नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत के चुनाव आयोग, केंद्र सरकार और छह राजनीतिक दलों से कहा कि वे चुनावों के दौरान जवाबदेही सुनिश्चित करने और काले धन पर रोक लगाने के लिए उन्हें सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में शामिल करने की याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करें.
इस मामले की सुनवाई भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने की, जिसमें जस्टिस संजय कुमार शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर दो अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था.
'तीन पन्नों से ज्यादा की दलीलें ने दें'
एडीआर की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनकी याचिका पिछले 10 साल से लंबित है. पीठ ने कहा, "हम अंतिम सुनवाई के लिए नॉन-मिसलेनियस दिन पर इस पर सुनवाई करेंगे. इस बीच याचिकाएं पूरी होनी चाहिए." पीठ ने वादियों से कहा कि वे अंतिम सुनवाई से पहले तीन पन्नों से ज्यादा की लिखित दलीलें दाखिल न करें. पीठ ने मामले की सुनवाई अप्रैल में तय की है.
राजनीतिक दलों आरटीआई के दायरे में लाने की मांग
जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, चुनाव निकाय और छह राजनीतिक दलों - कांग्रेस, भाजपा, सीपीआई, एनसीपी और बीएसपी को एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित करने और उन्हें आरटीआई के दायरे में लाने की मांग की गई थी.
अश्विनी उपाध्याय ने दायर की याचिका
2019 में अश्विनी उपाध्याय ने राजनीतिक दलों को आरटीआई के तहत लाने, उन्हें जवाबदेह बनाने और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने के लिए इसी तरह की याचिका दायर की थी. उपाध्याय ने अपनी याचिका में भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता के खतरे से निपटने के लिए केंद्र को कदम उठाने का निर्देश देने की भी मांग की.
वहीं, एडीआर ने एक अलग याचिका में राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से कम के दान सहित सभी दानों की घोषणा करने का निर्देश देने की भी मांग की. भूषण ने तर्क दिया था कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकरण हैं और इसलिए वे आरटीआई अधिनियम के अधीन हैं.
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