफेसर पदों के लिए आवेदन कर सकूंगी.' पियाशा के कल्याणी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का अवसर मिलने की उम्मीद है. पियाशा ने कहा, 'यह सबसे अच्छा है अगर मुझे कल्याणी विश्वविद्यालय से पीएचडी करने का अवसर मिले क्योंकि यह घर के करीब है.'

थैलेसीमिया से पीड़ित लड़की कर रही मेडिकल की पढ़ाई: बंगाल के मेदिनीपुर के बिधाननगर निवासी इंद्राणी विश्वास मेडिकल की छात्रा है. वह खुद थैलेसीमिया से पीड़ित हैं. स्वस्थ रहने के लिए इंद्राणी को महीने में कम से कम दो बार रक्त संचार करवाना पड़ता है. अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के बावजूद वह दूसरों के लिए कुछ करना चाहती है.

इसलिए, कोलकाता के नील रतन सरकारी मेडिकल कॉलेज की छात्रा इंद्राणी विश्वास भविष्य में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की जान बचाने के लिए काम करना चाहती है. इंद्राणी ने इस साल मेडिकल में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) पास किया है. इंद्राणी एनआरएस मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन की पढ़ाई कर रही है और भविष्य में हेमटोलॉजी और ब्लड कैंसर की पढ़ाई करना चाहती है.

चूंकि वह खुद थैलेसीमिया से पीड़ित है, इसलिए इंद्राणी का लक्ष्य उन लोगों के साथ खड़ा होना है जो इस समस्या से पीड़ित हैं. जन्म के 7 महीने बाद, इंद्राणी के पिता अभिजीत विश्वास और मां तनुजा विश्वास को पता चला कि उनकी बेटी थैलेसीमिया से पीड़ित है. उसके बाद से उनके लिए जिंदगी की जंग आसान नहीं रही. पहले महीने में एक बार खून चढ़ाना पड़ता था लेकिन फिलहाल इंद्राणी को महीने में दो बार खून लेना पड़ रहा है.

हालांकि, सबसे बुरा दौर महामारी के दौरान आया. उस समय लॉकडाउन के दौरान रक्त की आपूर्ति कम होने के कारण इंद्राणी मुश्किल में थी. स्थिति से बाहर निकलने के बाद वह वर्तमान में स्वस्थ है. इंद्राणी बिस्वास का जन्म स्थान बांकुरा जिले का निबरा गांव है. वहां उसने गर्गरिया सुभाष स्कूल से सेकेंडरी स्कूल पास किया.

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2019 में, उसने मिदनापुर शहर के निर्मल हृदय आश्रम स्कूल से हायर सेकेंडरी पास की. हालाँकि, उसकी राह कभी आसान नहीं थी. उसकी लाइलाज बीमारी ने बार-बार उसके डॉक्टर बनने के संघर्ष में बाधा डाली है. कई बार ऐसा भी होता था जब पढ़ाई छोड़ना एक पसंदीदा विकल्प होता था. लेकिन, इंद्राणी ने इसका मुकाबला किया और अब अपने सपनों को साकार करने का वक्त आ गया है. जीवन की इस लड़ाई में उसके साथ हमेशा उसके माता-पिता और भाई खड़े हैं. आज इंद्राणी कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो उन्हें पसंद करते हैं और ऐसी घातक बीमारियों के बावजूद स्वस्थ जीवन जी रही है.

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