हैदराबाद : गुजरात के सीएम विजय रूपाणी का इस्तीफा बीजेपी की सोची समझी रणनीति है या अचानक यह फैसला लिया गया है. यह बड़ा सवाल है. बताया जा रहा है कि यह फैसला अचानक नहीं आया है. विजय रूपाणी और पार्टी संगठन में काफी दिनों से मतभेद चल रहा था. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल से उनका तालमेल नहीं था. इस मसले पर अमित शाह ने कई बार हस्तक्षेप किया था. सूत्रों के अनुसार, 2021 में बीजेपी के प्रदेश नेतृत्व ने रूपाणी के खिलाफ आलाकमान को रिपोर्ट दी थी. रिपोर्ट में बताया गया ता कि विजय रूपाणी के नेतृत्व में सरकार की पकड़ ढीली पड़ रही है और कामकाज को लेकर रूपाणी सरकार की छवि कमजोर हो रही है. राष्ट्रीय स्तर पर नहीं मगर गुजरात के राजनीति गलियारे में विजय रूपाणी के इस्तीफे की चर्चा काफी दिनों से हो रही थी.
जैन समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विजय रूपाणी का जन्म 2 अगस्त 1956 को रंगून (म्यांमार) में हुआ था. 1960 में उनके पिता भारत लौट आए. 65 साल के विजय रुपाणी ने 1971 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेता के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. इमरजेंसी के दौरान वह जेल में भी रहे. 90 के दशक में रूपाणी बीजेपी से जुड़े और चुनावी घोषणापत्र समिति का अध्यक्ष बनाए गए. उन्होंने 2007 औक 2012 के विधानसभा चुनाव में सौराष्ट्र का जिम्मा दिया गया, जिसमें उन्होंने पार्टी को बड़ी सफलता दिलाई थी. इसके बाद उनका कद पार्टी में बढ़ता गया. फिर वह नरेंद्र मोदी और आनंदी बेन पटेल की सरकार में मंत्री बने.
2016 में आरक्षण की मांग को लेकर पाटीदार समाज ने जबरदस्त आंदोलन किया. इससे आनंदी बेन सरकार की काफी किरकिरी हुई. तब केंद्रीय नेतृत्व ने रूपाणी को सीएम बनाने का फैसला लिया. 7 अगस्त 2016 से विजय रुपाणी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए. उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2017 का चुनाव लड़ा. बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा नहीं रहा. काफी रस्साकशी के बीच बीजेपी ने 182 सीटों वाली विधानसभा में 99 सीटें जीतकर किसी तरह सरकार बनाई. 26 दिसंबर 2017 को विजय रूपाणी ने दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. पांच साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले गुजरात के गिने-चुने नेताओं में विजय रूपाणी शामिल हो चुके हैं, हालांकि उनका दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी और माधव सिंह सोलंकी 5 साल तक सीएम रहने वाले नेताओं में शुमार हैं.
क्या यह बीजेपी का नया प्रयोग है ?
बीजेपी गुजरात ही नहीं, कई राज्यों में अभी सीएम बदलने का प्रयोग कर रही है. अभी हाल में ही उत्तराखंड में सीएम बदले गए. तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया. कर्नाटक में येदियुरप्पा की जगह वसवराज बोम्मई सीएम बने. अब गुजरात की बारी है. इससे पहले भी गुजरात में चुनाव से ऐन पहले मुख्यमंत्री बदले जाते रहे हैं. रूपाणी भी 2016 में तब सीएम बने थे, जब 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाला था. इससे पहले नरेंद्र मोदी भी केशुभाई पटेल का कार्यकाल पूरा होने से पहले मुख्यमंत्री बने. नरेंद्र मोदी ने संगठन और सरकार पर अपना कंट्रोल बनाए रखा, इस कारण वह प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद ही सीएम पद से हटे.
गुजरात में भी गुटबाजी की शिकार है बीजेपी
गुजरात बीजेपी में नेता केंद्रीय नेतृत्व तय करता है. मगर वहां पार्टी को सत्ता में लगातार बनाए रखने वाले स्थानीय नेता भी ताकतवर हैं. इनके बीच खींचतान पहले भी होती रही है. 1995 में केशुभाई पटेल के जमाने में भी शंकर सिंह बघेला ने विद्रोह किया था. इसके बाद हजूरिया और खजूरिया विवाद के बाद पटेल सीएम पद से हटे. इसके बाद सुरेश मेहता सीएम बनाए गए. हालांकि इसके बाद भी विवाद नहीं थमा. नरेंद्र मोदी के सीएम बनने के बाद भी गुजरात बीजेपी में स्थिरता आई थी. अब नरेंद्र मोदी के केंद्र में जाने के बाद उठापटक हो रही है.
क्या समय से पहले होंगे विधानसभा चुनाव
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि बीजेपी हालात काबू करने के बाद वहां समय से पहले विधानसभा चुनाव की सिफारिश कर सकती है. अभी बीजेपी ने स्थानीय विधायकों के असंतोष और एंटी कंबेंसी को करने के लिए सीएम बदलने का दांव चला है. 2022 के शुरू में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सफलता मिलती है तो गुजरात में चुनाव पहले हो सकते हैं. फिलहाल मुख्यमंत्री की रेस में कई नाम चल रहे हैं. नए CM की रेस में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया, केंद्रीय मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, गुजरात के उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल और गुजरात भाजपा के अध्यक्ष सीआर पाटिल के नाम शामिल हैं.
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