नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) जाट मतदाताओं (Jat Voters) को साधने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है. बीजेपी लगातार राष्ट्रीय लोक दल (Rashtriya Lok Dal) के मुखिया जयंत चौधरी पर डोरे डालने की कोशिश कर रही है क्योंकि सत्ता में वापसी के लिए उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीतना जरूरी है. इसीलिए जाटों का दिल जीतने की मुहिम जारी है. शायद इसीलिए जाट नेताओं के साथ बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने खुले तौर पर कह दिया कि वह भाजपा गठबंधन में कभी भी आ सकते हैं. बीजेपी इन इलाकों में जी जान लगाकर चुनाव प्रचार कर रही है और अपने तमाम बड़े नेताओं को चुनावी सभाओं के लिए तो भेज ही रही है साथ ही 2013 के उन चेहरों को भी आसपास के इलाकों में पोस्टर बॉय (poster boy) बनाकर आगे कर रही है जिनके नाम 2013 में मुजफ्फरनगर घटना के समय चर्चा में थे.
लिहाजा सरधना के विधायक संगीत सोम और योगी सरकार में मंत्री सुरेश राणा इसी मुहिम के तहत तैनात किए गए हैं वे जाटों को बताएं कि अखिलेश यादव की पिछली सरकार ने सिर्फ एक समुदाय को ही सुरक्षित रखने में ताकत लगा दी थी. उपेक्षित जाटों को हाशिए पर कर दिया था. इसीलिए हिंदुओं की रक्षा करना अब उनका कर्तव्य है. ईटीवी भारत से बात करते हुए संगीत सोम ने कहा कि आज टोपी वाले अखिलेश और गमछा टोपी वाले राहुल गांधी, बेशक मंदिरों में जाकर मत्था टेक रहे हैं, लेकिन यह सिर्फ छलावा है. उन्होंने कहा कि सिर्फ चुनाव के समय ही इन नेताओं को मंदिर याद आते हैं, बाकी वह पूरे साल तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में जो योजनाएं चल रही हैं, क्या उसमें सिर्फ हिंदू ही लाभान्वित है. ऐसा नहीं है उन्होंने कहा कि हम अखिलेश यादव की तरह तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करते.
संगीत सोम ने आगे कहा कि अखिलेश यादव की सरकार में 2013 में कैराना और मुजफ्फरनगर में क्या हुआ था वह सबको पता है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि सभी समुदाय के लोगों को सुरक्षित रखा जाए. उन्होंने कहा कि बीजेपी तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करती और विकास में कोई भेदभाव नहीं देखा जाता इसीलिए जिस तरह से कैलाश मानसरोवर भवन बनाया गया तो वही हज हाउस की भी स्थापना की गई. अखिलेश यादव ने अपने समय में कांवर यात्रा रोक दी, लेकिन हम लोगों ने पुष्प वर्षा की और डीजे भी बजाया. लेकिन मोहर्रम के जुलूस को भी निकलने के लिए इजाजत दी गई. साथ ही उन्होंने कहा कि जिन्ना के लोग समाजवादी पार्टी के साथ हैं और गन्ना वाले हमारे साथ हैं.
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हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने कैराना में पलायन कर गए हिंदू परिवारों से मुलाकात की थी और वहां लोगों को दोबारा मुजफ्फरनगर के 2013 के हालात याद कराए थे. उन्होंने कहा था कि कैराना, मुजफ्फरनगर, खतौली और सरधना मैं सभी यह जानते हैं कि यदि अखिलेश यादव को उनका वोट गया तो वहां के हालात क्या होंगे.12000 लोगों के खिलाफ नाम दर्ज केस दर्ज किए गए थे और कितने युवाओं की जिंदगी बर्बाद कर दी गई थी , लोग उसे भूले नहीं है.
अमित शाह ने तो जाट नेताओं के साथ हुई बैठक में यहां तक कह दिया था कि यदि कोई गलती हुई है तो माफ कर दीजिए. मगर 2013 की घटनाओं को याद करते हुए आरएलडी के साथ जाने की गलती मत कीजिए. अमित शाह इस हद तक चले गए की उन्होंने यह भी कह दिया कि बीजेपी और जाटों में एक समानता है. जाटों ने भी मुगलों से लड़ाई की थी और बीजेपी भी लड़ रही है.
2017 में फर्स्ट फेस के चुनाव में 73 में से 51 सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिली थी, जो पार्टी के लिए एक उत्साहवर्धक परिणाम था और जीत के आंकड़े बढ़ाने में एक बड़ा सहयोग था . और इसकी वजह 2013 का मुजफ्फरनगर का दंगा ही था, जिसके बाद इस इलाके का पूरा समीकरण बदल गया था. पूरे यूपी में जाट समुदाय की आबादी 4 से 6 फ़ीसदी है लेकिन पश्चिमी यूपी में कुल वोटों में उनकी हिस्सेदारी 17 फ़ीसदी तक है और यही वजह है कि सभी पार्टियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों को लुभाने में दमखम के साथ जुटी हुई है.
हालांकि किसान बहुल इस इलाके में किसानों के तमाम वायदों को भारतीय जनता पार्टी पूरी नहीं कर पाई है और किसान बिल के बाद से किसान नाराज भी हैं. पश्चिमी यूपी में मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर ,शामली, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, आगरा, बरेली और बदायूं क्षेत्र है जो जाट बहुल क्षेत्र है और चुनाव के परिणाम पर असर डालते हैं.
एक तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए भारतीय जनता पार्टी आरएलडी को बार-बार आमंत्रण भेज रही है तो वही यदि आंकड़े देखे जाए तो पिछले चुनाव में इस पूरे इलाके में आरएलडी को मात्र एक सीट ही मिल पाई थी उससे पहले के चुनाव में जब उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ाई लड़ी थी तो मात्र 9 सीट पर ही जीत पाई थी.